बच्चों की जरूरतों का ध्यान रखना अच्छी बात है, पर उनकी वैसी जिदों को पूरा करना, जिससे वे गलत राह पकड़ लें, यह अच्छी बात नहीं. अगर बचपन से ही उनमें अच्छी आदतें डाली जाएं और दोस्ताना व्यवहार रखा जाये, तो कोई कारण नहीं कि वे गलत राह अपनाएं.
बच्चों के विषय में चर्चा बढ़ती जा रही थी. उनकी बात सुन कर शर्मा जी ने कहा कि आजकल अगर बच्चों की बातें नहीं मानी जाये, तो वो अपने पेरेंट्स को ही दुश्मन समझने लगते हैं. उनको लगता है कि उसके साथ के बच्चों के पेरेंट्स ज्यादा अच्छे हैं, जो उनके दोस्तों की सारी बातें मानते हैं. किसी भी बात के लिए कभी मना नहीं करते. मेरे ऑफिस में खन्ना जी हैं, वो हमारे मित्र हैं. घर में आना-जाना भी है. उनका बेटा अभी 15 साल का है और बाइक चलाता है. दसवीं में अच्छे नंबरों से पास होने पर उसके लिए नयी बाइक भी खरीदी गयी है. उसे देख कर मेरा बड़ा बेटा, जो 16 साल का है, वह भी जिद करने लगा है कि उसे भी बाइक चाहिए. हम उसे समझा रहे हैं कि 18 साल से पहले बाइक चलाना अलाऊ नहीं है. कानूनन जुर्म है और लाइसेंस भी नहीं बनेगा. कहीं पकड़े जाओगे तो चालान हो जायेगा. सजा भी मिलेगी. उसका तर्क है कि मेरे क्लास के ज्यादातर बच्चे तो चलाते हैं. उनके पेरेंट्स तो उन्हें मना नहीं करते. आप ही हर बात पर टोकते हैं. सारे कायदे कानून आप ही बताते हैं. औरों के पेरेंट्स तो नहीं बताते. इस बात को लेकर वह हमसे नाराज भी है. ऐसे में क्या किया जाये?
उनकी बात सुन कर डॉक्टर माथुर ने कहा कि मैं आपको यही बात समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि कोई भी बात एक दिन में बच्चों को नहीं समझायी जा सकती. इसके लिए जरूरी है कि बचपन से ही उनके सामने उन बातों को दोहराया जाये, जो उनके लिए जरूरी है. उनमें अच्छी आदतें डालने की जिम्मेदारी माता-पिता की है और ये जिम्मेदारी बचपन से ही सही तरीके से निभानी चाहिए. उनकी जिद पूरी करना ही प्यार नहीं है. समय-समय पर उनकी उम्र के अनुसार उन्हें समझाने की जरूरत है.
जो बातें आप बच्चों में डालना चाहते हैं, वही उनके सामने बार-बार दोहराएं. उनको ये बातें कहानी और किताबों के माध्यम से बतायें. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आप जो बातें बच्चों को सिखाना चाहते हैं, वह आपमें भी होनी चाहिए, नहीं तो वही कहावत चरितार्थ होगी. उपदेश कुशल बच्चे आपको ही पलटकर पूछेंगे कि जब आप ही फलां काम नहीं कर सकते, तो हमसे उम्मीद मत क्यों लगाते हैं. घर बच्चों की पहली पाठशाला होती है. अपनी सारी अच्छी-बुरी आदतें वे घर से ही सीखते हैं. बच्चों के साथ पारदर्शी रहिए. छुपाव-दुराव से उनकी मानसिकता और व्यक्तित्व दोनों में दोहरापन आयेगा. शर्मा जी आप अपने बेटे को समझाइये कि कानून तोड़ना जुर्म है. कानून को तोड़ना नहीं बल्कि उसका पालन करना चाहिए.
दूसरे अगर गलती करते हैं, तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि हम भी गलती करें. कानून तोड़ने वालों को सजा अवश्य मिलती है. बच्चों को कहीं भी अकेले नहीं भेजें खासकर दोस्तों के साथ पिकनिक या कहीं भी जहां उनको टोकनेवाला या समझानेवाला कोई बड़ा न हो, उन्हें नहीं भेजना चाहिए. अक्सर हमें खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि कॉलेज के लड़के वॉटर फॉल घूमने गये और पैर स्लिप होने के कारण डूब गये या तेज बाइक चलाते समय एक्सीडेंट होने से डेथ हो गयी. कभी-कभी दोस्त ही दोस्त के दुश्मन बन जाते हैं. अभी इसी तरह की घटना घटी.
एक लड़के ने अपने पापा-मम्मी से बाइक दिलाने की जिद की. पापा ने तो मना कर दिया लेकिन बच्चा जब नाराज हो गया तो मां से देखा नहीं गया और उसने भी जिद करके अपने बेटे को मोटरसाइकिल दिलाने के लिए अपने पति को मना लिया. कुछ दिनों के बाद ही एक एक्सीडेंट में उसके बेटे की मौत हो गयी. कारण था तेज रफ्तार से बाइक चलाना. उसके बाद उसकी मां यही कहती रही कि काश! उसने बेटे की जिद पूरी ना की होती.
इस तरह की खबरें उन्हें जरूर बतानी चाहिए, जिससे वो सावधान रहें और जोश में आ कर कोई ऐसा काम ना करें, जिससे बाद में माता-पिता शर्मिदा हों. उनके बारे में पूरी जानकारी रखनी है, तो हमें भी उनके रंग में ढलना पड़ेगा. सबसे बड़ी बात तो यह है कि उनकी संगत का ध्यान रखें. इतना होने के बाद भी हम उन पर पूरी तरह से नजर नहीं रख सकते. इसलिए यह जरूरी है कि उनके साथ समय बिताया जाये. इसलिए जितना ज्यादा समय आप बच्चों को देंगे उतना ही ज्यादा उनके नजदीक जायेंगे. उनके बारे में जानेंगे और आपके बीच आपसी समझ व दोस्ताना रिश्ता भी बनेगा, जो बेहतर होगा. यही आज की मांग भी है.
वीना श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री
इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com