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दूषित पानी पीना लोगों की मजबूरी

अब तक कोसी के बीच बसे लोगों के पुनर्वास से संबंधित समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है. कई एक को तो कागज पर पुनर्वास की जमीन मिल गयी, लेकिन धरातल पर कुछ भी न मिला. जो बस भी गये, उनका एक पांव पुनर्वास में रहता है तो एक पांव दोनों तटबंधों के बीच अपने गांव […]

अब तक कोसी के बीच बसे लोगों के पुनर्वास से संबंधित समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है. कई एक को तो कागज पर पुनर्वास की जमीन मिल गयी, लेकिन धरातल पर कुछ भी न मिला. जो बस भी गये, उनका एक पांव पुनर्वास में रहता है तो एक पांव दोनों तटबंधों के बीच अपने गांव में.

प्रवीण गोविंद

सुपौल : बदलते वर्ष के साथ यहां कुछ भी नहीं बदलता. बदलता है तो सिर्फ दिन, महीने और तारीख. हम बात कर रहे हैं तटबंध के बीच बसे लोगों की. प्रत्येक वर्ष कोसी अपनी कहर बरपाती है. जमीनी सच कुछ और कहा करती है, प्रशासनिक व सरकारी झूठ कुछ और बयां करती है.

यह कहा जा सकता है कि चक्करघिन्नी में फंसकर रह गया है कोसी बीच के लोगों का भविष्य. यहां बता दें कि जिले की आधी आबादी कोसी प्रभावित है. जल विशेषज्ञ भगवान जी पाठक कहते हैं कि कोसी की लिखी कहानी आज भी लगभग वैसी ही है जैसी कि तटबंध बनने के पहले थी. हां, दायरा सिमटा है दर्द नहीं. तटबंध के बाहर राहत है अंदर तो वहीं बाढ़, पानी और भागमभाग मची रहती है. कुछ दिनों बाद लाल होगा कोसी का पानी और फिर शुरू हो जायेगी वही कहानी. बाढ़ व जलजमाव के कारण दूषित पेयजल का सेवन तटबंध के बीच बसे लोगों की नियति है. जलजमाव के कारण कालाजार, मलेरिया, टाइफाइड जैसी बीमारियां इलाके में आम है.

वरदान नदी को कहा गया बिहार का शोक

मुन्नी देवी कहती हैं कि हर साल बाढ़ आती है और तटबंध के बीच बसे लोगों के आशियाने को बिखेर कर चली जाती है. हजारों-हजार लोग इसकी चपेट में आते हैं और प्रत्येक वर्ष यहां के लोगों के सपने टूटकर बिखर जाते हैं. कितने मासूम यतीम हो जाते हैं.

तटबंध के बीच बसे अधिकांश लोगों का मानना है कि भारत तो आजाद हुआ लेकिन कोसी क्षेत्र की आजादी छिन गयी. कोसी की आजादी छीनने की साजिश उसी दिन शुरू हुई जिस दिन यहां के निवासियों के लिए वरदान नदी को बिहार का शोक कहा गया और अंतत: बलशाली, वैभवशाली, रूममती कोसी स्वतंत्र भारत में परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ दी गयी. लोगों ने बताया कि नेहरू की उधार ली गयी विकासवादी मॉडल के मानसपुत्र 1950 के बाद कोसी को बांधने की जुगत में लग गये और एक दिन कोसी को बांध कर ही छोड़ा. बताया गया कि उस समय इन दोनों तटबंध के अंदर पडनेवालों ने इसका जबरदस्त विरोध किया था.

गांव के गांव उमड़ कर विरोध में आये थे. नेतृत्व दिया था समाजवादी परमेश्वर कुंवर ने. वे गिरफ्तार किये गये, देशद्रोह के मुकदमे में आंदोलन दब गया. आंदोलन को दबाने में उस समय के एक लोकप्रिय नेता एड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिया था. पहले तो उन्होंने एक-एक सोशलिस्टों का कांग्रेसीकरण किया, फिर भी जिसने नहीं माना वह परमेश्वर कुंवर की तरह देशद्रोही सिद्ध किये गये.

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