मां दुर्गा का प्रकाट्य और वीर बर्बरीक को अभय दान

सुरेश चंद्र पौद्दार जगत जननी भगवती मां दुर्गा का प्रकाट्य आसुरी शक्तियों के विनाश और धर्म रक्षा के लिए समस्त देव गणों के तेज से हुआ. महिषासुर के आतंक से व्याकुल देवगणों की व्यथा सुन त्रिदेव के क्रोध से भयानक ज्वाला भड़की और उस ज्वाला में नारी स्वरूप का अक्स उभरा. महादेव के तेज से […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 18, 2018 5:58 AM

सुरेश चंद्र पौद्दार

जगत जननी भगवती मां दुर्गा का प्रकाट्य आसुरी शक्तियों के विनाश और धर्म रक्षा के लिए समस्त देव गणों के तेज से हुआ. महिषासुर के आतंक से व्याकुल देवगणों की व्यथा सुन त्रिदेव के क्रोध से भयानक ज्वाला भड़की और उस ज्वाला में नारी स्वरूप का अक्स उभरा.

महादेव के तेज से नारी स्वरूप का मुख प्रकट हुआ – यमराज के तेज से केश – भगवान विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से वक्ष – सूर्य केतेज से चरण- कुबेर के तेज से नासिका – प्रजापति के तेज से दंत – अग्नि के तेज से नैत्र- संध्या के तेज से भृकुटि और वायु के तेज से कर्ण बने – तब जगत जननी अवतरित हुई. देवताओं ने उन्हें प्रणाम किया, सप्त ऋषियों के पुष्प वृष्टिकी, अप्सराओं ने मंगलगान किया और नभ के चांद सितारों ने मां की आरती उतारी.

देवताओं ने दुर्गा को दिव्य अस्त्र व शस्त्रों से सुशोभित किया. भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र, इंद्र ने बज्र, वरुण देव ने शंख, अग्नि ने शक्ति, यमराज ने कालदंड, पवन देव ने धनुष व वाण, प्रजापति ने स्फटिक माला, ब्रह्मा ने कमंडल, सूर्य देव ने तेज, समुद्र ने उज्ज्व हार- दिव्य चूड़ामणि-रत्नों की अंगुठियां, पर्वतराज ने सवारी के लिए सिंह और कुबेर ने मधु पात्र भेंट किये. संपूर्ण मां का जय जयकार कर धन्य हुई. दुर्गा सप्तषती में यह पूर्ण विवरण उल्लिखित है. मां के इस दिव्य स्वरूप का वंदन पूजन युगों से किया जा रहा है. प्रकारांतर में मां दुर्गा ने नौ स्वरूप धारण किये.

त्रेता के बाद द्वापर में पांडव कुल में मोर्वी की कोख से वीर बर्बरीक का अवतार हुआ घटोत्कच नंदन मोर्वी पुत्र युगद्रष्टा श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय था. श्री कृष्ण की प्रेरणा से वीर बर्बरीक ने महीसागर के संगम के गुप्त क्षेत्र में नारद मुनि द्वारा आमंत्रित मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की. तीन वर्षों तक नौ दुर्गा की तपस्या और आराधना से प्रसन्न होकर नौ दुर्गा ने बर्बरीक को प्रत्यक्ष दर्शन दिये और बर्बरीक को ऐसा दुर्लभ बल प्रदान किया जोतीन लोकों में किसी के पास नहीं है. तीन अज्य बाण प्रदान कर भगवती ने बर्बरीक को जगत कल्याण व धर्मरक्षा के लिए आशीर्वाद दिया.

महाभारत युद्ध से पूर्व वीर बर्बरीक के शीश दान के बाद जब पांडव कुल व्यथित हुआ तब नौ दुर्गा ने वहां प्रकट हो शीश पर अमृत वर्षा की. श्रीकृष्ण द्वारा बर्बरीक को श्याम नाम प्रदान करनेव कलयुग में सदैव पूजित होने का वरदान देने के बाद

नौ दुर्गा ने बर्बरीक के शीश

(श्याम प्रभु) पर पुष्प वृष्टि कर आरती उतारी. तभी से बर्बरीक तीन बाणधारी श्याम प्रभु और प्रकारांतर में खाटू में प्रकट हो कलयुग के देवस्वरूप पूजित हुए.

श्री श्याम देव का दिव्या शीश अग्रसेन पथ पर स्थित श्री श्याम मंदिर में रजत सिंहासन पर विराजमान है जहां सैकड़ों भक्त प्रतिदिन मन वांछित फल प्राप्त करते हैं. यहां भादौ व फाल्गुन मास में तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है.

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