ठेठ नागपुरी गीत-नृत्य के पुरोधा गोविंद शरण लोहरा

डॉ रंजीत कुमार महली दो दशक पहले ‘ए दादा बिजला, तनी पईढ़ ले नी‘ जैसे गानों से नगपुरिया समाज में शिक्षा का अलख जगाने वाले गोविंद लोहरा ठेठ नागपुरी गीत-नृत्य के अमिट हस्ताक्षर हैं. गायन को सिर्फ मनोरंजन तक सीमित न मानने वाले इस नागपुरी साधक ने समाज के हर पहलू और समस्या को गीत […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 20, 2019 7:30 AM

डॉ रंजीत कुमार महली

दो दशक पहले ‘ए दादा बिजला, तनी पईढ़ ले नी‘ जैसे गानों से नगपुरिया समाज में शिक्षा का अलख जगाने वाले गोविंद लोहरा ठेठ नागपुरी गीत-नृत्य के अमिट हस्ताक्षर हैं.

गायन को सिर्फ मनोरंजन तक सीमित न मानने वाले इस नागपुरी साधक ने समाज के हर पहलू और समस्या को गीत के माध्यम से आवाज दी. एक तरफ जहां ‘नदी-नाला, गांव-शहरे, वन लगाऊ सगरे’ गीत से सरकार और समाज को पर्यावरण के महत्व को समझाया, वहीं ‘बेटी कर बाप कांदे झारोझार°’ से दहेज प्रथा पर जोरदार प्रहार भी किया. ‘सावधाना रहबा रे देशा के जवान’ गीत से युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाया, तो ‘अंवरा रे अंवरा, डारी के छोईड़ के पतई में फरीसला’ से देवर-भौजाई के हंसी-मजाक को एक नया रूप दिया. मूल रूप से लोहरदगा जिले के ईटा गांव में जन्मे गोविंद नागपुरी गीत लेखन, गायन, वादन और नृत्य में पारंगत हैं.

एक कलाकार के रूप में इन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी प्रस्तुति से नागपुरी भाषा का मान बढ़ाया. 1992 में अंडमान निकोबार में आयोजित ‘राष्ट्रीय जनजातीय सम्मेलन’ में इन्होंने नागपुरी का प्रतिनिधित्व किया. 1994 में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के ‘राष्ट्रीय एकता शिविर’ कार्यक्रम, 1996 में पटना में राष्ट्रीय स्तर के लोक संगीत सह नृत्य समारोह, 1999 में बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित ‘छोटानागपुर महोत्सव’, वर्ष 2000 में हस्तिनापुर में आयोजित ‘भारतीय किसान संघ’ के राष्ट्रीय अधिवेशन में इन्होंने अपनी गायिकी का लोहा मनवाया.

2000 में ही रांची में आयोजित चतुर्थ ‘वनवासी क्रीड़ा महोत्सव’ के नागपुरी लोकगीत के वह महत्वपूर्ण हिस्सा रहे. नागपुरी लोकगीत गायन, लेखन और नृत्य के लिए इन्हें कई पुरस्कारों और मानपत्रों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें आकृति सम्मान-2002, पीटर नवरंगी साहित्य सम्मान-2010, झारखंड विभूति-2012 प्रमुख हैं. मान-पत्रों में यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया, नयी दिल्ली (1992) द्वारा दिया गया मान-पत्र, बिहार सरकार द्वारा (1996) और सुर तरंगिनी सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था, पटना द्वारा दिया गया मान-पत्र शामिल हैं.

वर्तमान में, रांची विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय भाषा विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा उन पर किये जा रहे शोधकार्य नागपुरी जगत में उनके महत्व को अनुरेखित करते है.

जीवन के 66 बसंत पार कर चुके गोविंद 2010 से ही लकवाग्रस्त हैं. उम्र के साथ शरीर उनका साथ छोड़ रहा है. बमुश्किल चल-फिर पाते हैं. कठिनाइयों के बावजूद गाने का उनका जोश ठंडा नहीं हुआ है. वह अपनी विरासत किसी को सौंपना चाहते हैं.

उन्हें अच्छे और पक्के शिष्य की तलाश है. युवा पीढ़ी को वह आधुनिकता के नाम पर नागपुरी संगीत में पाश्चात्यवादी प्रयोग से बचने की सलाह देते हैं. वह आधुनिकता की बाढ़ को नागपुरी लोकगीत के लिए खतरनाक मानते हैं. गोविंद नागपुरी जगत के लिए बड़े प्रेरणास्रोत हैं.

– लेखक डॉ एसपी मुखर्जी विवि, रांची में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.

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