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मिथिलेश झा जनलोकपाल बिल के लिए दिल्ली में एक के बाद एक आंदोलन कर राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरनेवाले अन्ना हजारे ने हाल में एलान किया कि वह देश के 50 ईमानदार निर्दलीय प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे. लेकिन, दिल्ली के रामलीला मैदान में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनकी रैली के […]

मिथिलेश झा

जनलोकपाल बिल के लिए दिल्ली में एक के बाद एक आंदोलन कर राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरनेवाले अन्ना हजारे ने हाल में एलान किया कि वह देश के 50 ईमानदार निर्दलीय प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे. लेकिन, दिल्ली के रामलीला मैदान में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनकी रैली के फ्लॉप होने के बाद वह इसकी सफाई देते फिर रहे हैं. अन्ना कहते हैं कि देश के लिए त्याग करना चाहिए. ईमानदारी से काम करना चाहिए. वह ममता को देश का सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री मानते हैं, इसलिए उनके लिए प्रचार करेंगे, उनकी पार्टी का नहीं. अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक दल बनाने से रोकनेवाले अन्ना ने उनसे कहा था कि वे उनके नाम का इस्तेमाल न करें. अन्ना ने अब ममता बनर्जी से भी कह दिया है कि उनके नाम का इस्तेमाल न करें. देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का प्रतीक बन चुका यह शख्स हर मोड़ पर अकेला पड़ जाता है. वैसे देश में और भी लोग हुए हैं, जिन्होंने आंदोलन तो नहीं किया, लेकिन अपने बूते प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक को चुनाव के मैदान में चुनौती देने का साहस दिखाया. इनमें से किसी को जीत या हार का मलाल भी कभी नहीं रहा.

धरती पकड़ काका जोगिंदर सिंह
बरेली के कपड़ा व्यापारी जोगिंदर सिंह को धरती पकड़ के नाम से जाना जाता है. 1998 में निधन से पहले वह 300 चुनाव लड़े और सभी चुनावों में हारे. वर्ष 1991 के राष्ट्रपति चुनाव में 10 प्रस्तावकों की मदद से उन्होंने डॉ शंकर दयाल शर्मा के खिलाफ परचा भरा. उन्हें 1,135 वोट मिले. राष्ट्रपति चुनाव में वह चौथे स्थान पर रहे थे. इससे पहले 1985 में उन्हें लुधियाना में सबसे ज्यादा 1,848 वोट मिले थे.

सुनीता चौधरी
दिल्ली की पहली महिला ऑटो रिक्शा चालक 2009 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ी. उन्होंने वर्ष 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी नामांकन भरा था.

के पदमराजन
तमिलनाडु के मेत्तुर के व्यापारी के पदमराजन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, केआर नारायणन, पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. वर्ष 2009 में उन्होंने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता के खिलाफ चुनाव लड़ा.

गोपाल जादूगर
पेशे से जादूगर गोपाल ने राजस्थान के जोधपुर से नामांकन दाखिल किया था. उन्होंने वादा किया कि आम जनता के धन पर डाका डालनेवाले ‘राजनीतिक डकैतों’ से पैसा लूट कर आम जनता में बांटेंगे. यानी वह रॉबिनहुड की भूमिका निभायेंगे.

मल्लिका साराभाई
देश के अंतरिक्ष विज्ञान के जनक विक्रम साराभाई की पुत्री और मशहूर नर्तकी मल्लिका साराभाई ने गुजरात के गांधीनगर से भाजपा के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव के मैदान में उतरीं और हार गयीं. हाल में वह आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं. आजकल पार्टी से नाराज हैं और चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है.

नागरमल बाजोरिया
बिहार के 80 वर्षीय इस शख्स ने 280 चुनावों का सामना किया और लगभग हर बार उनकी जमानत जब्त हो गयी. उन्होंने इंदिरा गांधी और आटल बिहारी वाजपेयी तक के खिलाफ चुनाव लड़ा. बाजोरिया कहते हैं कि व्यक्तिगत हार से उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता, बल्कि उन्हें खुशी होती है. इसके जरिये वह जनता के महत्वपूर्ण मुद्दे उठाते हैं और राष्ट्रीय पार्टियों को इससे अवगत कराते हैं. और यही उनकी समाज सेवा का तरीका है.

के श्याम बाबू सुबुधी
के श्याम बाबू सुबुधी की 17 लोकसभा और 10 विधानसभा 27 चुनावों में जमानत जब्त हो चुकी है. फिर ओड़िशा के बरहमपुर व अस्का से आम चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. सबसे ज्यादा चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड बनाने की चाहत में श्याम बाबू (76) वर्ष 1957 से अब तक सियासी दिग्गज बृंदावन नायक, पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव, ओड़िशा के पूर्व सीएम बीजू पटनायक और जेबी पटनायक जैसे नेता को चुनौती दे चुके हैं.

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