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शौक के लिए भी बनते रहे हैं प्रत्याशी

रांची: लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों ने अपनी जमानत राशि बचाने की भी फिक्र नहीं की और लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. हालांकि राष्ट्रीय दलों की स्थिति इस मामले में ठीक-ठाक रही लेकिन निर्दलीय प्रत्याशियों की स्थिति बेहतर नहीं रही. 1952 से लेकर 2009 तक राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवारों की संख्या […]

रांची: लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों ने अपनी जमानत राशि बचाने की भी फिक्र नहीं की और लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. हालांकि राष्ट्रीय दलों की स्थिति इस मामले में ठीक-ठाक रही लेकिन निर्दलीय प्रत्याशियों की स्थिति बेहतर नहीं रही.

1952 से लेकर 2009 तक राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवारों की संख्या 10-15 फीसदी के बीच बढ़ी, जबकि अन्य दलों और निर्दलीयों की संख्या 10 गुना से अधिक बढ़ी. 1952 में 1874 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा. उनमें से 745 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी. 2009 में 8070 उम्मीदवारों में से 6289 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी. 2009 में राष्ट्रीय दलों के 1623 प्रत्याशियों में से 779 की जमानत जब्त हो गयी.

पहले संसद के गठन के वक्त राष्ट्रीय दलों से 1217 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था, जिसमें 344 हार गये थे. 657 अन्य और निर्दलीयों में से 61 प्रतिशत उम्मीदवारों को भी पराजित होना पड़ा था. 1952 में 40 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत राशि जब्त हुई थी. 15वीं लोकसभा में यह संख्या बढ़ कर दोगुनी से अधिक हो गयी है. 1996 में राष्ट्रीय दलों का प्रदर्शन सबसे खराब रहा. इस वर्ष राष्ट्रीय दलों से 1817 प्रत्याशियों ने चुनाव में भाग्य आजमाया था, जिसमें से 897 उम्मीदवार यानी 49 प्रतिशत पराजित हुए थे.

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