हिंदी में तेजी से अपने पांव पसार रही है युवा रचनाशीलता

विजयश्री तनवीर रचनाकार हिंदी दिवस एक ऐसा अवसर है, जिसके माध्यम से विश्वभर के हिंदी भाषियों को एक सूत्र में बांधा जा सकता है. मगर हिंदी को सही सम्मान दिलाने के लिए हमें उससे प्रेम करना होगा. हर दिन को हिंदी दिवस बनाना होगा कि हिंदी सिर्फ कहनेभर को भाषा न रह जाये, बल्कि हमें […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 14, 2018 7:45 AM

विजयश्री तनवीर

रचनाकार

हिंदी दिवस एक ऐसा अवसर है, जिसके माध्यम से विश्वभर के हिंदी भाषियों को एक सूत्र में बांधा जा सकता है. मगर हिंदी को सही सम्मान दिलाने के लिए हमें उससे प्रेम करना होगा. हर दिन को हिंदी दिवस बनाना होगा कि हिंदी सिर्फ कहनेभर को भाषा न रह जाये, बल्कि हमें हिंदीभाषी होने पर गर्व हो. अपनी मूल भाषा को उपेक्षित कर दूसरे राष्ट्र की भाषा पर आश्रित हो जाना एक तरह की सांस्कृतिक गुलामी है. चाइनीज, स्पैनिश और अंग्रेजी के बाद हिंदी विश्व में सबसे ज्यादा बोली और समझी जानेवाली भाषा है.

साल 2009 में दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन ने हिंदी को अपनाकर इसके महत्व की गवाही दी है. आंकड़े कहते हैं कि हिंदी भाषियों में इन दिनों 94 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है. यह एक अच्छी खबर है. लेकिन, इसके बावजूद मन में हमेशा एक सवाल रहा कि इतने बड़े पैमाने पर बोली और समझी जानेवाली यह भाषा क्या उसी पैमाने पर पढ़ी जानेवाली भाषा भी है! लंबे समय तक हिंदुस्तान में हिंदी उपेक्षित रही है. हिंदी साहित्य अपनी क्लिष्टता और दुरूहता के कारण एक ऐसे भव्य और आलीशान महल की तरह रहा, जहां विद्वानों के अलावा आम जनों का प्रवेश वर्जित रहा. आम जन की तुलना में विद्वान कभी अधिक न थे. फलस्वरूप हिंदी साहित्य को दीमक लगने लगी. हिंदी की मोटी-मोटी किताबें समृद्ध हिंदी वालों के बुकशेल्फ का सजावटी सामान हो गयीं.

बीते कुछ बरसों में नये लेखकों ने हिंदी को हिंदुस्तानी बनाकर उसे जन-जन की भाषा बनाने का काम किया है. प्रकाशकों ने भी हिंदी के प्रचार-प्रसार की मुहिम में पूरा साथ निभाया है. हिंदी किताबों के प्रति लोगों का बढ़ता रुझान अच्छे संकेत हैं. हिंदी किताबें आज बेस्टसेलर होने लगी हैं. जहां प्रकाशकों को गद्य की तीन सौ किताबें बेचना मुहाल था (कविता का हाल और भी बदतर था), वहां यह संख्या हजारों में पहुंच गयी है. परिवर्तन संसार का नियम है. किसी भी चीज को अपनाने के लिए बहुत जरूरी है कि वह सरल और सहज हो. अब काव्य के साथ गद्य भी अपनी परंपरागत वर्जनाओं को लांघकर बाहर आया है. युवा रचनाशीलता अपने पांव पसार रही है. लेखन में नये तेवर और नये रंग दिखायी देने लगे हैं. मैं हिंदी के लिए सारे देश में एक सुगबुगाहट महसूस कर रही हूं. सोशल मीडिया पर भी हिंदी के प्रति रुचि बढ़ी है. हिंदी साहित्य को रुचिकर और उपयोगी बनाये रखने के लिए जरूरत है कि नये लेखकों को वरिष्ठों का उचित मार्गदर्शन और भरपूर तवज्जो मिले. हिंदी दिवस पर तमाम हिंदी प्रेमियों को मेरी शुभकामनाएं.

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