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प्राण संचरण कम हो तो होती है थकान

जब प्राण शक्ति व मनस् शक्ति का संयोजन होता है तो वे ऊर्जा में परिणत हो जाती हैं. यदि दोनों में अलगाव हो तो क्या हो? यदि बिजली की लाइन से एक तार निकाल दें, तो बत्ती नहीं जलेगी. ठीक यही स्थिति शरीर के अंगों की भी है. यदि एक शक्ति प्रवाहित हो और दूसरी […]

जब प्राण शक्ति व मनस् शक्ति का संयोजन होता है तो वे ऊर्जा में परिणत हो जाती हैं. यदि दोनों में अलगाव हो तो क्या हो? यदि बिजली की लाइन से एक तार निकाल दें, तो बत्ती नहीं जलेगी. ठीक यही स्थिति शरीर के अंगों की भी है. यदि एक शक्ति प्रवाहित हो और दूसरी न हो रही हो, तो अंग अकर्मण्य हो जाते हैं. इसीलिए योग के अनुसार सिर से पैरों तक इन दोनों प्रवाहों मे संतुलन होना अत्यंत आवश्यक है.

योग शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है. योग दर्शन के अनुसार मानव तीन आधारभूत तत्वों-जीवनी-शक्ति या प्राण, मानसिक -शक्ति या चित्त व आध्यामिक -शक्ति या आत्मा का सम्मिश्रण है. प्राण ब्रrांडीय जीवन-शक्ति है. यह शरीर एक निश्चित मात्र से परिपूर्ण है. हमारा जीवन प्राणों का चमत्कारिक स्वरूप है. प्राणों के कारण ही हमारा जीवन क्रियाशील व विकसित हो रहा है.

यह प्राणशक्ति श्वास के जरिये ग्रहण की जा रही, वायु मात्र नहीं, यह हमारे संपूर्ण अस्तित्व में व्याप्त है. हम इसी के साथ पैदा हुए हैं. भ्रूण चार माह तक माता के प्राणों पर आधारित होता है. पांचवें माह से वह प्राणों की स्वतंत्र इकाई बन जाता है. जीवन प्राणों का प्रकाशन है, जब शरीर में उचित मात्र में प्राणों का संचार हो रहा हो, तो आप ऊर्जा व उत्साह का अनुभव करते हैं और आपकी इंद्रिय संवेदनाएं तीक्ष्ण होती है, किंतु जब प्राण संचरण का परिणाम कम होता है, तब आप थकान का अनुभव करते हैं. प्राणों के अलावा शरीर में एक और शक्ति है जिसे ‘मन या चेतना’ कहते हैं. इस शक्ति के द्वारा आप सोचते-विचारते, याद करते और उचित-अनुचित का ज्ञान रखते हैं. हमारे अंदर अनंत मानसिक गुण और प्रतिभाएं विद्यमान हैं, जो इसी मानसिक शक्ति का प्रकाशन है. हमारे शरीर में मनस शक्ति और प्राण शक्ति दो प्रमुख प्रवाहों के रूप में प्रकाशित होती है. इन प्रवाहिनियों को ‘इड़ा नाड़ी’ और ‘पिंगला नाड़ी’ कहते हैं. जैसे बिजली के बल्ब में दो प्रवाह होते हैं, जिन्हें पॉजिटिव और नेगेटिव या गरम और ठंडा तार कहते हैं, वैसे ही शरीर के प्रत्येक अंग में इन दो नाड़ियों का प्रवाह है.

मनुष्य शरीर को प्राण और मनस् शक्तियां ही चलाती हैं. जब प्राण शक्ति व मनस् शक्ति का संयोजन होता है तो वे ऊर्जा में परिणत हो जाती हैं. यदि दोनों में अलगाव हो तो क्या होगा? आप यदि बिजली की लाइन से एक तार निकाल दें, तो बत्ती नहीं जलेगी. ठीक यही स्थिति शरीर के अंगों की भी है. यदि एक शक्ति प्रवाहित हो और दूसरी न हो रही, तो अंग अकर्मण्य हो जाते हैं. इसीलिए योग के अनुसार सिर से पैरों तक इन दोनों प्रवाहों मे संतुलन होना अत्यंत आवश्यक है. यदि इन दोनों में असंतुलन है, तो रोग होगा. प्राण शक्ति व चित्तशक्ति, दोनों ही शारीरिक शक्तियां हैं. तीसरी शक्ति है आध्यात्मिक आत्मशक्ति. यह अत्यंत सूक्ष्म, भावातीत व निराकार है. शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक, तीनों ही शक्तियों का निर्माता है मूलाधार चक्र. मगर आध्यात्मिक शक्ति का जेनरेटर बड़ा शक्तिशाली होता है और शक्ति इड़ा या पिंगला द्वारा प्रवाहित नहीं हो सकती.

इसके लिए एक अन्य नाड़ी की आवश्यकता पड़ती है जिसे ‘सुषुमAा’ कहते हैं. यह नाड़ी शक्ति को मूलाधार से सहस्नर तक ले जाती है. यह संपूर्ण मस्तिष्क को प्रकाशित करती है. आप शायद जानते होंगे कि मानव मस्तिष्क का केवल एक भाग कार्य कर रहा है, अन्य नौ भाग बंद है. इन नौ भागों में अनंत ज्ञान,अनुभवों व शक्तियों का भंडार है. हम इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वहां चेतन शक्ति नहीं है. कुंडलिनी शक्ति के जागरण से जब सुषुमAा उस शक्ति को सहस्नर तक लाती है, तो यह अप्रकाशित ज्ञान-भंडार मुखरित हो उठता है. तब ये आपको केवल मानसिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पूंजी भी दे देता है.

स्वामी सत्यानंद सरस्वती

योगविद्या

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