लता की परंपरा और आज का पार्श्व गायन

विनोद अनुपम फिल्म समीक्षक आज लता मंगेशकर की आवाज भले प्रकृति-प्रदत्त लगती हो, सच यही है कि इस उंचाई तक पहुंचने के लिए उन्हें भी किसी सामान्य मनुष्य की तरह संघर्ष करना पड़ा था. पांच वर्ष की उम्र में लता ने अपने पिता के साथ नाटकों में अभिनय करना शुरू किया. इसके साथ वे पिता […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 28, 2019 6:30 AM
विनोद अनुपम
फिल्म समीक्षक
आज लता मंगेशकर की आवाज भले प्रकृति-प्रदत्त लगती हो, सच यही है कि इस उंचाई तक पहुंचने के लिए उन्हें भी किसी सामान्य मनुष्य की तरह संघर्ष करना पड़ा था. पांच वर्ष की उम्र में लता ने अपने पिता के साथ नाटकों में अभिनय करना शुरू किया. इसके साथ वे पिता से संगीत की शिक्षा भी लेने लगीं. वर्ष 1942 में तेरह वर्ष की उम्र में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गयी. फिर उनका पूरा परिवार पुणे से मुंबई आ गया.
हालांकि लता को फिल्मों में अभिनय करना जरा भी पसंद नही था, पर पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण उन्होंने फिल्मों में काम किया. कहा जाता है कि उस समय के मशहूर फिल्मकार गुलाम हैदर ने उनके सुर की पहचान की और निर्माता एस मुखर्जी से अपनी फिल्म ‘शहीद’ में उन्हें अवसर देने को कहा, लेकिन यह कह कर उन्होंने हैदर साहब का आग्रह ठुकरा दिया कि लता की आवाज अच्छी नहीं है. खैर, बाद में जो हुआ, वह इतिहास है.
लता जी अब 90 वर्ष की हैं और निःसंकोच कहती हैं, मैं तो सामान्य लोगों की तरह अब भी सीख रही हूं. शायद सीखने की ललक ही होगी कि लता मंगेशकर 70 वर्षों से अधिक समय तक हिंदी सिने गायन के शीर्ष पर बनी रहीं.
उनके गायन की विविधता इसी से समझी जा सकती है कि बाल अभिनेताओं के लिए उनकी आवाज सबसे बेहतर मानी जाती थी. उन्होंने भजन भी गाये, तो कुछ कैबरे नंबर गाने में भी संकोच नहीं किया. मीना कुमारी से लेकर करिश्मा कपूर और प्रीति जिंटा तक वे नायिकाओं की प्रतिष्ठित आवाज
बनी रहीं. उनकी सफलता ही है, जो वे अपने व्यक्तित्व के बजाय कृतित्व के माध्यम से याद की जाती हैं.उनका दौर ऐसा था, जब गानों की लोकप्रियता में किसी सितारे की भूमिका नहीं होती थी, बल्कि संगीतकार और गायक के बल पर लोकप्रिय गीत अभिनेताओं की लोकप्रियता के लिए आधार तैयार करते थे. शायद यही कारण था कि उस दौर में अभिनेताओं द्वारा खास गायकों को अपनी पहचान के रूप में स्थापित कर लेने का प्रचलन था. रेडियो पर गाने सुन कर ही अंदाजा लगा लिया जाता था कि इसे परदे पर राजकपूर ने गाया होगा या दिलीप कुमार ने या फिर राजेंद्र कुमार या शम्मी कपूर ने.
गायकों से भी भरसक उम्मीद रखी जाती थी कि वे जिस अभिनेता के लिए आवाज दे रहे हों, उनके हाव-भाव का निर्वाह करेंगे. लता जी जब मीना कुमारी के लिए गाती थीं, तो कुछ और होती थीं और नूतन के लिए कुछ और. हेमा मालिनी के तो अधिकांश गीत उन्होंने ही गाया, लेकिन रेखा पर फिल्माये उनके गीत सुनें, तो एक अलग अंदाज साफ महसूस कर सकते हैं. स्वभाविक तौर पर लता जैसे कलाकार को अपनी जवाबदेही का अहसास था. उन्हें पता था कि उनकी आवाज से उनके सितारे को स्थापित होना है. इसके लिए वर्षों के रियाज के साथ एक-एक गीत पर वे मेहनत करती थीं. उस दौर में अभिनेताओं की पीढ़ियां गुजर रही थीं, पर दशकों तक लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश, मन्ना डे, किशोर कुमार, आशा भोंसले जैसे गायकों को चुनौती देने के लिए गायक सामने नहीं आ पा रहे थे.
आज गायन की स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. आज के कई गाने आपको याद होंगे, लेकिन क्या आप उसके गायकों को याद कर सकते हैं! वास्तव में यह स्वीकार करने में शायद ही किसी को आपत्ति हो कि गाने अब सुने नहीं जाते, देखे जाते हैं. जाहिर है, जब गाने देखने के लिए बनेंगे, तो उसमें संगीत तत्व से ज्यादा महत्वपूर्ण दृश्य तत्व होंगे. आश्चर्य नहीं कि गाने भी अब फिल्म के साथ आते हैं और फिल्म के साथ ही चले जाते हैं. इसमें भी आश्चर्य नहीं है कि पचास और साठ के दशक के हिट गानों के रिमिक्स के प्रचलन ने फिर जोर पकड़ा है. लता जी जब कहती हैं, ओरिजनल रहो, तो गायन की वर्तमान स्थिति के प्रति उनके दर्द को महसूस किया जा सकता है.
लता जी को जन्मदिन की सच्ची बधाई तब होगी, जब पार्श्व गायन को मशीनों से मुक्त होकर सुर और लय की मौलिकता में बांधने की कोशिश होगी. चुनौती कठिन है, पर लता की परंपरा जीवित रखने के लिए जरूरी भी है.

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