जो बच्चे अपने माता-पिता की बात नहीं मानते, वह दूसरे लोगों के समझाने पर, समझ जाते हैं. सबसे बड़ी बात बच्चे एक-दूसरे को देख कर ज्यादा सीखते हैं. जब उनको दूसरे बच्चों का उदाहरण दे कर समझाया जाता है, तो वह भी दूसरे बच्चे की तरह बनने का प्रयास करते हैं.
सभी लोग शारदा देवी के घर हुए डिस्कशन से बेहद खुश थे. उन्होंने शारदा देवी और डॉक्टर माथुर को धन्यवाद दिया. साथ ही यह भी सुझाव दिया कि आगे भी इस तरह के डिस्कशन होने चाहिए. शारदा देवी ने कहा कि मुङो लगता है कि अपनी-अपनी सोसाइटी या क्षेत्र में सभी को इस तरह डॉक्टर्स को बुला कर बच्चों को शिक्षित करना चाहिए और आज बच्चों को लेकर हम जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं, उन पर मिल कर विचार करना चाहिए. चाहे वह पालन-पोषण से संबंधित हो, उनकी पढ़ाई से या फिर दो जेनरेशन के बीच तालमेल बैठाने की कोशिश हो. हमें उन्हें समझने और समझाने की जरूरत है. इसके लिए पहले खुद को तैयार करना होगा.
कभी-कभी बच्चे अपने माता-पिता की बात नहीं मानते, लेकिन जब वही बात दूसरे लोग समझाते हैं, तो वे समझ जाते हैं. सबसे बड़ी बात बच्चे एक-दूसरे को देख कर ज्यादा सीखते हैं. जब उनको दूसरे बच्चों का उदाहरण देकर समझाया जाता है, तो वे भी दूसरे बच्चे की तरह बनने का प्रयास करते हैं और जिन बातों को वे हमारे बार-बार समझाने पर भी नहीं समझते, वही बातें वे दूसरे बच्चों को देख कर आसानी से करने लगते हैं. इसलिए माता-पिता को अपने फ्रेंड सर्किल, अपने निवास स्थान और अपनी कम्यूनिटी में भी इस तरह के आयोजन करने चाहिए. यह भी एक तरह से समाज सेवा ही है. इससे जिन लोगों में जागरूकता नहीं है, वे भी जागरूक बनेंगे.
इससे बच्चों की समस्याओं का समाधान भी निकलेगा. वैसे भी सबके साथ मिल कर किसी भी समस्या का समाधान आसानी से निकाला जा सकता है. सभी जाने को तैयार थे. सारे बच्चे आ गये, लेकिन किशू का कहीं पता नहीं था. सब बच्चे बोले वह तो यहीं खेल रही थी. किसी को पता ही नहीं चला कि वह कहां गयी.
किशू चार साल की थी और बच्चों के साथ खेल रही थी. सभी बच्चे बुलाने पर आ गये थे, लेकिन किशू नहीं आयी. सब लोग परेशान हो गये. सोसायटी में सब जगह देखा गया और आस-पास के एरिया में भी उसे खोजा गया, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला. किशू की मां का रो-रो कर बुरा हाल था और सब किसी अनहोनी की आशंका से डरे हुए थे.
सोसायटी के सभी गार्डो और अन्य कर्मचारियों से पूछताछ की जा रही थी.
सबसे बड़ा सवाल यह था कि इतनी छोटी बच्ची गेट से बाहर कैसे निकली और निकली तो उसे गेट पर तैनात गार्ड ने रोका क्यों नहीं? अकेले कैसे जाने दिया? तभी सीसीटीवी फुटेज को चेक किया गया, तो उसमें किशू एक लड़के के साथ दिखाई दी. उसके बारे में पूछताछ करने पर पता चला कि वह किसी गार्ड का मित्र है, जो सुबह ही उससे मिलने आया था, लेकिन वह कब गया, यह नहीं पता चला. उसकी तलाश शुरू हो चुकी थी.
उसके गार्ड मित्र को भी उसका घर नहीं पता था. गार्ड ने बताया कुछ समय पहले ही उससे जान-पहचान हुई है. आस-पास बननेवाले बिल्ंिडग्स और सुनसान जगहों पर सभी दौड़ रहे थे. चार घंटे बीत चुके थे, लेकिन किशू का कुछ पता नहीं चला. जब गार्ड का फोन चेक किया गया, तो पता चला कि बच्ची के खोने के कुछ समय बाद ही उसने अपने फरार मित्र से बात की थी. जब दोबारा उसको कॉल किया गया, तो उसका फोन बंद मिला. उस गार्ड को लेकर जब लोग थाने पर पहुंचे, तो वहां किशू रोते हुए मिली. उसे देख कर सभी चौंक गये और खुश भी हुए. किशू भी अपने पापा के गले से लिपट गयी. तब पता चला कि कोई रोती हुई किशू को थाने में छोड़ गया. थाने लाने वाले व्यक्ति ने बताया कि वह बच्ची उसे स्कूल के पीछे की जगह पर रोते हुए मिली. बच्ची कुछ बता नहीं पा रही थी.
केवल पापा-मम्मी का नाम ही बता रही थी. इसलिए वह व्यक्ति उसे थाने में छोड़ कर चला गया. अब सबके सामने सवाल यह था कि किशू थाने तक कैसे पहुंची और गेट के बाहर कैसे निकली.
पुलिस ने जब गार्ड से सख्ती से पूछताछ की, तो उसने बताया कि जब उसने फुटेज में अपने दोस्त के साथ उस बच्ची को बाहर जाते देखा तभी उसने अपने दोस्त को फोन कर दिया था कि सब उसकी तलाश कर रहे हैं, क्योंकि वह डर गया था कि अगर उसका दोस्त पकड़ा गया, तो हो सकता है उसे भी पुलिस पकड़ ले. यह जानने के बाद ही वह लड़का किशू को अकेले छोड़ कर भाग गया.
वीना श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री
इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com