सही बॉडी पोस्चर व बचाव से दूर रहेगा डेस्क जॉब का गर्दन व कमर दर्द

कमर और गर्दन दर्द की समस्या एक आम स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है. 90 प्रतिशत लोग अपने जीवन के किसी-न-किसी स्तर पर कमर दर्द से पीड़ित रहते हैं. खान-पान संबंधी गलत आदतें, शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना, गैजेट्स के साथ अधिक समय बिताना कमर दर्द के सबसे बड़े रिस्क फैक्टर्स हैं. कामकाजी लोगों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 17, 2018 9:36 AM
कमर और गर्दन दर्द की समस्या एक आम स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है. 90 प्रतिशत लोग अपने जीवन के किसी-न-किसी स्तर पर कमर दर्द से पीड़ित रहते हैं. खान-पान संबंधी गलत आदतें, शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना, गैजेट्स के साथ अधिक समय बिताना कमर दर्द के सबसे बड़े रिस्क फैक्टर्स हैं. कामकाजी लोगों में कमर व गर्दन दर्द की समस्या तेजी से बढ़ रही है, विशेषकर उन युवाओं में, जो आइटी इंडस्ट्री या बीपीओ में डेस्क जॉब करते हैं या कंप्यूटरके सामने अधिकतर समय बिताते हैं.
क्यों होता है कमर दर्द : लंबे समय तक कुर्सी पर बैठे रहने से कशेरूकाओं के बीच स्थित शॉक-एब्जार्बिंग डिश पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और कमर की मांसपेशियां थक जाती हैं. गलत पॉस्चर में बैठना इस स्थिति को और गंभीर बना देता है. इसके अलावा आरामतलबी होना भी अहम कारणों में से है. जो लोग शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं रहते या अपने खाली समय में भी कंप्यूटर और मोबाइल से चिपके रहते हैं, उन्हें कमर दर्द की समस्या अधिक घेरती है. कुछ और कारणों को भी जानते हैं.
मोटापा : शरीर के मध्य भाग में अतिरिक्त भार होना पेल्विस को आगे की ओर खींचता है और कमर के निचले हिस्से पर दबाव डालता है. वजन अधिक बढ़ने से रीढ़ की हड्डी के छोटे-छोटे जोड़ों में टूट-फूट जल्दी हो जाती है और डिस्क भी जल्दी खराब हो जाती है.
धूम्रपान : ज्यादा धूम्रपान स्पाइन के ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डियों की दूसरी समस्याओं को बढ़ा देता है. ऑस्टियोपोरोसिस से स्पाइन के फ्रैक्चर होने की आशंका बढ़ जाती है. जो लोग धूम्रपान करते हैं, उनमें धूम्रपान न करनेवालों की तुलना में कमर के निचले हिस्से के दर्द की समस्या तीन गुनी अधिक होती है. इस दर्द को नजरअंदाज न करें तथा शुरुआत में ही डॉक्टर से संपर्क करें. साथ ही निर्देशानुसार जीवनशैली में जरूरी बदलाव लाएं.
कैसे करें अपना बचाव
पोषक भोजन लें : पोषक भोजन का सेवन करें, जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो.
वर्कआउट : फिजिकली एक्टिव रहें, नियमित एक्सरसाइज और योग करें. पैदल चलना बोन मास को बढ़ाने में सहायक होता है. रेगुलर वर्कआउट करने से वजन कंट्रोल में रहता है.
काम के बीच ब्रेक लें : अपने काम के बीच में थोड़ी देर का ब्रेक लें. हर घंटे में एक बार अपनी कुर्सी से उठें तथा अपनी गर्दन और कमर को 30 सेकेंड तक स्ट्रेच करें. कुर्सी पर बैठे-बैठे गर्दन को विपरीत दिशा में दायें-बायें, आगे-पीछे हाथों से 5-5 सेकेंड धकेलें. स्मूदली ऊपर-नीचे, दायें-बायें भी 10-10 सेकेंड कर सकते हैं, जिस भी पोजिशन में आराम मिले. ऐसा पूरे वर्किंग आवर में रोज कम-से-कम तीन बार करें.
एरगोनॉमिक्स को सुधारें : एरगोनॉमिक्स में आता है कि आप कैसे बैठें, कंप्यूटर की पोजीशन क्या हो, की-बोर्ड कहां हो, टेबुल और कुर्सी की हाइट कितनी हो. कंप्यूटर की स्क्रीन को आंखों के लेवल से 15-20 डिग्री नीचे रखें. गर्दन पर दबावन पड़े, इसके लिए वायरलेस की-बोर्ड और मॉउस का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, क्योंकि आप इन्हें आरामदायक स्थिति में रख सकते हैं.
बॉडी पोस्चर ठीक रखें : बॉडी पॉस्चर ठीक नहीं होने से रीढ़ की हड्डी का अलाइनमेंट बिगड़ जाता है. इससे कमर के निचले हिस्‍से और गर्दन में दर्द होता है. कमर दर्द से बचने के लिए हमेशा कमर को सीधी और पीछे की ओर करके इस तरह बैठें कि शरीर का भार दोनों हिप्‍स पर बराबर हो. हर 30 मिनट के बाद अपनी पोजीशन बदलें.
क्या है उपचार
डॉ आदित्य गुप्ता
निदेशक, न्यूरोसर्जरी, अग्रिम इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेंज
आर्टेमिस हॉस्पीटल, गुरुग्राम
कमर के सामान्य दर्द को तो जीवनशैली में परिवर्तन से ठीक किया जा सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में सर्जरी जरूरी हो जाता है. जब सर्जरी से भी दर्द ठीक न हो, तो स्पाइनल कॉर्ड पेसमेकर का प्रयोग किया जाता है.
सर्जरी : सर्जरी द्वारा पूरी डिस्क को या आंशिक रूप से बाहर निकाल लिया जाता है. वहां कृत्रिम डिस्क प्रत्यारोपित की जाती है. स्पाइन फ्यूजन द्वारा भी कमर की मजबूती पुन: कायम की जा सकती है. 1-3 महीने आराम करने की सलाह दी जाती है.
ओजोन थेरेपी : यह अत्याधुनिक उपचार है. पूरी प्रक्रिया में एक-एक घंटे की छह सीटिंग तीन हफ्ते के दौरान लेनी होती है. यह एक माइक्रोस्‍कोपिक सर्जरी है. इसमें चीरा भी नहीं लगता. इसमें ओजोन को डिस्क के आंतरिक हिस्से तक पहुंचाया जाता है.
स्पाइनल कॉर्ड पेसमेकर
पेसमेकर फॉर द स्पाइनल कॉर्ड’ कमर दर्द का अत्याधुनिक उपचार है. इसके द्वारा स्पाइनल कॉर्ड से संबंधित सभी प्रकार के दर्द, जैसे- ब्रैंकियल प्लेक्सस इंज्युरी के दर्द का भी प्रभावी इलाज किया जाता है. डिवाइस को रोगी के त्वचा के नीचे लगाया जाता है. इसके बाद स्पाइनल कॉर्ड स्पेस में इलेक्ट्रोड, जिसे ‘एपिड्यूरल स्पेस’ कहते हैं, रखा जाता है.
इस स्पेस में कुछ मिली एंपीयर के करंट के साथ हाइ फ्रीक्वेंसी का इलेक्ट्रिकल इंपल्स उत्पन्न होता है, जो स्पाइनल कॉर्ड से होकर ब्रेन तक पहुंचने वाले दर्द के संकेत को बीच में ही रोक कर उसे निष्प्रभावी कर देता है. इससे दर्द कम हो जाता है. पेसमेकर को छोटी-सी सर्जरी से इंप्लांट किया जाता है, जिसे जरूरत के हिसाब से ऑन-ऑफ किया जा सकता है. चाहें तो चौबीस घंटे इस्तेमाल कर सकते हैं या केवल दिन में.

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