गेमिंग की दुनिया में खो रहे हैं बच्चे
डॉ गौरव गुप्ता मनोचिकित्सक तुलसी हेल्थ केयर, नयी दिल्ली एक वक्त था जब बच्चे और किशोर खाली समय में वीडियो गेम का आनंद लिया करते थे. लेकिन आज के दौर में वीडियो गेम का एक नया ही स्तर देखने को मिल रहा है. ऑनलाइन और मल्टीप्लेयर ऑप्शन की सहज उपलब्धता होने के कारण यह बच्चों […]
डॉ गौरव गुप्ता
मनोचिकित्सक
तुलसी हेल्थ केयर, नयी दिल्ली
एक वक्त था जब बच्चे और किशोर खाली समय में वीडियो गेम का आनंद लिया करते थे. लेकिन आज के दौर में वीडियो गेम का एक नया ही स्तर देखने को मिल रहा है. ऑनलाइन और मल्टीप्लेयर ऑप्शन की सहज उपलब्धता होने के कारण यह बच्चों के बीच इतना लोकप्रिय हो गया है कि यह उन्हें वास्तविक दुनिया से पूरी तरह से दूर कर रहा है.
बच्चों में वीडियो गेम की ऐसी लत देखने को मिल रही है, जिसके कारण वे घर-परिवार और दोस्तों से कट कर एक अलग आभासी दुनिया में जीने लगते हैं. इन बच्चों के आसपास क्या हो रहा है, किसी बात की कोई खबर नहीं रहती है.
सबसे बड़ी समस्या यह है कि वीडियो गेम की लत ही युवास्था में डिप्रेशन और गुस्सैल व्यवहार का मूल कारण बनती है. वीडियो गेम के इस दौर में बच्चे और टीनेजर्स आउटडोर गेम्स को पूरी तरह से भूलते जा रहे हैं. हर हफ्ते 8 से 22 साल आयु वर्ग के 4-5 ऐसे नये मरीज एम्स पहुंच रहे हैं. पैरेंट परेशान दिखते हैं.
चिंता और डिप्रेशन के शुरुआती लक्षण
किशोरावस्था एक ऐसी उम्र है, जिसमें बच्चों का दिमागी विकास होता है. इस उम्र में उनके व्यवहार में सबसे ज्यादा परिवर्तन नजर आते हैं. इन बदलावों के कारण कोई भी नयी चीज उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करती है.
यही कारण है कि इस उम्र में उन्हें अच्छी चीजों की आदत भी पड़ सकती है और बुरी चीजों की लत भी हो सकती है. अधूरे ज्ञान की वजह से उनमें चिंता और डिप्रेशन के शुरुआती लक्षण नजर आ सकते हैं. वीडियो गेम की वर्चुअल दुनिया में अधिक वक्त बिताने से बच्चों को अकेलापन महसूस होने लगता है और वे खोये-खोये से रहने लगते हैं.
यहां तक कि व्यस्त जीवनशैली के कारण कई बार माता-पिता भी अपने बच्चों के साथ वक्त नहीं बिता पाते हैं, जिससे उन्हें प्यार, स्नेह और ध्यान की चाह होती है. इस चाह में वे इस तरह की चीजों से आकर्षित हो जाते हैं.
मल्टीप्लेयर गेमिंग बन रहा एक बड़ा कारण
मल्टीप्लेयर गेमिंग ने वीडियो गेम के स्तर को इस कदर बदल दिया है कि बच्चे खुद को इससे दूर रख ही नहीं पाते हैं. यह आभासी दुनिया बिना किसी रोक-टोक के उन्हें नयी चीजों का अनुभव करने का मौका देती है. यह लत और वास्तविक दुनिया से दूरी के कारण बच्चों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है और वे खुद को सामाजिक जीवन से दूर रखने लगते हैं.
स्कूल और माता-पिता बच्चों को इन खेलों की लत से दूर रखने में एक अहम भूमिका निभाते हैं. यदि बच्चे किसी कारण से खोये-से रहते हैं या अकेलापन और अवसाद महसूस करते हैं तो माता-पिता और स्कूल को तुरंत कोई कदम उठाना चाहिए, जिससे वे बच्चों को वास्तविक दुनिया में शामिल कर उन्हें सामाजिक रूप से सक्रिय रख सकें.
गेमिंग के लत को ऐसे पहचानें
- फिजिकल एक्टविटी व पढ़ाई से कतराना.
- एकांत में रहना ज्यादा पसंद, लोगों से मिलने-जुलने में रुचि न लेना.
- किसी भी चीज में एकाग्रता की कमी.
- मोबाइल या इंटरनेट से दूर करने पर तुरंत हिंसक या जिद्दी हो जाना.
- आंखों में लालीपन, सूखापन या पानी आना जैसे बदलाव.
- भूख में कमी या खाने में अरुचि.
इस प्रकार गेमिंग की लत से बचाएं
- पैरेंट तय करें कि बच्चे को किस उम्र में कौन-सा गैजेट देना है.
- मोबाइल पर गाने, वीडियोज वगैरह न दिखाएं.
- बच्चों को इंटरनेट का इस्तेमाल पढ़ाई संबंधी जरूरी कामों के लिए ही करने दें.
- आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें. शुरू से योग, एक्सरसाइज की आदत डालें.
- बच्चों के लिए पैरेंट समय निकालें, उनके साथ खेलें.
- बच्चे इंटरनेट पर क्या-क्या करता है, उस पर नजर रखें.
- अगर आपका बच्चे को लत लग जाती है, तो बिना देरी किये मनोचिकित्सक से मिलिए.
आउटडोर एक्टिविटीज के लिए करें प्रोत्साहित
माता-पिता और स्कूल को उन बच्चों को अलग-अलग गतिविधियों में शामिल करना चाहिए, जिसमें वे हर पल कुछ नया सीख सकें और उन्हें वर्चुअल दुनिया से दूर भी रखा जा सके. माता-पिता को बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहिए और उनके हर रूटीन पर नजर रखनी चाहिए. वीडियो गेम की लत के कारण कई बार बच्चे रात-रात भर सोते नहीं हैं, जिससे वे अधिक थकान महसूस करते हैं.
धीरे-धीरे बच्चों को अकेलेपन की आदत पड़ने लगती है, जिसके कारण वे माता-पिता से हर बात छुपाने लगते हैं. माता-पिता होने के नाते यह समझना जरूरी है कि समस्या का मूल कारण वीडियो गेम नहीं, बल्कि आपका उन्हें कम समय देना है. अगर बच्चों को शुरू से आउटडोर गतिविधियों (खेल, योग, एक्सरसाइज आदि) पर अधिक ध्यान दिलाया जाये, तो बच्चों को अकेलापन और डिप्रेशन जैसी समस्याओं से भी दूर रखा जा सकता है.
बच्चों में पौष्टकिता की जांच
भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिछले दिनों देश के पहले कॉम्प्रिहेंसिव नेशनल न्यूट्रिशन सर्वे के नतीजे जारी किये, जिसमें 0-19 वर्ष की आयु के बच्चों में पौष्टिकता जांच के लिए सर्वे किया गया था.
इसके अनुसार, भारत में 5 साल से कम आयु वाले 35 फीसदी बच्चे उम्र के मुताबिक कम लंबाई के हैं, 17 फीसदी बच्चे लंबाई के मुकाबले कम वजन के हैं और 33 फीसदी बच्चे उम्र और लंबाई दोनों के मुकाबले कम वजन के हैं.
सर्वे यूनिसेफ की मदद से 2016-18 के दौरान देश के 30 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में कराया गया है. आंकड़ों में पता चला कि कुपोषण में थोड़ी कमी आयी है. 1-4 वर्ष के बच्चों में विटामिन-ए और आयोडीन की कमी की रोकथाम के लिए सरकारी कार्यक्रमों का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है.