कांसे से बनी 10.8 सेमी की कलाकृति ‘डासिंग गर्ल’ एक बार फिर चरचा में है. दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिली यह कलाकृति एक प्रदर्शनी में 1946 में दिल्ली लायी गयी थी. पाकिस्तान के सिंध प्रांत ने इस डासिंग गर्ल को भारत से वापस पाने के लिए एक बार फिर कोशिशें शुरू कर दी हैं.
हिंदुस्तान का बंटवारा हुए छह दशक से ज्यादा वक्त बीत चुका है. 1947 में हुए इस बंटवारे के इतने अरसे बाद अब भी कुछ उस पार का यहां है, कुछ इस पार का वहां है. इस क्रम में मोहनजोदड़ो का नाम लिया जा सकता है. 1922 में जब दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक मोहनजोदड़ो की खोज की गयी, तो भारत-पाक का बंटवारा नहीं हुआ था और यह हिंदुस्तान में था. सिंध प्रांत में सिंधु नदी के तट पर स्थित मोहनजोदड़ो का निर्माण 2600 ईसा पूर्व में हुआ था. अपने वास्तु, योजनाबद्ध जल वितरण एवं निकासी और सफाई व्यवस्था के कारण इसे इतिहास में दुनिया का सबसे विकसित व्यवस्था वाला शहर माना जाता है. अनुमान है कि सिंधु घाटी सभ्यता के इस शहर में 35,000 लोग रहा करते थे. एक बार फिर यह एतिहासिक धरोहर चरचा में है. इस बार इसका जिक्र इस धरोहर के लगातार नष्ट होते जाने को लेकर नहीं है. इसकी खुदाई के दौरान मिली ‘डासिंग गर्ल’ की वजह से है. पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अधिकारी मोहनजोदड़ो की प्रसिद्ध ‘डासिंग गर्ल’ की प्रतिमा भारत से वापस पाना चाहते हैं.
दरअसल, 1946 में मोहनजोदड़ों में मिली दो प्रसिद्ध कलाकृतियां ‘डासिंग गर्ल’ और ‘किंग प्रीस्ट’ को एक प्रदर्शनी के दौरान भारत लाया गया था. 1947 में हुए बंटवारे के वक्त ये प्रतिमाएं भारत में ही रह गयीं. बाद में पाकिस्तानी अधिकारी ‘किंग प्रीस्ट’ को वापस ले जाने में सफल रहे लेकिन डासिंग गर्ल अभी भी भारत में है. अब सिंध प्रांत अधिकारी उसे भारत से वापस चाहते हैं. पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डॉन के मुताबिक पिछले दिनों सिंध में आयोजित सिंध फेस्टीवल में यह बात उठी. वहां की प्रांतीय सरकार ने इस्लामाबाद से संपर्क किया और अनुरोध किया है ‘डासिंग गर्ल’ को वापस लाने के लिए. सिंध प्रांत की कैबिनेट के एक सदस्य ने डॉन अखबार को बताया कि ‘हमने केंद्रीय शासन को लिखा है कि हमारी निर्वासित हीरोइन को भारत से स्वदेश वापस लाने में मदद करें. ’
एक अधिकारी ने डॉन को बताया कि मोहनजोदड़ों में मिली दोनों कलाकृतियां ‘डासिंग गर्ल’ और ‘किंग प्रीस्ट’ को ब्रिटिश पुरातत्वविद् सर मॉर्टीमर व्हीलर एक प्रदर्शनी के लिए दिल्ली ले गये थे. 1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तानी अथॉरटी ने दिल्ली से पूछा था कि वो उनकी इन कलाकृतियों सहित फास्टिंग बुद्धा को कब लौटायेगा. इसके लिए एक पाकिस्तानी अधिकारी ने दिल्ली की अधिकारिक यात्र की थी और फास्टिंग बुद्धा तथा किंग फ्रीस्ट को वापस लाने में सफल रहा था. लेकिन भारत ने कांसे से बनी 10.8 सेमी की नर्तकी की मूर्ति लौटाने से इंकार कर दिया था. मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिली इस मूर्ति ने बहुत से अन्वेषकों को लिखने को विवश किया, कि इतिहस के उस दौर में, जब समाज में पितृसत्तात्मक दबाव नहीं था, स्त्री की क्या भूमिकाएं रही हैं.
पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध व्यक्ति के अनुसार, भारतीय अथॉरिटी ने मोहनजोदड़ो की दोनों कलाकृतियों को पाकिस्तान को सौंपने से इनकार कर दिया था और यह प्रस्ताव दिया कि वह डासिंग गर्ल या किंग प्रीस्ट में से कोई एक कृति ले जा सकते हैं. और पाकिस्तान ने साबुन बनाने के पत्थर से बनी किंग प्रीस्ट की कृति को चुना. ‘डॉन’ से बात कर रहे उक्त अधिकारी के मुताबिक इसके पीछे शायद एक नग्न युवती की मूर्ति को चुनने का संकोच था, इस पर अधिकारियों को धार्मिक प्रतिक्रिया भी ङोलनी पड़ सकती थी. इसलिए उन्होंने किंग प्रीस्ट यानी एक पुरुष की मूर्ति को चुना. जिसे देख कर कर यह अनुमान लगाया जा सकता था कि यह एक तानाशाह शासक की मूर्ति है.
इसके बाद भी सिंध क्षेत्र के अधिकारी लगातार पाकिस्तान सरकार से अनुरोध करते रहे हैं कि भारत से डासिंग गर्ल की कलाकृति को वापस लाया जाये, लेकिन किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था. लेकिन प्रांतीय सरकार के एक अधिकारी, जो पहले पुरातत्व विभाग में काम कर चुके हैं, ने कहा कि मौजूदा सरकार ने इसकी गंभीरता को समझा है.
पुरातत्वविदें ने कहा है 1972 में हुई यूनेस्कों संधि के मुताबिक कोई भी ऐतिहासिक कृति या अवशेष जिस स्थान पर पाये जायेंगे, वो उस देश के ही होंगे. मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध में है इसलिए यह कलाकृति वहां वापस आनी चाहिए.
(स्रोत : डॉन )