सही-गलत खबरों को परखने का टूल होना जरूरी

प्रतीक सिन्हा संपादक और सहसंस्थापक, ऑल्ट न्यूज सत्ता जब लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर देती है, तो उसका असर मीडिया पर भी पड़ता है. इस कमजोरी का शिकार हमारे पारंपरिक मीडिया संस्थान भी हुए, जिनके विकल्प का खड़ा होना जरूरी था. हालांकि, इस विकल्प के रूप में न्यू मीडिया आ चुका था, जिसने तमाम तरह […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 15, 2019 1:10 AM

प्रतीक सिन्हा

संपादक और सहसंस्थापक, ऑल्ट न्यूज
सत्ता जब लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर देती है, तो उसका असर मीडिया पर भी पड़ता है. इस कमजोरी का शिकार हमारे पारंपरिक मीडिया संस्थान भी हुए, जिनके विकल्प का खड़ा होना जरूरी था. हालांकि, इस विकल्प के रूप में न्यू मीडिया आ चुका था, जिसने तमाम तरह के इंटरनेट माध्यम से जुड़ी व्यवस्थाओं के जरिये लोगों को सही सूचनाएं पहुंचाने की कोशिश की.
आज जबरदस्त सूचना का दौर है और लोगों के पास जरूरत से ज्यादा सूचनाएं हैं. व्हॉट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, वेब पोर्टल आदि के जरिये हर मिनट कोई न कोई सूचना, फोटो, वीडियो, डेटा आदि लोगों के मोबाइल पर आ रहे हैं. किसी एक विषय पर ही सब माध्यमों से अलग-अलग तरह की सूचनाएं आकर भ्रम फैला रही हैं और यह समझना-परखना मुश्किल है कि आखिर सही सूचना क्या है.
और इसके लिए किसी को सिखाया भी नहीं गया है कि इन सूचनाओं में से वे सही सूचना को कैसे ग्रहण करें. कहने का अर्थ है कि न्यू मीडिया के जरिये सूचना ग्रहण करने के बहुत सारे टूल मौजूद हैं, लेकिन सही सूचना को परखने का कोई टूल मौजूद नहीं है. यही वह तथ्य है, जो न्यू मीडिया को गैरजिम्मेदार और अविश्वसनीय बनाता है.
यह अविश्वसनीयता एक तरह से भरोसे के संकट को जन्म देती है कि आखिर किस माध्यम पर भरोसा किया जाये. कभी-कभी तो यह भी होता है कि गलत सूचना पर सारे लोग भरोसा कर लेते हैं, लेकिन आगे चलकर उसका परिणाम बहुत घातक निकलता है. इसलिए इस बात की परख जरूरी है कि कोई सूचना और उसका स्रोत कितना सही है.
एक वेबसाइट पर किसका लेख है, वह लेखक कितना जिम्मेदार है सही सूचना के लिए, वह वेबसाइट कितनी पुरानी है और उसकी ऑथेंटिसिटी (सत्यता) कितनी है, वेबसाइट पर एिडटर्स के डिटेल्स हैं या नहीं, किस संस्था से संबंद्ध है और उसका लोकतांत्रिक सरोकार है कि नहीं, इन महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखते हुए ही किसी वेबसाइट पर लोगों का भरोसा बन सकता है. खासकर उन लोगों का भरोसा, जिनके लिए लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं का मजबूत होना जरूरी है.
लोगों को सिखाया जाना चाहिए कि आखिर वे भरोसे को कैसे जांचे-परखें, क्योंकि भरोसे का संकट बड़ी विपत्तियां लाता है और समाज विकृत होता चला जाता है. भरोसे का संकट नहीं होता तो आज लोग यह कहते नहीं फिरते कि मीडिया बिक गया है. किसी फेक फोटो, फेक वीडियो, फेक न्यूज पर भरोसा कर लेना भी एक तरह से भरोसे का ही संकट है, जिसके घातक परिणाम हम देख रहे हैं.
इसलिए जरूरी है कि सही-सही सूचना के लिए हम प्रयास करें और वेब मीडिया के जरिये यह संभव भी है. हालांकि, वेब मीडिया और वेब जर्नलिज्म का भविष्य क्या होगा, यह बहुत सी बातों पर निर्भर करता है. कोई एक वेब मीडिया संस्थान इसकी गारंटी नहीं बन सकता. लेकिन, हम जो सरोकार लेकर चल रहे हैं, उस पर लोग भरोसा कर रहे हैं, यही वह बात है जो सारे न्यू मीडिया माध्यमों का मूलतत्व बनना चाहिए.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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