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त्रिनिदाद में भारतीय आगमन दिवस

-अलग पहचान- त्रिनिदाद एंड टोबैगो की गिनती कैरेबियन द्वीपों के सर्वाधिक धनी देशों में होती है. यहां प्रति व्यक्ति आय लैटिन अमेरिकी देशों की औसत आय से अधिक है. इस द्वीपीय देश में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी है, जिन्होंने यहां के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. 19वीं […]

-अलग पहचान-
त्रिनिदाद एंड टोबैगो की गिनती कैरेबियन द्वीपों के सर्वाधिक धनी देशों में होती है. यहां प्रति व्यक्ति आय लैटिन अमेरिकी देशों की औसत आय से अधिक है.

इस द्वीपीय देश में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी है, जिन्होंने यहां के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. 19वीं सदी के मध्य से 20वीं सदी के शुरुआती वर्षो तक मजदूर के रूप में लोग त्रिनिदाद आते रहे. इन्हीं दिनों आये रंजीत कुमार ने त्रिनिदाद के राजनीतिक पटल पर अपनी गहरी छाप छोड़ी.

।।सेंट्रल डेस्क।।
त्रिनिदाद में जल्द ही भारतीय आगमन दिवस (इंडियन अराइवल डे) मनाने की घोषणा की जायेगी. इसका मकसद उन प्रवासी भारतीयों के संघर्ष और सफलता को याद करना है, जो 1845 और 1917 के बीच अनुबंध पर काम करने आये. कुछ भारतीय अवसर की तलाश में भी त्रिनिदाद आये. ऐसे ही एक व्यक्ति थे रंजीत कुमार. उन्हें दो चीजों के लिए याद किया जाता है. उनके ही प्रयास से त्रिनिदाद में पहली भारतीय फिल्म का प्रदर्शन हो सका. उन्होंने राइटसन रोड का विस्तार किया और उसे दो लेनवाले नेशनल हाइवे में तब्दील किया.

सार्वजनिक जीवन में भी उनके कई आयाम थे. त्रिनिदाद में उन्होंने सफल राजनीतिक पारी भी खेली. कुमार का जन्म पंजाब में वर्ष 1912 में हुआ. उनका बचपन लाहौर में बीता. वह इंग्लैंड में बड़े हुए, जहां वह और उनकी मां वर्षो से रह रहे थे. वहीं उनकी शिक्षा हुई. उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इंपीरियल कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री ली. 1930 का दौर बड़ी आर्थिक मंदी का दौर था. उन्हें इंग्लैंड में नौकरी नहीं मिली. उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा के लिए आवेदन दिया और नौकरी मिल गयी. यह वह सेवा थी, जिसमें अंगरेजी प्राधिकरणों द्वारा युवा भारतीय पुरुषों को अफसर के पद पर नियुक्त किया जाता था. कुमार को उनके गृह प्रांत पंजाब में नियुक्त किया गया. उन्होंने कई महत्वपूर्ण मोरचे पर काम किया. आत्मविश्वास से लबरेज और अंगरेजी शिक्षा में पढ़ा-लिखा यह युवा भारतीय अफसर अपने सुपीरियर अधिकारियों की आंखों में खटकने लगा. कारण चाहे जो हो, कुमार को पुलिस सेवा से निकाल दिया गया. वह नये अवसरों की तलाश में लग गये. लाहौर में उनकी मुलाकात त्रिनिदाद में रहनेवाले सैयद मोहम्मद हुसैन से हुई. इस मुलाकात ने उनकी किस्मत तय कर दी.

रंजीत कुमार 1935 के अंत में त्रिनिदाद पहुंचे. यहां भारतीय फिल्मों के वितरण और प्रदर्शन का बिजनेस खड़ा किया. ‘बाल जोबन’ त्रिनिदाद में दिखायी जानेवाली पहली भारतीय फिल्म बनी. यह त्रिनिदाद में बॉलीवुड का प्रवेश था. इन भारतीय फिल्मों ने इंडो-त्रिनिदाद संस्कृति विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. कुमार के आने के बाद एक साझा समुदाय की संस्कृति उभरी. इसे प्रिमनाथ गुप्तार के डॉक्टोरल थिसिस से समझा जा सकता है.

कुमार ‘बाल जोबन’ के बाद कुछ सालों तक भारतीय फिल्मों के वितरण और प्रदर्शन के बिजनेस में लगे रहे. उन्हें 1937 में लोक सेवा विभाग में सहायक इंजीनियर की नौकरी मिली. उन्होंने सैन जुआन से कुरपे तक के इस्टर्न मेन रोड का चौड़ीकरण करवाया. वह ‘मार्वेट हाउसिंग’ इस्टेट से भी जुड़े. जबरदस्त ऊर्जा और लक्ष्य के प्रति निष्ठा रखनेवाले कुमार राजनीति में भी उतरे. 1946 के आम चुनावों (यह पहला चुनाव था, जिसमें 21 वर्ष की उम्र से अधिक का कोई भी वोट दे सकता था) में वह विक्टोरिया काउंटी सीट के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए. वह जीते और 1946-56 तक लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे.

दो संसदीय क्षेत्रों (विक्टोरिया और कैरोनी नार्थ) से उम्मीदवार रहे कुमार को बहुमत से जीत मिली. कुमार को ‘शेर-ए-पंजाब’ की उपाधि मिली. धाराप्रवाह हिंदी बोलने का उन्हें फायदा मिलता था. 1940-50 के दशक में कई बुजुर्ग इंडो-त्रिनिदादियन बहुत कम अंगरेजी समझते थे. वे तब भी हिंदी या भोजपुरी ही बोलते थे. सही मायनों में रंजीत कुमार एक बेहतरीन प्रतिनिधि थे. वह संसद में बढ़-चढ़ कर बहसों में भाग लेते थे. हालांकि, उन्होंने निर्दलीय के रूप में काउंसिल में प्रवेश किया, पर जल्द ही वह ‘टीयूबी बटलर’ से जुड़ गये और काउंसिल के बाहर और भीतर वह बटलर के प्रमुख प्रवक्ता थे.

वर्ष 1956 के चुनावों में उन्हें इसका लाभ नहीं मिला. बटलर को एरिक विलियम्स ने चुनौती दी. इंडो-त्रिनिदादियन समुदाय के चैंपियन के रूप में पहचान बनानेवाले कुमार को भी भादसे सगन मराज ने कड़ी चुनौती दी. इन चुनावों में कुमार हार गये और मुख्य धारा की राजनीति से बाहर हो गये. आज उनके बच्चे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों और बिजनेस में महत्वपूर्ण ओहदों पर काम कर रहे हैं.

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