आप कोलोरेक्टल कैंसर के दायरे में तो नहीं

डॉ निखिल अग्रवाल सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेस्टाइनल सर्जरी एंड जीआइ ऑन्कोलॉजी धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल, दिल्ली खान-पान की बदली हुई आदतें, बढ़ते तनाव और शारीरिक सक्रियता की कमी ने न केवल लोगों को बीमारियों का आसान शिकार बना दिया है, बल्कि उनके इम्यून तंत्र को कमजोर बना कर बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी कम कर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 10, 2019 3:10 AM

डॉ निखिल अग्रवाल

सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेस्टाइनल सर्जरी एंड जीआइ ऑन्कोलॉजी
धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल, दिल्ली
खान-पान की बदली हुई आदतें, बढ़ते तनाव और शारीरिक सक्रियता की कमी ने न केवल लोगों को बीमारियों का आसान शिकार बना दिया है, बल्कि उनके इम्यून तंत्र को कमजोर बना कर बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी कम कर दी है. यही कारक कोलन कैंसर के भी प्रमुख रिस्क फैक्टर्स माने जाते हैं.
हमारे देश में ही नहीं, विश्वभर में कोलन कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के अनुसार, कोलोरेक्टल कैंसर भारत में छठा सबसे आम कैंसर है. जानिए, इसके खतरे और बचाव के उपाय.
को लोरेक्टल कैंसर को सामान्यत: कोलन कैंसर या बॉउल कैंसर नाम से भी जाना जाता है. यह कोलन या रेक्टम (बड़ी आंत का एक भाग) या अपेंडिक्स में कोशिकाओं के अनियंत्रित विकास के कारण होता है. कोलन कैंसर मुख्यत: बड़ी आंत, विशेषकर इसकी सबसे अंदरूनी परत में विकसित होता है. शुरुआत एक पॉलिप से होती है, जो कोशिकाओं का एक छोटा समूह या गुच्छे होते हैं.
समय के साथ कुछ पॉलिप्स कोलन कैंसर बन जाते हैं. हालांकि कुछ मामलों में यह आनुवंशिक भी होता है. सुस्त और गतिहीन जीवनशैली को भी बड़ी आंत के कैंसर का एक प्रमुख कारण माना जाता है. जबकि मोटापे और कम मोटे अनाज वाले आहार को इस प्रकार के कैंसर का कारक माना जाता है.
इन संकेतों से रोग को पहचानें : हर शारीरिक तकलीफ के कुछ संकेत मिलते हैं, मगर कई बार लोग उनकी अनदेखी करते हैं, जिससे बीमारी घातक हो जाती है. कोलन कैंसर विकसित होने पर भी शरीर कुछ संकेत मिलते हैं. इनकी तुरंत पहचान, डायग्नोसिस और उचित उपचार से रोगी के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है.
मल में रक्त आना : मल में रक्त आना कोलन कैंसर का प्रमुख लक्षण है. रक्त के अलावा मल पर गहरे रंग के चकते दिखना, मल का टेक्सचर बदल जाना, जैसे- मल पतला हो जाना आदि लक्षण.
एनीमिया : मल में रक्त आने से शरीर में रक्त की कमी हो जाती है, जिससे एनीमिया होने का खतरा बढ़ जाता है. इससे थकान बढ़ती है और त्वचा का रंग पीला पड़ने लगता है.
थकान : हम में से हर किसी को थकान होती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम सबको कोलन कैंसर है. थकान कोलन कैंसर का एक प्रमुख लक्षण है, लेकिन जब यह दूसरे लक्षणों के साथ दिखाई दे तो सतर्क हो जाएं.
वजन कम हो जाना : किसी स्पष्ट कारण के बगैर अगर कुछ ही महीनों में अचानक वजन बहुत अधिक कम हो जाये, तो यह कोलन कैंसर का एक चेतावनी भरा संकेत है. मल त्यागने की आदतों में बदलाव होना आपने अपनी खान-पान की आदतों में बदलाव नहीं किया है, लेकिन आपकी मल त्यागने की आदतों में बदलाव आ गया है, जैसे- आपको कब्ज रहने लगे, अक्सर दस्त लगता हो, पेट साफ न हो रहता हो, मल त्यागने के लिए आपको दौड़ना पड़ता हो.
पेट से संबंधित समस्याएं : पेट में मरोड़, दर्द, सूजन, पेट फूलना कोलन कैंसर के कुछ संकेत हैं.
देर न हो डायग्नोसिस में
कोलन कैंसर का संकेत होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं. स्क्रीनिंग के द्वारा पॉलिप्स की पहचान करके कैंसर बनने से पहले उन्हें निकाला जा सके, इसलिए तुरंत डायग्नोसिस बहुत जरूरी है, ताकि एडवांस स्टेज से बच सकें. कुछ जरूरी जांच हैं :
कोलोनोस्कोपी : कैमरा लगे एक लचीली ट्यूब को रेक्टम के रास्ते कोलन के अंदर डाला जाता है, जिससे जरूरत पड़ने पर सर्जिकल उपकरण द्वारा टिश्यू टेस्ट के लिए निकाला जा सकता है.
स्टूल-बेस्ड टेस्ट्स : दो तरह के टेस्ट होते हैं- मल का इम्यूनोकेमिकल टेस्ट, जो प्रतिवर्ष कराएं. दूसरा मल का मल्टी टारगेटेड डीएनए टेस्ट. इन स्टूल जांच से कोलन कैंसर के विशिष्ट आनुवंशिक दोषों का पता चला है. जबकि कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन से कभी–कभी कोलन में हो रही असामान्यता का पता चलता है.
कितना घातक
यहां कोलन कैंसर को 1 से 4 स्टेज में बताया गया है. विशेषज्ञ के मुताबिक कोलन कैंसर जितनी हाई स्टेज पर पहुंचता जाता है, उतनी जीवित रहने की संभावना कम होती जाती है. जबकि जितनी जल्द पकड़ में आने से उपचार से बचने की संभावना अधिक होती है. जानिए कि अलग-अलग स्टेजों पर उपचार कराने के पश्चात जीवित रहने की संभावनाएं कितनी फीसदी तक होती हैं :
क्या हैं उपचार के तरीके
कोलन कैंसर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि कैंसर किस चरण में है. इसके आधार पर मुख्यत: निम्न विधियों को अपनाया जाता है :
सर्जरी : इसके द्वारा बड़ी आंत के प्रभावित हिस्से और आस-पास के लिम्फ नोड्स को निकाला जाता है. दूरबीन पद्धति (लैप्रोस्कोपिक सर्जरी) ने ऑपरेशन को आसान और प्रभावी बना दिया है. इसमें बड़े चीरे की बजाय छोटे छेदों से सर्जरी के उपकरण डाले जाते हैं.
कीमोथेरेपी : इसमें शक्तिशाली रसायनों का उपयोग किया जाता है, जो प्रोटीन या डीएनए को क्षतिग्रस्‍त करके कोशिका विभाजन में हस्‍तक्षेप करते हैं, जिससे कैंसरग्रस्‍त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं.
टारगेट थेरेपी : यानी लक्षित चिकित्सा में दवाएं कैंसर वाली जगह को लक्ष्य बनाती हैं और पारंपरिक कीमोथेरेपी की दवाओं के साथ दी जाती हैं, ताकि कैंसर की अधिक कोशिकाएं मर जाएं और रोगी के बचने की संभावना बढ़ जाये.
इम्यूनोथेरेपी : प्रतिरक्षा चिकित्सा (इम्यूनोथेरेपी) की दवाएं शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को ताकत देती हैं और प्रतिरक्षा तंत्र स्वयं ही कैंसर की कोशिकाओं से लड़ता है, जिससे साइड इफेक्ट्स होने की आशंका लगभग समाप्त हो जाती है.
रेडिएशन थेरेपी : यह ऊतकों में गहराई तक पहुंचकर ट्यूमर के आकार को कम करने में मदद करता है, जिससे सर्जन को ऑपरेशन करने में आसानी होती है और कैंसर के फैलने की आशंका कम हो जाती है और जीवित रहने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी असरदार उपचार
टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी ने बड़ी आंत के कैंसर के इलाज को असरदार बना दिया है. प्रतिरक्षा चिकित्सा (इम्यूनोथेरेपी) की दवाएं शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को ताकत देती हैं और प्रतिरक्षा तंत्र स्वयं ही कैंसर की कोशिकाओं से लड़ता है, जिससे दुष्प्रभाव लगभग खत्म हो जाते हैं. पहले केवल कीमोथेरेपी से रोगियों के बचने की दर कम थी, लेकिन टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के साथ बचने की दर बढ़ गयी है.
दरअसल, कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार में विकिरण यानी रेडिएशन ट्यूमर के आकार को कम करने में मदद करता है, जिससे सर्जन को ऑपरेशन करने में आसानी होती है और बीमारी फैलने की आशंका कम होती है और बचने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
बचाव के उपाय
कोलन कैंसर से पूरी तरह बचना तो संभव नहीं, लेकिन कुछ जरूरी उपाय से जोखिम कम कर सकते हैं –
अगर आपको रिस्क फैक्टर है, तो नियमित स्क्रीनिंग कराएं.
हाइ सैचुरेटेड फैट वाले भोजन का सेवन न करें, विशेषकर रेड मीट न खाएं.
धूम्रपान और अल्कोहल के सेवन से बचें.
प्रचूर फल, सब्जियां, साबूत अनाज खाएं.
जंक फूड और फॉस्ट फूड से दूर रहें.
नियमित रूप से एक्सरसाइज करें और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें.
अपना स्वस्थ भार बनाये रखें.
रिस्क फैक्टर्स को जानिए
हालांकि कोलन कैंसर का कोई मूल कारण निश्चित नहीं, लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं, जो निश्चित रूप से इसके जोखिम को बढ़ा देते हैं, जैसे-वृद्धावस्था
कोलोरेक्टल कैंसर का पारिवारिक इतिहास
कम फाइबर, ज्यादा चिकनाई वाले भोजन लेना
निष्क्रिय जीवन शैली
मधुमेह व मोटापा
धूम्रपान एवं शराब का सेवन
कोलाइटिस या क्रोहन डिजीज

Next Article

Exit mobile version