सिंगल यूज प्लास्टिक से बढ़ता प्रदूषण, पर्यावरण बचाने के लिए जरूरी है जनमुहिम

एफएमसीजी कंपनियों, रिटेलरों, रेस्त्रां, शॉपिंग सेंटरों से निकलनेवाले प्लास्टिक उत्पाद लाखों टन कचरे में तब्दील होकर महासागरों में पहुंच रहे हैं. कुल इस्तेमाल किये जानेवाले प्लास्टिक में आधे से अधिक का सिंगल यूज होता है, यानी कि एक बार प्रयोग में लिये जाने के बाद इसे कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है. यही […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 22, 2019 1:46 AM

एफएमसीजी कंपनियों, रिटेलरों, रेस्त्रां, शॉपिंग सेंटरों से निकलनेवाले प्लास्टिक उत्पाद लाखों टन कचरे में तब्दील होकर महासागरों में पहुंच रहे हैं. कुल इस्तेमाल किये जानेवाले प्लास्टिक में आधे से अधिक का सिंगल यूज होता है, यानी कि एक बार प्रयोग में लिये जाने के बाद इसे कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है. यही प्लास्टिक छोटे टुकड़ों में बंटकर हवा, जल, यहां तक कि हमारी खाद्य शृंखला को दूषित कर रहा है. प्लास्टिक प्रदूषण की तबाही तात्कालिक नहीं, बल्कि सदियों तक जीवन को नरक बनानेवाली है.

एफएमसीजी कंपनियां, एयर कंडिशनर, फ्रीज, इ-कॉमर्स, हॉस्पिटेलिटी और रेस्टोरेंट में सिंगल यूज प्लास्टिक का सर्वाधिक इस्तेमाल होता है. इसके अतिरिक्त, छोटे रिटेल शॉप अौर ग्रॉसरी स्टोर्स में भी वस्तुओं के वितरण के लिए इसका उपयोग किया जाता है.

क्या होता है सिंगल यूज प्लास्टिक

सिर्फ एक बार के लिए ही इस्तेमाल किये जानेवाले प्लास्टिक को ‘सिंगल यूज’ प्लास्टिक कहा जाता है. इसे प्राय: डिस्पोजेबल प्लास्टिक नाम से भी जाना जाता है. ऐसे प्लास्टिक की मोटाई 50 माइक्रो से कम होती है और इसमें 20 प्रतिशत से भी कम रिसाइकिल कंटेंट मौजूद होते हैं. इनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर पैकेजिंग के लिए होता है.
प्लास्टिक कैरी बैग, कप, प्लेट, प्लास्टिक ड्रिंकिंग बोतल, प्लास्टिक बोतल की कैप, फूड रैपर, प्लास्टिक ग्रॉसरी बैग, प्लास्टिक सैशे, प्लास्टिक रैपर, फूड पैकेजिंग के लिए उपयोग किये जानेवाले मल्टी-लेयर पैकेजिंग, स्ट्रॉ, दूसरे तरह के प्लास्टिक बैग और फोम टेकअवे कंटेनर आदि सिंगल यूज प्लास्टिक होते हैं.
इनमें फोम वाले उत्पाद जैसे, डिस्पोजेबल कटलरी, प्लेट और ग्लास पर्यावरण के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह हैं. सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन में इस्तेमाल किये जानेवाले मुख्य पॉलिमर हैं- एचडीपीइ, एलडीपीइ, पीइटी, पीपी, पीएस और इपीएस.
प्लास्टिक कचरे से महासागरों में बढ़ता प्रदूषण
पर्यावरण के लिए काम करनेवाली अमेरिकी संस्था अर्थडे नेटवर्क के मुताबिक, सिंगल यूज प्लास्टिक अक्सर न ही भरावक्षेत्र में जाते हैं, न ही रिसाइकिल किये जाते हैं. प्रतिवर्ष 78 मिलियन टन उत्पादित होनेवाले प्लास्टिक पैकेजिंग का 32 प्रतिशत भाग महासागरों में प्रवाहित कर दिया जाता है.
यह प्रति मिनट महासागर में एक ट्रक प्लास्टिक कचरा डाले जाने के बराबर है. इस रफ्तार से 2030 तक महासागरों में प्रवाहित होनेवाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़कर प्रति मिनट दो ट्रक और 2050 तक प्रति मिनट चार ट्रक पहुंच जायेगी. इसका अर्थ हुआ कि 2050 तक महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक कचरा होगा.
15 प्रतिशत समुद्री प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा
वर्ष 2050 तक अनुमानत: 99 प्रतिशत सीबर्ड प्लास्टिक ग्रहण कर चुकी होंगी.
600 से अधिक समुद्री प्रजातियाें पर समुद्र में फैले प्लास्टिक अपशिष्ट के कारण क्षति पहुंचने का खतरा है.
कचरा बढ़ने और इसे खाने के कारण समुद्रों की 15 प्रतिशत प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.
घरों से निकलता है 66 प्रतिशत अपशिष्ट
70 प्रतिशत प्लास्टिक पैकेजिंग उत्पाद प्लास्टिक अपशिष्ट में बदल जाते हैं. वर्ष 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुमान के अनुसार.
66 प्रतिशत प्लास्टिक अपशिष्ट, जिसमें पॉलीबैग, खाद्य पदार्थों के पैकिंग में उपयोग में आनेवाले मल्टीलेयर पाउच आदि शामिल होते हैं, मुख्य रूप से घरों से निकलते हैं.
भारत में करीब 60 प्रतिशत प्लास्टिक अनुमानत: रिसाइकिल हो जाते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश प्लास्टिक की डाउनसाइक्लिंग की जाती है, यानी रिसाइकिल होने के बाद ये प्लास्टिक निम्न श्रेणी के उत्पाद में तब्दील हो जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (2018) रिपोर्ट के मुताबिक.
हर मिनट में 10 लाख प्लास्टिक बोतलों की खरीद
दुनियाभर में प्रति मिनट 10 लाख प्लास्टिक से बनी बोतलों की खरीद
होती है.
वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 500 बिलियन एकल उपभोग वाले प्लास्टिक बैग का उपभोग किया जाता है.
दुनियाभर में कुल उत्पादित प्लास्टिक का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा सिंगल यूज प्लास्टिक का है.
एकल उपयोग प्लास्टिक उत्पाद के तौर पर दुनियाभर में प्रतिवर्ष 580 बिलियन सिगरेट बट, 46 बिलियन बाेतलें, 36.4 बिलियन ड्रिंकिंग स्ट्रॉ और 16 बिलियन कप का उत्पादन किया जाता है.
वर्ष 2016 में, वैश्विक स्तर पर लगभग 335 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ.
इसमें लगभग आधा हिस्सा सिंगल यूज प्लास्टिक का था.
वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन पांच लाख स्ट्रॉ का इस्तेमाल किया जाता है.
प्रतिवर्ष 500 बिलियन डिस्पोजेबल कप का उपभोग होता है.
प्लास्टिक उत्पादन में वृद्धि का प्रमुख कारण प्लास्टिक पैकेजिंग है. वर्ष 2015 में कुल नॉन-फाइबर प्लास्टिक उत्पादन का 42 प्रतिशत पैकेजिंग प्लास्टिक था.
स्रोत : संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण रिपोर्ट
(2018), अर्थडे नेटवर्क व अन्य
पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा
एकल उपभोग वाले प्लास्टिक पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक, प्लास्टिक अगर रिसाइकिल नहीं किये जाते हैं, तो उन्हें नष्ट होने में हजारों वर्ष लग सकते हैं. जिन प्लास्टिक को हम एक बार उपभोग करने के बाद फेंक देते हैं, वे धीरे-धीरे छोटे-छोटे टुकड़ों में विघटित होते हैं. विघटन के क्रम में ये भूजल में कैंसर कारक रसायन भी उत्पन्न करते हैं.
हल्के होने के कारण ये प्लास्टिक नदी के रास्ते समुद्र में पहुंचते हैं. समुद्री जीवों द्वारा इन्हें खाने के बाद ये उनके वायुकोष में जमा हो जाते हैं. इससे समुद्री जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है, साथ ही मनुष्य की खाद्य शृंखला में हानिकारण रसायन के प्रवेश का खतरा भी बना रहता है. यह प्रभाव भले ही हमें तुरंत दिखायी न दे, लेकिन समूचे पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रभाव पड़ना तय है.

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