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धार्मिक अल्पसंख्यकों में अब जैन भी

भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान हैं. इसके तहत आजादी के 31 साल बाद (1978) अल्पसंख्यक आयोग, 45 साल बाद (1992) अल्पसंख्यक आयोग कानून और 59 साल बाद (2006) में केंद्र में अल्पसंख्यक मामलों का अलग मंत्रालय बनाया गया. आजादी के 46 साल (1993) बाद केंद्रीय कल्याण विभाग ने पांच धार्मिक समुदायों को […]

भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान हैं. इसके तहत आजादी के 31 साल बाद (1978) अल्पसंख्यक आयोग, 45 साल बाद (1992) अल्पसंख्यक आयोग कानून और 59 साल बाद (2006) में केंद्र में अल्पसंख्यक मामलों का अलग मंत्रालय बनाया गया. आजादी के 46 साल (1993) बाद केंद्रीय कल्याण विभाग ने पांच धार्मिक समुदायों को अल्पसंख्यक अधिसूचित किया. इस अधिसूचना के जारी होने के 21 साल बाद (2014) इसमें जैन समुदाय को भी जोड़ा गया है. अब देश में छह धार्मिक अल्पसंख्यक हो गये. क्या हैं अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक प्रावधान, हम इस अंक में इसकी चर्चा कर रहे हैं.

आरके नीरद
देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों की सूची में अब जैन समुदाय भी शामिल हो गया है. इस तरह अब धार्मिक अल्पसंख्यकों की संख्या पांच से बढ़ कर छह हो गयी है.

अल्पसंख्यक का मतलब
अल्पसंख्यक का सीधा अर्थ है ऐसा समुदाय, जो भाषा, धर्म, संस्कृति, परंपरा और आर्थिक रूप से अपनी विशिष्ट पहचान रखता हो और राजनीतिक रूप से अहम हो, लेकिन आबादी की दृष्टि से उसकी संख्या कम हो. संयुक्त राष्ट्र ने अल्पसंख्यक को लेकर जो परिभाषा स्वीकार की है, उसके मुताबिक, ‘किसी राष्ट्र या राज्य में रहनेवाला ऐसा समुदाय अल्पसंख्यक है, जो संख्या में कम हो तथा सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से कमजोर हो, लेकिन प्रजाति, धर्म, भाषा आदि में बहुसंख्यकों से अलग होते हुए भी राष्ट्र के निर्माण, विकास, एकता, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय भाषा को बनाये रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान करता हो.

भारतीय संदर्भ में अल्पसंख्यक आधारभारत के संविधान में अल्पसंख्यकों की चर्चा है. इसमें धर्म और भाषा को अल्पसंख्यक होने का आधार माना गया है.

भारत में कितने अल्पसंख्यक
भारत में दो तरह के अल्पसंख्यक हैं. एक वे, जिन्हें संवैधानिक रूप से विशेष अधिकार प्राप्त हैं. इसमें अब तक पांच धार्मिक समुदाय मुसलिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी शामिल थे. 27 जनवरी, 2014 को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 की धारा-2 के अनुच्छेद (ग) के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का उपयोग करते हुए जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित कर दिया. इस तरह धार्मिक अल्पसंख्कों की संख्या अब छह हो गयी है. दूसरे वे समुदाय हैं जिन्हें अल्पसंख्यक तो माना गया है, लेकिन उन्हें विशेष संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं. इनमें बहाई और यहूदी शामिल हैं. 27 जनवरी 2014 के पहले तक जैन भी इसी सूची में थे.

कौन अधिसूचित करता है अल्पसंख्यक समुदायों को
पहले यह कार्य भारत सरकार के कल्याणमंत्रालयके पास था. इसने 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक के तौर पर पांच धार्मिक समुदायों, को अधिसूचित किया था. इनमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी शामिल थे. अब इसमें जैन समुदाय को भी शामिल कर लिया गया है. जब पांच धार्मिक समुदायों को अल्पसंख्यक अधिसूचित किया गया था, तब अल्पसंख्यकों के लिए अलग से कोई मंत्रलय नहीं था. 2006 में भारत सरकार ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रलय का गठन किया.

देश में अल्पसंख्यकों की आबादी
2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिशत 18.42 है. अब इसमें जैन समुदाय की आबादी भी जुड़ जायेगी.

संविधान में अल्पसंख्यक और उनके अधिकार
हमारे संविधान में अल्पसंख्यकों की चर्चा है. इनमें अल्पसंख्यकों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों को सुनिश्चित करने का निर्देश है, लेकिन अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या नहीं है. संविधान में दो तरह के अल्पसंख्यकों की चर्चा है. एक धार्मिक और दूसरा भाषायी. धार्मिक अल्पसंख्यकों को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदाय घोषित किया गया है. इनकी संख्या पांच है. ये हैं – मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध एवं पारसी. भाषायी अल्पसंख्यक राज्य स्तर पर होते हैं. यानी भाषायी अल्पसंख्यक, नागरिकों का ऐसा समूह है, जिनकी मातृभाषा, राज्य अथवा राज्य के किसी भाग के बहुसंख्यकों की भाषा से भिन्न है.

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