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ग्रहों के योग से बदलता है मानव स्वभाव

डॉ एनके बेरा, ज्योतिषाचार्य मानव स्वभाव कभी स्थिर नहीं रहता. वह हमेशा बदलता रहता है. ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की बदलती स्थिति के कारण मानव स्वभाव और कर्म भी बदल जाता है, किंतु गोचर में ग्रहों की चाल में परिवर्तन मनुष्यों के कर्मगत स्वभाव को भी बदल देता है. ज्योतिष में कर्म का भाव दशम […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 30, 2019 6:43 AM
डॉ एनके बेरा, ज्योतिषाचार्य
मानव स्वभाव कभी स्थिर नहीं रहता. वह हमेशा बदलता रहता है. ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की बदलती स्थिति के कारण मानव स्वभाव और कर्म भी बदल जाता है, किंतु गोचर में ग्रहों की चाल में परिवर्तन मनुष्यों के कर्मगत स्वभाव को भी बदल देता है. ज्योतिष में कर्म का भाव दशम है, उस पर बैठने तथा दृष्टि रखने वाले ग्रहों पर निर्भर करता है कर्म. कर्म स्थान से नवम यानी छठा भाव या चंद्रमा से दशम से कर्म का प्रारंभ, रुचि, भाग्य उन्नति आदि के विषय में जानकारी मिलती है.
व्यापारमुद्रानृपमानराज्यं नियोजनं
चापि पितुस्तथैव ।
महत्पदाप्तिः खलु सर्वमेतद्राज्याभिथाने
भवने विचार्यम् ।।
कुंडली में कर्म का भाव जब सूर्य से प्रभावित हो या दृष्टि गत हो तो जातक के कर्म में रूखापन, नजरअंदाज करना, अपनी बात को मनवाने का गुण, राजपक्ष से मदद व मेल-जोल आदि गुण दिखाई देने लगते हैं. कर्म का भाव जब चंद्रमा से प्रभावित होता है, तो जातक के कर्मस्वभाव में अत्यधिक लचीलापन, बातचीत में मिठास, स्त्रियों का आगमन व उनसे लाभ, भावुकता में निर्णय लेना आदि गुण सामने आते हैं. बच्चों पर विशेष प्रेम का भी प्रदर्शन होता है. कर्म में जातक अपने मन का मालिक होता है, लाभ व हानि पर नजर नहीं रखता.
कर्मभाव जब मंगल से प्रभावित होता है, तो जातक में झगड़ा, धोखा, कठोर भाषा, खराब व्यवहार, डराकर अपना कार्य सिद्ध करना आदि के गुण सामने आते हैं. वक्री मंगल में व्यवसायी अपने ग्राहकों से झगड़ा व मारपीट तक कर लेते हैं.
कर्मभाव जब बुध से प्रभावित होता है, तो जातक सरल प्रवृत्ति, नादान, लाभ लेने में निपुण, अध्ययण-मनन में समय व्यतीत करने वाला होता है. वक्री बुध होने पर व्यवसायी ग्राहकों की कमी महसूस करते हैं.
दशम भाव जब बृहस्पति से प्रभावित होता है तो जातक बात को पूरा करने वाला, ईमानदारी से व्यवसाय करने वाला, धर्म में विश्वासी, संतोषी, दूसरे के कर्म से होने वाली ईर्ष्या से बचना आदि गुण दिखाई देते हैं. वक्री बृहस्पति से उपर्युक्त गुणों में स्वार्थपरता नजर आती है.
शुक्र से जब कर्म भाव प्रभावित हो तो जातक स्वार्थी होकर अधिक से अधिक लाभ, स्त्रियों पर वर्चस्व, आरामतलब आदि गुण प्रकट होते हैं. वक्री शुक्र से समृद्धि में कमी आती है. व्यपार में पूंजी टूटती है.
दशम भाव यानी कर्मभाव जब शनि ग्रह से प्रभावित होता है, तो छोटे-छोटे लाभ के लिए तथा कर्म में परंपरा आदि का जबरदस्त निर्वहन, नौकरों आदि पर क्रोध व श्रमिक वर्ग से झगड़े का गुण पाया जाता है.
कर्मभाव जब राहु से प्रभावित हो तब जातक में झूठ बोलने, धोखा देने, बेईमानी, कर्म व आय को छिपाना, गुमराह करना आदि का गुण पाया जाता है. इसीतरह कर्म भाव जब केतु से प्रभावित हो तो जातक अपने कर्म में आत्मविश्वास की कमी, दूसरे के द्वारा धोखा खाना, अपने कर्म का क्षमता से अधिक प्रदर्शन, कर्म में धन की तंगी आदि दिखाई देती है.

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