मस्तिष्क के संकेतों को ट्रांसक्रिप्ट करेगी स्पीच डिकोडर टेक्नोलॉजी

वैज्ञानिकों ने एक ऐसी स्पीच डिकोडर तकनीक विकसित की है, जो हमारे मस्तिष्क के संकेतों का विश्लेषण कर हम जो कुछ भी बोलना चाहते हैं, उसे बोलने से पहले ही वह बता सकती है. यहां तक की यह तकनीक वास्तविक समय में एक प्रतिलिपि यानी ट्रांसक्रिप्ट भी तैयार कर सकती है. इस तकनीक को विकसित […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 14, 2019 5:11 AM

वैज्ञानिकों ने एक ऐसी स्पीच डिकोडर तकनीक विकसित की है, जो हमारे मस्तिष्क के संकेतों का विश्लेषण कर हम जो कुछ भी बोलना चाहते हैं, उसे बोलने से पहले ही वह बता सकती है. यहां तक की यह तकनीक वास्तविक समय में एक प्रतिलिपि यानी ट्रांसक्रिप्ट भी तैयार कर सकती है.

इस तकनीक को विकसित करने के लिए विशेषज्ञों ने प्रश्नोत्तर के दौरान मानसिक स्थिति को स्कैन किया, ताकि एक ऐसी प्रणाली को प्रशिक्षित किया जा सके, जो संबंधित मस्तिष्क गतिविधियों से स्पीच को डिकोड कर सके. इस तकनीक को विकसित करने के लिए फेसबुक ने विशेषज्ञों को फंड दिया है. यह रिपाेर्ट नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित हुई है.
कॉर्टिकल एक्टिविटी ऐसे की गयी रिकॉर्ड
अपने अध्ययन के दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को के न्यूरोसर्जन एडवर्ड चैंग और उनके सहयोगियों ने मिर्गी का उपचार करा रहे तीन मरीजों के मस्तिष्क की कॉर्टिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड किया.
इस एक्टिविटी को रिकॉर्ड करने के लिए प्रत्येक मरीज से पढ़कर कुछ प्रश्न पूछे गये, जिनका पहले से तय जवाब इन मरीजों ने बोलकर दिया. प्रश्न पूछे जाने और उत्तर दिये जाने के दौरान मरीज ने जिस तरह से प्रश्नों को सुना और फिर उसका उत्तर दिया, उस दौरान मस्तिष्क की जो गतिविधियां रहीं, शोधार्थियों द्वारा उन सभी के आंकड़े एकत्रित किये गये.
इसके बाद इन आंकड़ों का इस्तेमाल एक ऐसी प्रणाली को विकसित करने में किया गया, जो ब्रेन स्कैन से स्पीच का पता लगाने और उसे डिकोड करने में सक्षम हो. इस प्रक्रिया के बाद, परीक्षण में शामिल तीनों व्यक्तियों से कई और प्रश्न सुनने और उनका जवाब खुद की मर्जी से तेज आवाज में देने के लिए कहा गया. इस प्रक्रिया के दौरान एक बार फिर शोधार्थियों द्वारा कॉर्टिकल एक्टिविटिज को स्कैन किया गया.
इस प्रश्नाेत्तर के दौरान शोधार्थियों ने पहले से विकसित ब्रेन-डिकोडिंग मॉडल का इस्तेमाल किया था, जो न सिर्फ इस बात का पता लगाने में सक्षम था कि प्रतिभागी कब सुन या बोल रहे हैं, बल्कि यह भी कि क्या सुना गया या बोला गया. अपने इस अध्ययन के दौरान डॉ चैंग और उनके सहयोगी बोली और सुनी गयी बातों को क्रमश: 61 और 76 प्रतिशत डिकोड करने में सफल रहे.
क्यों खास है यह अध्ययन
यह ऐसा पहला अध्ययन नहीं है, जो यह बताता है कि कॉर्टेक्स के एक विशेष क्षेत्र में स्पीच संबंधी मस्तिष्क की गतिविधियों को डिकोड किया जा सकता है. लेकिन एक ही समय में सुनने और बोलने दोनों की व्याख्या को समझने वाला यह अपनी तरह का िवशेष अध्ययन है.
बोलचाल में असमर्थ लोग कर सकेंगे इस्तेमाल
शोधार्थियों को उम्मीद है कि न्यूरल डिकोडर से डब किये जाने और इसे परिष्कृत यानी रिफाइंड करने के बाद इसे वैसे लोग इस्तेमाल कर सकेंगे, जो बीमारी या चोट के कारण बातचीत करने में असमर्थ हैं.
इंटरनेट साथी प्रोग्राम महिलाओं को बना रहा सशक्त
भा रत के ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए गूगल इंडिया और टाटा ट्रस्ट की डिजिटल साक्षरता पहल अब 2.6 लाख गांवों तक पहुंच चुकी है. बीते महीने कंपनी ने अपनी उपलब्धियों की घोषणा करते हुए बताया कि ग्रामीण भारत के डिजिटल लैंगिक विभाजन को पाटने में इस कार्यक्रम का सराहनीय योगदान है.
कंपनी के अनुसार, वर्ष 2015 में ग्रामीण भारत में जहां महिला-पुरुष डिजिटल लैंगिक विभाजन 1:10 था, वह वर्ष 2018 में घटकर 4:10 आ गया. गूगल और टाटा ट्रस्ट ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत जुलाई 2015 में राजस्थान से इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरुआत की थी.
अपनी चार वर्ष की यात्रा के दौरान इस कार्यक्रम ने 20 राज्यों को अपने दायरे में ले लिया. इसके तहत लगभग 70,000 पूर्ण रूप से प्रशिक्षित इंटरनेट साथी अपने समुदाय में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे 2.6 करोड़ महिलाएं लाभान्वित हुई हैं.
पंजाब-ओड़िशा में होगा विस्तार
आनेवाले दिनों में कंपनी दो नये राज्यों, पंजाब और ओडिशा में इस कार्यक्रम का विस्तार करनेवाली है. पंजाब में इस कार्यक्रम के दायरे में 5,000 गांवों को लाने की योजना है. इसकी शुरुआत होशियारपुर और कपूरथला जिले के पारस रामपुर, कोटली थान सिंह, बुर्ज, और वेहरा से की जायेगी.
वहीं ओडिशा में बालेश्वर के सिंधिया, पुरी के पराकाना और केंद्रपारा के भूइनपुर से शुरू होकर यह कार्यक्रम 16,000 से अधिक गांवों तक विस्तार प्राप्त करेगा. टाटा ट्रस्ट के स्ट्रेटजी हेड, रमन कल्याणकृष्णन के मुताबिक, समावेशी विकास और सामाजिक प्रगति के लिए यह जरूरी है कि ग्रामीण भारत में महिलाओं को पर्याप्त अवसर और ज्ञान मुहैया कराया जाये और यह सब संभव हुआ है इंटरनेट साथी कार्यक्रम के माध्यम से.
ऐसी रही उपलब्धियां
इंटरनेट साथी कार्यक्रम आने के बाद महिलाएं पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वासी हो रही हैं. साथ ही अगली पीढ़ी को सशक्त बनाने में भी मदद कर रही हैं.
लगभग 70 प्रतिशत साथियों का मानना है कि उन्हें अपने गांव में सूचना के स्रोत के रूप में देखा जाता है. जवाब देने, स्कूली बच्चों की मदद करने, खाना पकाने की नयी विधि सीखने, नौकरी तलाशने या व्यवसाय चलाने के लिए लोग लगातार उनसे संपर्क करते हैं. दस में से आठ साथी और उनकी लाभार्थी मानती हैं कि उनके गांव के लोग उनका अधिक सम्मान करते हैं.
वहीं दस में से नौ महिला लाभार्थी खुद को व्यक्त करने और अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए महिला अधिकार में विश्वास करती हैं. वहीं प्रशिक्षण सत्र में भाग लेनेवाली दस में सात महिलाओं ने पाया कि उनके बच्चों की शिक्षा में सुधार हुआ है. इतना ही नहीं, इस कार्यक्रम ने महिलाअों को वित्तीय रूप से सक्षम होने का अवसर दिया है जिससे वे अपने सपनों को पूरा कर पा रही हैं.

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