सुनिश्चित हो किसानों की आय

देविंदर शर्मा कृषि अर्थशास्त्री सरकार ने अंतरिम बजट में किसानों के बारे में जो बात सोची है, वह ठीक जान पड़ती है. लेकिन, क्या सोच कर उसने छह हजार रुपये सालाना का प्रावधान किया है, यह कुछ समझ नहीं आया. मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि सरकार ने बजट में किसानों को जो […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 3, 2019 7:07 AM

देविंदर शर्मा

कृषि अर्थशास्त्री

सरकार ने अंतरिम बजट में किसानों के बारे में जो बात सोची है, वह ठीक जान पड़ती है. लेकिन, क्या सोच कर उसने छह हजार रुपये सालाना का प्रावधान किया है, यह कुछ समझ नहीं आया. मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि सरकार ने बजट में किसानों को जो छह हजार सालाना देने का प्रावधान किया है, इससे भयानक कृषि संकट से कैसे निबटा जा सकता है.

यह भी समझ में नहीं आता कि 500 रुपये मासिक के अनुदान से किसान आत्महत्या कैसे रुक पायेगी. मुझे तो यही समझ में नहीं आता कि सरकार ने यह सब किस दिव्य-दृष्टि के तहत किया है. क्या किसान का जीवन-स्तर महज पांच सौ रुपये में ऊंचा उठ जायेगा?

एक बात बहुत स्पष्ट है कि सरकार ने यह प्रावधान करके अपना ही नुकसान किया है. यह पांच सौ रुपये सरकार के खजाने से भी निकल जायेगा और किसानों तक पहुंच कर भी उन्हें कोई लाभ नहीं देगा. इसका मतलब साफ है कि यह पैसा न इधर का रहा, न उधर का रहा. यानी सरकार का पूरा पैसा बरबाद हो जायेगा. तेलंगाना और ओड़िशा में किसानों को लेकर अच्छी योजनाएं चल रही हैं, हालांकि दोनों अलग तरह की योजनाएं हैं.

केंद्र सरकार को तो कम से कम इन दो राज्यों से सीख लेते हुए उनके योजनाओं में किये गये प्रावधानों से बेहतर प्रावधान होना चाहिए था. आखिर सरकार किसानों को 12 हजार रुपये प्रतिमाह क्यों नहीं दे पाती? यह कोई ज्यादा नहीं है और इसका सरकार पर उतना बोझ नहीं पड़ेगा, जितना कि रोना राेया जाता है.

साल 2008-09 से अगर आप देखें, तो हर साल कॉरपोरेट को 1.86 लाख करोड़ रुपये सरकार ने दिये हैं. कॉरपोरेट को यह रकम देना अब तक जारी है. यानी हम दस साल में 18 लाख 60 हजार करोड़ रुपये अब तक कॉरपोरेट को दे चुके हैं. लेकिन, इसका कोई बहुत बड़ा फायदा तो नहीं मिला देश को. तो फिर वित्त मंत्री इसे बंद क्यों नहीं करते और उस पैसे को कृषि में क्यों नहीं लगाते?

ऐसा करने से न तो वित्तीय घाटा बढ़ता और न ही यह सवाल उठता कि पैसा कहां से आयेगा. बीते दस साल में कॉरपोरेट को दिये जा रहे पैसे पर किसी अर्थशास्त्री ने सवाल नहीं उठाया कि इसे बंद कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह पैसा व्यर्थ जा रहा है. किसी ने यह नहीं कहा कि इससे वित्तीय घाटा बढ़ा रहा है. आखिर क्या कारण है इस देश में कि जैसे ही किसानों को देने की बात होती है, सब लोग डंडा लेकर पूछने लगते हैं कि आिखर पैसा आयेगा कहां से. सरकार की सारी नीतियां पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और किसानों को लाभ पहुंचानेवाली नहीं हैं.

मैं हमेशा कहता हूं कि किसानों के लिए एक निश्चित आय का आयोग बनाया जाना चाहिए यानी ‘फार्मर्स इनकम कमीशन’. खेती-किसानी संकट में है. चुनौती यह है कि एक किसान को प्रतिमाह अठारह हजार रुपये की आय सरकार सुनिश्चित करे. इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह अच्छी नीतियां बनाये. बाकी कृषि सुधारों के लिए तो यह कहना मुश्किल है कि सरकार कुछ कर पायेगी. लेकिन अगली सरकार को किसान की निश्चित आय के बारे में सोचना ही चाहिए.

Next Article

Exit mobile version