21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

रखें ख्याल किडनी का

वर्तमान समय में बदलती जीवनशैली के कारण दूसरी बीमारियों के साथ-साथ किडनी खराब होने के मामले भी बढ़ रहे हैं. किडनी की बीमारी होने से अधिकतर लोग जिंदगी से हताश हो जाते हैं, लेकिन यदि सही इलाज कराया जाये तो भी जिंदगी लंबी हो सकती है. इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से […]

वर्तमान समय में बदलती जीवनशैली के कारण दूसरी बीमारियों के साथ-साथ किडनी खराब होने के मामले भी बढ़ रहे हैं. किडनी की बीमारी होने से अधिकतर लोग जिंदगी से हताश हो जाते हैं, लेकिन यदि सही इलाज कराया जाये तो भी जिंदगी लंबी हो सकती है. इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष मार्च के दूसरे गुरुवार को ‘विश्व किडनी दिवस’ मनाया जाता है. किडनी से संबंधित बीमारियों और उनके उपचार पर विशेष जानकारी दे रहे हैं देश के प्रतिष्ठित डॉक्टर.

किडनी शरीर का महत्वपूर्ण अंग है, यह हमारे शरीर में मौजूद अनावश्यक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है. मगर बदलती जीवन शैली के कारण किडनी की बीमारियां भी बढ़ रही हैं. हर वर्ष लाखों लोग किडनी रोगों के कारण असमय मौत का शिकार हो रहे हैं. इसका ट्रीटमेंट तब कामयाब माना जाता है जब बीमारी प्रारंभिक स्तर पर हो, वहीं किडनी से संबंधित कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं जिनका उपचार ताउम्र चलता रहता है.

कुछ प्रमुख किडनी रोग
एक्यूट किडनी फेल्योर : इस प्रकार की बीमारी में किडनी अचानक काम करना बंद कर देती है और एक-दो महीने तक मरीज को परेशान करती है. यह बीमारी सबसे ज्यादा देखने को मिलती है. यह आमतौर पर अनावश्यक रूप से पेनकिलर दवाई खाने, एलर्जी आदि के कारण होती है. एक्यूट किडनी फेल्योर का इलाज संभव है. ट्रीटमेंट और डायलिसिस द्वारा इस पर काबू पाया जा सकता है और किडनी फिर से सामान्य रूप से काम करना शुरू कर देती है.

क्रोनिक किडनी फेल्योर : क्रोनिक किडनी फेल्योर में किडनी धीरे-धीरे खराब होती है. किडनी फेल्योर के इस प्रकार में किडनी लंबे समय में खराब होती है और वह दोबारा ठीक नही हो पाती. इस बीमारी के मुख्य कारण डायबिटीज, हाइ बीपी, इम्यूनिटी डिजीज आदि हैं. शूगर के मरीजों में यह बीमारी सबसे ज्यादा पाई जाती है. इससे ग्रस्त मरीजों के लगभग 40 प्रतिशत मरीज शूगर पेशेंट होते हैं. खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्र में वृद्धि होने से किडनी फेल्योर का संकेत मिलता है.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम : इसमें पेशाब में प्रोटीन लीकेज होता है. यह बीमारी बच्चों में भी होती है. बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के शरीर में प्रोटीन की मात्र कम हो जाती है और कोलेस्ट्रॉल की मात्र बढ़ जाती है. शरीर के कई हिस्सों में सूजन रहता है.

समय पर उपचार से रिकवरी है संभव
किडनी फेल्योर के कई कारण होते हैं. व्यस्कों में मुख्य रूप से यह डायबिटीज और हाइ बीपी के रोगियों में होता है. किडनी फेल्योर के 60-70 प्रतिशत मामलों का कारण रोगी का इन दोनों रोगों से ग्रसित होना है. बच्चों में यह कंजेनिटल हो सकता है. उपचार कई तरीकों से होता है, जो बीमारी के कारणों पर निर्भर करता है. यदि यह स्टोन की वजह से होता है तो सजर्री से उपचार किया जाता है. यदि यह डायबिटीज और हाइ बीपी के कारण है तो इसे कंट्रोल करके इसका उपचार किया जाता है. किडनी फेल्योर मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है. एक्यूट किडनी फेल्योर में यदि उपचार सही समय पर किया जाये तो रोगी की रिकवरी संभव है. जबकि क्रॉनिक किडनी फेल्योर में इसकी रिकवरी संभव नहीं है. यदि किडनी 90 प्रतिशत से अधिक खराब हो जाती है तो रोगी को डायलिसिस कराना पड़ता है. इसके बाद एक मात्र उपाय किडनी ट्रांसप्लांट बचता है.

डॉ ओम कुमार
प्रोफेसर एंड हेड, नेफ्रोलॉजी आइजीआइएमएस, पटना

किडनी के उपचार में देरी पड़ सकती है भारी
किडनी स्टोन : यह पथरी की बीमारी है. यदि किडनी में पथरी हो जाती है तो किडनी अपना काम ठीक तरह से नहीं कर पाती. किडनी में यूरिक एसिड जमा होने के वजह से यह बीमारी होती है. इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को पेट में असहनीय दर्द होता है साथ ही कई बार पेशाब के साथ खून आना भी आम बात होती है. यदि पथरी छोटी है तो अधिक पानी पीने से वह स्वत: ही शरीर से बाहर निकल जाती है और यदि पथरी बड़ी है तो सजर्री के माध्यम से इसका इलाज संभव है.

यूटीआइ : यूरीनरी सिस्टम में इंफेक्शन होना ही इस बीमारी के अंतर्गत आता है. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेशाब रुक – रुक कर कई बार आता है और पेशाब करने पर जलन महसूस होती है. यदि यह बीमारी बच्चों में होती है तो विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है क्योंकि बच्चों में यह बीमारी धीरे धीरे गंभीर रूप धारण कर लेती है.

उपचार के लिए कुछ प्रमुख हॉस्पिटल हैं: त्नएम्स, दिल्ली त्न मणिपाल हॉस्पिटल, बेंगलूरू त्न सीएमसीएच, वेल्लौर त्न फोर्टिस हॉस्पिटल, बेंगलूरू

क्या हैं उपचार के विकल्प

दवाइयों से इलाज : इससे रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है.

डायलिसिस : जब किडनी की कार्यक्षमता में अत्याधिक कमी आ जाये या किडनी पूरी तरह से काम करना बंद कर दे, तब द्वारा उपचार करने के बाद भी रोग के लक्षण बढ़ने लगते हैं.ऐसी अवस्था में बिना डायलिसिस के काम नहीं चलता. इसमें कृत्रिम विधि से खून की सफाई की जाती है.

किडनी ट्रांसप्लांट : किडनी के पूरी तरह खराब हो जाने के बाद सबसे बढ़िया , लेकिन महंगा इलाज है. सरकारी अस्पताल में खर्च कम होता है. प्राइवेट में इसकी तुलना में खर्च अधिक होता है. लेकिन दवाइयां फिर भी खानी पड़ती हैं.

कम पानी पीने सेहोती है पथरी

किडनी में पथरी आम बीमारी हो गयी है. इस रोग की आशंका वैसे व्यक्तियों में अधिक होती है जो कम पानी पीते हैं, अधिक खनिज पदार्थ का सेवन करते हैं और जिनके रक्त में यूरिक एसिड की मात्र अधिक हो जाती है. कितने हैं इसके प्रकार-

कैल्शियम ऑक्जलेट स्टोन: ये पेशाब में रक्त भी पैदा करते हैं.

कैल्शियम फॉस्फेट स्टोन:अंदर ही अंदर गुर्दे को नुकसान पहुचाते हैं बिना किसी दर्द के.

यूरिक एसिड स्टोन: जब खून में यूरिक एसिड कि मात्र अधिक हो जाती है, तब ये पैदा हो जाते हैं.

कई बार पेशाब में इंफेक्शन की वजह से भी पथरी हो जाती है, इस प्रकार की पथरी आमतौर पर महिलाओं और बच्चों में अधिक होती है.

होम्योपैथिक दवाएं :बरबेरिस वल्गेरिस मूल अर्क : कमर में दर्द दांयें या बायें तरफ से शुरू होकर जांघ कि तरफ जाये. पेशाब करने के बाद भी लगे कि अभी कुछ बाकी रह गया है. 8 बूंद 6-6 घंटे पर एक-एक कप पानी के साथ लें, कम से कम तीन महीने तक.

पारेरा ब्ररावा मूल अर्क : बार-बार पेशाब करने कि इच्छा, पेशाब करते व़क्त जोर लगाना पड़े. पेशाब करते व़क्त, बैठकर घुटनों के बल जोर लगाने पर पेशाब हो, जमीन का सहारा भी लेना पड़े. पेशाब के रास्ते के आगे के भाग में तीव्र दर्द हो. 8-8 बूंद दिन में तीन बार एक कप पानी के साथ लें.

सारसापरीला ऑफ मूल अर्क : पेशाब करते समय रास्ते में असहनीय दर्द होता हो, बैठने पर बूंद-बूंद पेशाब निकले. दर्द कमर से शुरू होकर गुर्दे में दायें या बायें जिस तरफ का स्टोन है, अंडकोष तक जाये और लगे कि वह फट जायेगा. तब 8-8 बूंद 6-6 घंटे पर एक कप पानी के साथ दें.

परहेज : मांस, अंडा, पालक साग, टमाटर, पनीर. वहीं नींबू पानी प्रचुर मात्र में पिएं.

प्रो (डॉ) एस चंद्रा

एमबीबीएस (पैट) एमडी (होमियो) चेयरमैन, बिहार राज्य होमियोपैथी चिकित्सा बोर्ड, पटना

पेनकिलर का इस्तेमाल करें कम
किडनी की बीमारी से बचने के लिए प्रयास करें कि कभी भी पेनकिलर का अत्याधिक इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के ना करें. पानी ज्यादा से ज्यादा पीएं. यदि आप सामान्य से अधिक पानी पीयेंगे तो आप इंफेक्शन और पथरी से बच सकते हैं. इसके अलावा धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन कम से कम करें, साथ ही अपने वेट को भी मेटेंन रखें. अपनी जीवनशैली में सुधार लाकर भी आप किडनी की बीमारियों से बच सकते हैं. नियमित व्यायाम करें और पोष्टिक आहार लें. बाहर के खाने से बचें. आप स्वास्थ्य के बारे में सचेत रहें, 35 साल से ऊपर की उम्र में शूगर की जांच अवश्य कराएं. यदि परिवार में किसी को शूगर है तो नियमित अंतराल में जांच कराते रहें. वहीं यदि यदि आपको हाइ बीपी की शिकायत रहती है तो इसकी नियमित जांच कराकर ट्रीटमेंट कराते रहें. इन उपायों से आप किडनी की बीमारियों से बच सकते हैं

बातचीत एवं आलेख : कुलदीप तोमर

डॉ.एल के झा

वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट

पुष्पांजलि क्रॉसले अस्पताल

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें