नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी एक जून को अपने सबसे करीब दोस्त देश रूस की यात्रा करेंगे. पीएम मोदी की रूस की यह यात्रा कई मायने में काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है. पहला तो यह कि वह सेंट पीटर्सबर्ग में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे, लेकिन वे इसी बहाने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता को लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से मुलाकात कर बातचीत भी करेंगे. कहा यह जा रहा है कि यदि एनएसजी की सदस्यता को लेकर भारत की बात रूस के साथ नहीं बनती है, तो भारत में रूस के सहयोग से तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की पांचवीं व छठी इकाई के लिए होने वाले महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पायेंगे. ऐसे में यदि इस समझौते पर दोनों देशों के बीच बात नहीं बनती है, तो आपसी मधुर संबंधों में खटास पैदा होने की आशंका भी जाहिर की जा रही है.
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समझा जाता है कि रूस की यात्रा के दौरान चीन के भारी विरोध के बावजूद एनएसजी की सदस्यता हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलग से राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से मुलाकात कर बात करेंगे. हालांकि, कहा तो यह जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी दोनों देशों के आपसी द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करेंगे, मगर वैदेशिक कूटनीति के जानकार यह मानते हैं कि एनएसजी सदस्या को लेकर चीन के भारी विरोध के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को साधेंगे. अगर वह इस मकसद को पूरा करने में कामयाब हो जायेंगे, तो चीन को एक करारा जवाब तो मिलेगा, साथ ही दोनों देशों के आपसी संबंधों में और भी प्रगाढ़ता आयेगी.
हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि क्या प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की इकाई 5 व 6 के लिए सामान्य रूपरेखा समझौते (जीएफए) पर दस्तखत किये जायेंगे या नहीं. जीएफए किसी परियोजना की शुरुआत से पहले आखिरी समझौता है. इसे अंतर मंत्रालयी समूह पहले ही मंजूरी दे चुका है. इस पर फिलहाल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की मंजूरी का इंतजार है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि अंतर मंत्रालयी समूह द्वारा आकलन के बाद प्रस्ताव को मंजूरी के लिए पीएमओ के पास भेजा गया है.
गौरतलब है कि रूस के उप प्रधानमंत्री दमित्री रोगोजिन पिछले सप्ताह नयी दिल्ली आये थे, ताकि मोदी-पुतिन बैठक के लिए जमीन तैयार की जा सके. उस समय दोनों देशों के बीच जीएफए के मुद्दे पर बातचीत भी हुई थी. सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत और रूस के बीच जीएफए पर पिछले साल दिसंबर में दस्तखत होने थे, लेकिन दोनों पक्षों के बीच क्रेडिट प्रोटोकॉल पर सहमति नहीं बनने की वजह से यह अभी अटका हुआ है.