मनुष्य को पूरी तरह से जागृत करते विवेकानंद के सिद्धांत
मैंने जब स्वामी विवेकानंद के कामों को अच्छी तरह जाना और उसे समझने के बाद मेरा जो अपने देश के प्रति प्यार था, वह हजारों गुणा अधिक हो गया. उनकी लेखनी किसी परिचय की मोहताज नहीं है. वह स्वयं ही अत्यंत आकर्षित करते हैं. – महात्मा गांधी विवेकानंद ने कहा था कि हर व्यक्ति में […]
मैंने जब स्वामी विवेकानंद के कामों को अच्छी तरह जाना और उसे समझने के बाद मेरा जो अपने देश के प्रति प्यार था, वह हजारों गुणा अधिक हो गया. उनकी लेखनी किसी परिचय की मोहताज नहीं है. वह स्वयं ही अत्यंत आकर्षित करते हैं.
– महात्मा गांधी
विवेकानंद ने कहा था कि हर व्यक्ति में भगवान की शक्ति है, जो यह चाहती है कि हम अपनी सेवा गरीबों के माध्यम से करें. यह सिद्धांत इंसान के अंहकारपूर्ण स्वार्थ से असीमित आजादी का रास्ता दिखाता है. विवेकानंद के सिद्धांत मनुष्य को पूरी तरह से जागृत करते हैं. यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद को पढ़ें.
– रवींद्रनाथ टैगोर
मैं हर्षोन्माद के बिना विवेकानंद के बारे में कुछ भी नहीं लिख सकता हूं. उनके बलिदान में लापरवाही, उनके कार्यों में निरंतरता, असीम प्यार, उनकी सोच में गहराई, भावनाओं में हरियालीपन, अपने हमलोगों में निष्ठुरता, लेकिन एक बच्चे की तरह निष्कपट और सहज. वे हमारी दुनिया के दुर्लभ व्यक्तित्व थे.
– नेताजी सुभाषचंद्र बोस
उन्होंने वेदांत के अद्वैतवाद की व्याख्या की, जो न सिर्फ आध्यात्मिक था, बल्कि तर्कसंगत भी और जिसकी संगति प्रकृति के वैज्ञानिक अनुसंधान से मिलती-जुलती थी. स्वामी विवेकानंद के जैसा शख्स आपको कहां मिल सकता है? उन्होंने जो लिखा है, उसे पढ़ें और उनके द्वारा दी गयी शिक्षा से सीखें. आप ऐसा करते हैं, तो आप असीम शक्ति प्राप्त करेंगे. उनके विवेक और बुद्धिमत्ता के फव्वारे से, उनके जोश से और उनमें बहने वाली आग से लाभ लें.
– पंडित जवाहरलाल नेहरू
धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है
वर्ष 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुई विश्व धर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे थे, जहां यूरोप-अमेरिका के लोगों द्वारा गुलामी झेल रहे भारतीयों को हीन दृष्टि से देखा जाता था. एक अमेरिकी प्रोफेसर के प्रयास से स्वामी विवेकानंद को बोलने के लिए थोड़ा समय मिला. उनके विचार सुन कर वहां मौजूद सभी विद्वान चकित रह गये. उनकी कही खास बातें.
अमेरिकी भाइयों और बहनों, आप ने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है, उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.
मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं, जिन्होंने यह जाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है.
मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक की स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.
मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं, जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताये गये लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इस्राइल की वे पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.
मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं, जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं. ‘जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं.’
सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्यताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिये गये.
यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते, तो मानव समाज कहीं ज्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है, लेकिन उनका वक्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी कट्टरता, हठधर्मिता व दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.