तेजी से बढ़ती शराब की खपत, बर्बादी की वजह बनता अलकोहल

जहरीली शराब पीने से होनेवाली मौतों और शराब के अवैध कारोबार से जुड़ी खबरें अक्सर सुर्खियों में होती हैं. एक सर्वे दावा करता है कि 10 वर्ष से लेकर 75 आयु वर्ग में देश का लगभग हर सातवां व्यक्ति शराब सेवन का आदी हो चुका है. डब्ल्यूएचओ समेत तमाम संगठनों की रिपोर्ट में शराब सेवन […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 12, 2019 5:44 AM
जहरीली शराब पीने से होनेवाली मौतों और शराब के अवैध कारोबार से जुड़ी खबरें अक्सर सुर्खियों में होती हैं. एक सर्वे दावा करता है कि 10 वर्ष से लेकर 75 आयु वर्ग में देश का लगभग हर सातवां व्यक्ति शराब सेवन का आदी हो चुका है. डब्ल्यूएचओ समेत तमाम संगठनों की रिपोर्ट में शराब सेवन को दुनिया भर में, विशेषकर विकासशील व अविकसित देशों में सबसे बड़ा प्राणघातक माना गया है.
शराब और नशीले पदार्थों के सेवन से जहां बीमारी और अक्षमता का खतरा रहता है, तो वहीं परिवारों की तबाही और बच्चों के अंधकारमय भविष्य की चिंता सबसे बड़ी सामाजिक चुनौती है. शराब सेवन के बढ़ते चलन, दुष्प्रभावों और निदान के उपायों की जानकारी के साथ इन दिनों की विशेष प्रस्तुति…
भारत की व्यवस्थागत समस्या है नशा
प्रो शिव विश्वनाथन
समाजशास्त्री
हमारे देश में जिस तरह से असंवेदनशीलता और असुरक्षा से भरा माहौल है, उस ऐतबार से यह कहा जा सकता है कि हम एक मनोवैज्ञानिक समाज नहीं रह गये हैं. हम संवेदनशीलता को और उम्र की नाजुकी को एक गहरे अर्थ में नहीं समझ पाते हैं, बल्कि समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं. न हमारे पास वर्तमान में मनोवैज्ञानिकता है और न ही अब वह पुरानी पारिवारिक पद्धति बची हुई है, जिसमें लोग अपने बच्चों के भविष्य को हर बुराई से बचाने के लिए तत्पर रहा करते थे.
उस पद्धति में केयरिंग (देखभाल) बहुत महत्वपूर्ण होता था, जो आज सिरे से गायब है. अब तो परिवार में केयरिंग की जगह कमांड सिस्टम ने ले लिया है कि यह करो, वह करो. परिवारों ने केयरिंग के नाम पर उनकी आंखों में अपने सपने बो दिये हैं, जिसे पूरा करने के लिए उन्हें अक्सर नशे का शिकार होना पड़ता है. आज जिस तरह से छात्रों में ड्रग और शराब की लत बढ़ रही है, वह भयानक है. क्या यह त्रासदी नहीं है कि कोई छात्र अपनी क्लास में नशे की हालत में पहुंचे?
प्रतिस्पर्धा से बचाइए
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट हो या फिर लांसेट की, ये हमें हर बार चेताती हैं, लेेकिन हम हर बार इसकी अनदेखी कर देते हैं यह कहकर कि सरकार को नशीले पदार्थों पर रोक लगानी चाहिए. हम यह नहीं सोच पाते कि क्या यह मसला सिर्फ सरकारी स्तर का है? मेरे ख्याल में नहीं. इसके लिए तो पूरा सिस्टम जिम्मेदार है, जिसमें सरकार से लेकर परिवार और स्कूल से लेकर कॉलेज तक सब आते हैं.
हम अपने बच्चों का बचपन इतना मुश्किल बनाते जा रहे हैं, जिसका खामियाजा बड़ा होकर नशे की चपेट में आ जाने के रूप में होता है. हम इस बड़ी समस्या को देखकर सिर्फ रोक या प्रतिबंध की बात करते हैं, लेकन इसकी जड़, जो कि बचपन की नाजुकी में है, को हम बिल्कुल अनदेखा करते हैं और बच्चों के सामने एक हिंसक समाज परोस देते हैं. आप टीवी पर देख लीजिये, मनोरंजन शोज में बच्चे ऐसी-ऐसी बातें करते हैं, जिससे लगता है कि उनकी छोटी सी उम्र का अनुभव बड़े-बड़ों को पार कर गया हो. टीवी अपने आप में एक ड्रग है और यह भी एक तरह की प्रतिस्पर्धा पैदा कर रहा है. स्कूल में टॉप करने की प्रतिस्पर्धा है.
जब बच्चा बड़ा होता है और कॉलेज पास करके नौकरियां खोजने जाता है, तब उसके सामने एक दूसरे तरह की प्रतिस्पर्धा आ खड़ी होती है, तरक्की पाने और दुनिया की हर सुख-सुविधा को अर्जित करने की प्रतिस्पर्धा है. हमने अपने समाज में इतनी चीजों का अभाव बना रखा है कि प्रतिस्पर्धाएं खुद-ब-खुद जन्म लेने लगती हैं, जिससे बचने के लिए समाज में लोग नशे की तरफ रुख कर लेते हैं.
नशाखोरी एक आपराधिक समस्या
इस देश में शराब को लेकर उतनी बड़ी समस्या नहीं है, जितना कि ड्रग लेना. शराब बेचना और पीना तो समाज में दिखता है, लेकिन ड्रग बेचना और उसका इस्तेमाल नहीं दिखता है और इसलिए मालूम नहीं चल पाता कि ड्रग का कारोबार और विस्तार कितना बड़ा है.
शराब पर शोर-शराबा है, लेकिन ड्रग पर खामोशी है. हम क्यों नहीं समझते कि नशाखोरी एक सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि आपराधिक समस्या है. हम इसे सामाजिक समस्या मानकर चलते हैं, इसलिए इस पर लगाम लगाने की हमारी कोशिशें सख्ती भरी नहीं होती हैं.
अगर हम इसे आपराधिक समस्या मानकर चलें, तो हम इसके लिए न सिर्फ सख्त से सख्त कानून ला सकते हैं, बल्कि ड्रग के इस्तेमाल से बचने के लिए नये तरह के जागरूकता वाले संस्थान बना सकते हैं. क्या यह विडंबना नहीं है कि हम सिर्फ रिकॉर्ड तैयार करते हैं कि किस नशे से कितने लोग और कौन लोग शिकार हैं? जबकि होना यह चाहिए था कि सरकार से लेकर पारिवारिक स्तर तक सब मिलकर जागरूकता वाले सामाजिक संस्थानों का निर्माण करें.
ड्रग लेने के कारण
हमारे देश के मध्य वर्ग से आनेवाले छात्रों और युवाओं में सबसे ज्यादा ड्रग का इस्तेमाल होता है, क्या इतनी जानकारी ज्यादा नहीं है हमारे दिमाग को झकझोरने के लिए? एक युवा को किसी बात का गम होता है, तो वह ड्रग ले लेता है.
आत्मविश्वास में कमी आती है, तो वह ड्रग ले लेता है. किसी प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाता है, तो ड्रग ले लेता है. परीक्षाओं का दबाव बढ़ जाता है, तो ड्रग ले लेता है. प्यार नहीं मिलता, तो ड्रग ले लेता है. यानी ड्रग एक ऐसा फैशन बन गया है, जिसे युवा अपने लिए हर दर्द की दवा की तरह इस्तेमाल करता है. और समाज चुप है.
अगर वह शराब पी ले, तो लोग कहने लगते हैं कि देखो वह शराबी हो गया है. लेकिन अपना बच्चा ड्रग लेने लगता है, तो लोग चुप हो जाते हैं कि कहीं बदनामी न हो जाये. आज के भारत में ड्रग एक साइलेंट किलर है, इसे हम जितना जल्दी समझ लें, उतना ही अच्छा.
अखबार-टीवी के कार्यक्रम बदले
हम समस्या के बाद की समस्या की भी अनदेखी करनेवाले लोग हैं. नशे के शिकार बनने से रोकने के लिए जागरूकता का अभाव तो है ही, साथ ही शिकार लोगों के पुनर्सुधार के लिए कोई योजना नहीं है हमारे पास. भविष्य अंधकार में कहीं डूबा जा रहा है, लेकिन हम अपनी सामाजिक योजनाओं में बदलाव नहीं कर रहे हैं. बस जैसे-तैसे चलते रहने के हम आदी हो गये हैं.
एक जमाने में होता था कि सप्ताह के अंत में अखबारों में बच्चों के लिए स्वस्थ मनोरंजन के साथ छोटी-छोटी जानकारियां छापी जाती थीं. बाल कहानियां, कार्टून, सुडोकू या फिर सवाल-जवाब छापे जाते थे, जिसे सब बच्चे मिलकर बड़े चाव से पढ़ते थे. टीवी पर भी अच्छे प्रोग्राम आते थे, जिसे पूरा परिवार बैठकर देखता था. लेकिन अब तो हमारी लाइफस्टाइल ही बदल गयी है, अब अखबार में सप्ताहांत सिनेमा की भद्दी गॉसिप्स छपने लगे हैं और टीवी पर फूहड़ और अश्लील कार्यक्रम आने लगे हैं.
कल्याणकारी योजना नहीं
भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी ज्यादा है और इसी क्षेत्र से ज्यादातर ऐसे लोग आते हैं, जो नशे के शिकार हैं. आमदनी कम है और खर्च ज्यादा है. बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है, जिसके शिकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग बनते हैं. विडंबना यह कि भारत इस पूरे क्षेत्र के लोगों की अनदेखी करता है. लोग कहते हैं कि नशा एक पश्चिमी सभ्यता से आयातित लत है. मेरे ख्याल में ऐसा मानना गलत है. मेरा मानना है कि नशा भारत की व्यवस्थागत समस्या है.
भारत में ड्रग तो अवसाद के कारण पैदा हुई लत है, प्रतिस्पर्धा से उपजे तनाव के कारण पैदा हुई लत है, जो हमारा समाज उन्हें दे रहा है. पीढ़ियां बरबाद करनेवाली इस बड़ी समस्या के समाधान के लिए भारत के पास कोई कल्याणकारी योजना नहीं है. ‘यहां शराब पीना मना है’ या ‘यहां ड्रग लेना प्रतिबंधित है’, बस इन्हीं स्लोगनों से हम काम चला रहे हैं और समझ रहे हैं कि हम बीमारी को खत्म कर रहे हैं.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
इन रूपों में ली जाती है शराब
विश्वभर में कुल शराब का 44.8 प्रतिशत स्पिरिट के रूप में, 34.3 प्रतिशत बीयर के रूप में और 11.7 प्रतिशत वाइन के रूप लिया जाता है. वर्ष 2010 के बाद से दुनिया में पेय पदार्थ को वरीयता देने में मामूली बदलाव हुआ है. सबसे ज्यादा बदलाव यूरोप में हुआ है, यहां स्पिरिट की खपत में तीन प्रतिशत की कमी आयी, जबकि वाइन और बीयर के सेवन में वृद्धि दर्ज हुई.
11 वर्षों में दोगुनी हुई भारत में शराब की खपत
साल 2005 से 2016 के बीच भारत में प्रति व्यक्ति शराब की खपत दोगुनी हो गयी. वर्ष 2005 में भारत में जहां प्रति व्यक्ति शराब की खपत 2.4 लीटर थी, वह 2010 में बढ़कर 4.3 लीटर और 2016 में 5.7 लीटर हो गयी. ग्यारह वर्षों में भारत में शराब का उपभोग दोगुने से अधिक हो गया. दक्षिण-पूर्व एशिया में शराब की खपत में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज हो सकती है.
वैश्विक स्तर पर 30 लाख लोगों की गयी जान
शराब के हानिकारक प्रभाव के कारण वर्ष 2016 में वैश्विक स्तर पर कुछ 30 लाख लोगों की मृत्यु हुई, जिसमें पुरुषों की संख्या 23 लाख और महिलाओं की सात लाख थी.
वर्ष 2016 में शराब सेवन की वजह से वैश्विक स्तर पर होनेवाली कुल मौतों में 28.7 प्रतिशत की मौत चोट/घाव/आकस्मिक आघात, 21.3 प्रतिशत की पाचन संबंधी बीमारियों, 19 प्रतिशत की हृदय संबंधी बीमारियों, 12.9 प्रतिशत की संक्रामक बीमारियों और 12.6 प्रतिशत की कैंसर के कारण हुई.
वर्ष 2016 में वैश्विक स्तर पर 7.2 प्रतिशत लोगों की अकाल मृत्यु का कारण शराब था. कुल मृत व्यक्तियों में 20 से 39 आयु वर्ग के 13.5 प्रतिशत की मौत के लिए शराब जिम्मेदार रहा.
वर्ष 2016 में शराब सेवन के कारण होनेवाली बीमारियां उच्च-मध्य आय और उच्च आय वाले देशों के मुकाबले कम-आय और कम-मध्यम आय वाले देशों में उच्चतम स्तर पर रहीं.
क्या कहती है केंद्र सरकार की रिपोर्ट
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इसी वर्ष मार्च में राष्ट्रीय ड्रग सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी किया गया था. इस सर्वेक्षण के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर 10 से 75 वर्ष आयु वर्ग के 27.3 लोग शराब का सेवन करते हैं. इनमें 43 प्रतिशत लोग एकल अवसर पर औसतन चार से अधिक मादक पेय पदार्थों का सेवन करते हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार, दिन के समय शराब की खपत लगभग 21 प्रतिशत है. वहीं शराब के नशे के कारण 26 प्रतिशत मामले मारपीट के और चार प्रतिशत मामले सड़क दुर्घटना के सामने आये थे.
देश में 10 से 17 वर्ष आयु वर्ग समेत सभी आयु वर्ग के लोग शराब पीते हैं. हमारे देश में शराब पीनेवालों में पुरुषों का प्रतिशत (27.3 प्रतिशत) महिलाओं (1.6 प्रतिशत) से बहुत ज्यादा है.
प्रतिबंध: कहीं पूरा कहीं अधूरा
बिहार : यहां अप्रैल 1, 2016 से ही पूर्ण शराबबंदी लागू है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा लागू इस नये प्रतिबंध कानून में शराब सेवन पर सात साल की जेल और आर्थिक दंड का प्रावधान है.
हरियाणा : इस राज्य में 1996 में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई थी, लेकिन 1998 में इसे हटा दिया.
गुजरात : बॉम्बे स्टेट (आज के महाराष्ट्र और गुजरात) ने 1948 से 1950 के बीच और फिर से 1958 में शराब पर निषेधाज्ञा लागू की थी. यह कानून मई 1, 1960 को गुजरात के अलग राज्य बन जाने के बाद से वहां लागू है.
महाराष्ट्र : 1949 में लागू बॉम्बे स्टेट निषोधाज्ञा कानून यहां आज भी लागू है, पर शराब पर पूरी तरह से पाबंदी नहीं है.
आंध्र प्रदेश : मद्रास स्टेट में 1952 में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई थी. आंध्र प्रदेश में 1994 में नया निषेधाज्ञा कानून लागू किया था, लेकिन 1997 में इसे रद्द कर दिया गया.
तमिलनाडु : मद्रास स्टेट से बाहर आने के बाद भी तमिलनाडु में पहले से लागू निषेधाज्ञा कानून लागू रहा. लेकिन डीएमके सरकार ने 1971 में इसे रद्द कर दिया, लेकिन 1974 में इसी सरकार ने निषेधाज्ञा कानून को पुन: लागू किया. साल 1981 में अन्नाद्रमुक सरकार ने प्रतिबंध को हटा दिया. कुछ साल पहले वहां आंशिक पाबंदी के कुछ नियम लागू हुए हैं.
केरल : वर्ष 2014 में आेमन चांडी सरकार ने चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी कानून लागू किया है, पर यहां भी पूर्ण प्रतिबंध नहीं है.
इन राज्यों के अलावा मणिपुर में भी 1991 में पूर्ण शराबबंदी लागू किया गया, लेकिन 2002 में इसमें आंशिक छूट प्रदान की गयी. वहीं नागालैंड में 1989 से पूर्ण शराबबंदी कानून लागू है. मिजोरम में 1995 में पूर्ण शराबबंदी लागू हुआ था, जिसमें समय-समय पर बदलाव हुए. लक्षद्वीप अकेला ऐसा केंद्र-शासित प्रदेश है, जहां शराब के उपभोग और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है.
विश्व व्यापार संगठन की रिपोर्ट
शराब सेवन पर सितंबर, 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी.
वैश्विक स्तर पर 2016 में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की वैश्विक आबादी के आधे से अधिक (57 प्रतिशत या 3.1 अरब) लोगों ने पिछले 12 महीने में शराब पीने से परहेज किया था. वहीं कुछ 2.3 अरब लोग नियमित पीनेवाले थे.
शराब का सेवन करनेवाली आधी से अधिक आबादी तीन क्षेत्रों- अमेरिका, यूरोप और पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र- में है.
वर्ष 2000 से अफ्रीकी, अमेरिकी, पूर्वी भूमध्यसागरीय और यूरोपीय क्षेत्रों में शराब पीनेवालों के प्रतिशत में कमी आयी है. जबकि पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र में इनकी संख्या 51.5 प्रतिशत से बढ़कर 53.8 हो गयी है. दक्षिण एशिया क्षेत्र में इनकी संख्या स्थिर बनी हुई है. 15 वर्ष से अधिक आयु की वैश्विक आबादी का प्रति व्यक्ति शराब उपभोग 2005 के 5.5 लीटर से बढ़कर 2010 में 6.4 लीटर हो गया और वर्ष 2016 में भी यह स्तर 6.4 लीटर पर बना हुआ था. यूरोपीय क्षेत्र के देशों में प्रति व्यक्ति शराब का स्तर उच्चतम था.
अफ्रीकी क्षेत्र, अमेरिकी क्षेत्र और पूर्वी भूमध्यरेखीय क्षेत्र में जहां वर्ष 2005 से 2016 के बीच प्रति व्यक्ति शराब उपभोग स्थिर बना हुआ था, वहीं यूरोपीय क्षेत्र में यह उपभोग वर्ष 2005 के 12.3 लीटर से कम होकर वर्ष 2016 में 9.8 लीटर हो गया. जबकि पश्चिमी प्रशांत महासागर और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति शराब उपभोग में इस अवधि में वृद्धि देखी गयी है.
विश्व में खपत हाेनेवाली कुल शराब के एक-तिहाई हिस्से (25.5 प्रतिशत) का कोई आधिकारिक हिसाब नहीं है.दुनियाभर में 15 से 19 वर्ष के युवाओं में एक तिहाई से ज्यादा (26.5 प्रतिशत) शराब पीते हैं. इनमें सर्वाधिक संख्या यूरोपीय क्षेत्र में है (43.8 प्रतिशत), उसके बाद अमेरिकी क्षेत्र (38.2 प्रतिशत) और पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र (37.9 प्रतिशत) का स्थान है.
वर्ष 2025 तक अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के बीच प्रति व्यक्ति कुल शराब उपभोग में वृद्धि का अनुमान है. वर्ष 2020 तक विश्व में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 6.6 लीटर और 2025 तक 7.0 लीटर हो सकती है.
वैश्विक स्तर पर 70 प्रतिशत हुई शराब की खपत में वृद्धि
वर्ष 1990 से 2017 के बीच शराब के सेवन के संबंध में 189 देशों में हुए अध्ययन पर हाल ही में लांसेट जर्नल में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इस रिपोर्ट के अनुसार, शराब के बढ़ते उपभोग और आबादी के बढ़ने से इस अवधि में वैश्विक स्तर पर शराब की खपत में 70 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है. वर्ष 1990 में वैश्विक स्तर पर सालाना 20,999 मिलियन लीटर शराब का उपभोग होता था, वह 2017 में बढ़कर 35,676 मिलियन लीटर पहुंच गया.
भारत में 38 प्रतिशत बढ़ा उपभोग
वर्ष 2010 से 2017 के बीच भारत में शराब का उपभोग 38 प्रतिशत बढ़ा है. यहां वर्ष 2010 में जहां प्रत्येक वयस्क प्रतिवर्ष 4.3 लीटर शराब का सेवन करता था, वह 2017 में बढ़कर 5.9 लीटर पर पहुंच गया. समान अवधि में अमेरिका (9.3 से 9.8 लीटर) और चीन (7.1 से 7.4 लीटर) में वयस्कों द्वारा शराब के उपभोग में मामूली वृद्धि दर्ज हुई है. वहीं 2010 में ब्रिटेन (यूके) में जहां इसकी खपत 12.3 लीटर थी वह 2017 में गिरकर 11.4 लीटर पर आ गयी.
रिपोर्ट कहती है कि शराब के उपभोग में दर्ज वृद्धि निम्न और मध्य आय वाले देशों में ज्यादा है, जबकि उच्च आय वाले देशों में होनेवाला कुल उपभोग लगभग स्थिर बना हुआ है.
वर्ष 1990 से पहले उच्च आय वाले देशों में शराब का सेवन ज्यादा होता था और इसमें यूरोप शीर्ष पर था. लेकिन पूर्वी यूरोप में शराब सेवन में कमी आने और चीन, भारत व वियतनाम जैसे मध्य-आय वाले देशों में इसके बढ़ते सेवन से अब इस पैटर्न में बदलाव आया है. इस प्रवृत्ति के 2030 तक ऐसे ही बने रहने का अनुमान है.
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 2030 तक कुल वयस्कों का 50 प्रतिशत शराब का सेवन करने लगेगा, जबकि लगभग एक चौथाई (23 प्रतिशत) कम से कम महीने में एक बार बहुत ज्यादा मात्रा में (एक बार में 60 ग्राम या उससे अधिक मात्रा में) शराब पीयेंगे.
मालदोवा में उच्चतम रही शराब की खपत
वर्ष 2017 में उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों में शराब का सेवन निम्नतम था. इन देशों में प्रतिवर्ष प्रति वयस्क ने एक लीटर से भी कम शराब पी. जबकि मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों में इसका उपभोग सर्वाधिक रहा. इन देशों में शराब का उपभोग 12 लीटर से भी ज्यादा (कुछ मामलों में) प्रतिवर्ष प्रति वयस्क रहा.
देश के स्तर पर देखा जाये तो 2017 में मालदोवा में इसका सेवन उच्चतम स्तर (प्रतिवर्ष प्रति वयस्क 15 लीटर), जबकि कुवैत निम्नतम स्तर (प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति 0.005 लीटर)पर था.
बढ़ रहा है अलकोहल उपभोग
वैश्विक स्तर पर 1990 में हर वर्ष प्रति वयस्क जहां अलकोहल की खपत 5.9 लीटर थी, उसके 2030 तक बढ़कर 7.6 लीटर हो जाने का अनुमान है.
वर्ष 2010 से 2017 के बीच भारत, वियतनाम और म्यांमार के साथ दक्षिणपूर्व एशिया के देशों में इसकी खपत में 34 प्रतिशत (3.5 लीटर से 4.7 लीटर) तक वृद्धि हुई.
इसी अवधि में यूरोप में इसकी खपत में 12 प्रतिशत तक कमी आयी है, खासकर पूर्वी सोवियत गणराज्य जैसे अजरबैजान, किर्गीस्तान, यूक्रेन, बेलारूस व रूस में. अफ्रीकी, अमेरिकी और पूर्वी भूमध्य क्षेत्रों में भी खपत का स्तर समान रहा है.

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