नॉलेज डेस्क-
बहुत से लोगों को यह जानने की उत्सुकता हो सकती है कि किसी खास तिथि को, जैसे उसके जन्म के दिन या उसके दादाजी की शादी के दिन मौसम कैसा रहा होगा. ऐसी उत्सुकता को दूर करने के साथ-साथ किसी इलाके में समय के साथ मौसम में हो रहे बदलावों के प्रति आगाह करने के लिए गूगल लेकर आया है ‘क्रूटेम4’. इसका इस्तेमाल करते हुए आप पिछली डेढ़ शताब्दी के दौरान किसी भी दिन के मौसम की विस्तृत जानकारी हासिल कर सकते हैं. साथ ही यह भी जान सकते हैं कि उस समय के मुकाबले मौजूदा वक्त में मौसम के मिजाज में कितना बदलाव आया है. इस तकनीक के बारे में विस्तार से बता रहा है नॉलेज.
किसी शुभ कार्य या अनुष्ठान को अंजाम देने के लिए ज्यादातर लोग अपनी परंपरा के अनुकूल संबंधित विशेषज्ञों से ‘अच्छे दिन’ की तलाश करवाते हैं. विभिन्न क्षेत्रों और वर्गो के लोगों के लिए भले ही इसके लिए तरीका और तर्क अलग-अलग हो, लेकिन इस प्रथा की शुरुआत होने की एक प्रमुख वजह यह रही हो सकती है कि वह ‘निर्धारित तिथि’ यानी ‘अच्छा दिन’ मौसम के हिसाब से अनुकूल होगा या नहीं. आज भले ही हमारे पास इस तरह की आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं कि हम विपरीत मौसम में भी इन कार्यो या अनुष्ठानों को अंजाम दे सकते हैं, लेकिन पूर्व में ऐसी परिस्थितियां नहीं थीं. प्राकृतिक दशा अनुकूल होने पर ही शुभ कार्यो को सही तरीके से संपन्न करना संभव था. हो सकता है कि इसीलिए शुभ कार्यवाले दिन के लिए ‘अच्छे दिन’ या लग्न की तलाश की जाती रही होगी.
समय के साथ इस प्रथा के तरीके तो बदलते गये, लेकिन किसी न किसी रूप में यह आज भी कायम है. आज भी ज्यादातर लोग किसी शुभ कार्य को अंजाम देने के लिए अपने तरीकों, प्रथा, रिवाज, परंपरा, संस्कृति आदि के मुताबिक ‘अच्छी तिथि’ निर्धारित करवाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई वजहें रही होंगी, लेकिन सबसे प्रमुख वजह मौसम की अनुकूलता को जानना या उसका पता लगाना ही माना जा सकता है. समय-समय पर तत्कालीन उपलब्ध तकनीक के आधार पर हर काल या युग में मौसम के रुख का अंदाजा लगाया जाता रहा है.
मौसम केंद्रों की शुरुआत
18वीं शताब्दी के बाद से मौसम विज्ञान में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल शुरू हुआ. धीरे-धीरे दुनिया के तमाम इलाकों में मौसम केंद्र स्थापित किये जाने लगे और वहां स्थानीय मौसम और तापमान के रिकॉर्ड दर्ज होने लगे. संभव है कि आपके दादाजी की शादी तय होते समय भी ‘अच्छी तिथि’ का निर्धारण करवाया गया होगा. भले ही उन्हें इस बात का सटीक तौर पर पूर्वानुमान बताया गया होगा या नहीं, कि उनकी शादी की निर्धारित तिथि को मौसम कैसा रहेगा, मसलन- बारिश हो सकती है या नहीं, ठंड ज्यादा पड़ेगी या कम, गरमी ज्यादा रहेगी या कम, धूप तेज रहेगी या नहीं, दिन का औसम तापमान कितना हो सकता है आदि; लेकिन अब आप जरूर जान सकते हैं कि आपके दादाजी की शादी के दिन का मौसम कैसा था. जी हां, गूगल अर्थ आपके लिए एक ऐसी ही तकनीक लेकर आया है, जिसके माध्यम से आप 1850 के बाद के किसी भी दिन के मौसम के बारे में यह सब जान सकते हैं.
भविष्य की चेतावनी
गुगल अर्थ ने क्रूटेम4 (क्लाइमेटिक रिसर्च यूनिट टेंपरेचर वजर्न 4) नाम से ऐसी तकनीक लॉन्च की है, जिसका इस्तेमाल करते हुए आप वर्ष 1850 के बाद से किसी भी शहर के तापमान और बारिश की स्थिति समेत मौसम की अन्य जानकारियों के बारे में जान सकते हैं. अब आप यह सोच रहे होंगे कि भूतकाल में किसी खास स्थान पर किसी खास तिथि को कितना तापमान था, इसे जान कर हम अपने भविष्य के लिए क्या बदलाव ला सकते हैं!
इस कथन से तो आप भी सहमत होंगे कि दुनिया में ‘ग्लोबल वार्मिग’ के हालात खतरनाक होते जा रहे हैं. इससे मौसम परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) का चक्र भी गड़बड़ा रहा है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस मौसम परिवर्तन की परिघटना के लिए मानव निर्मित कारण ही सबसे ज्यादा जिम्मेवार हैं. लेकिन अब हम ‘गूगल अर्थ’ का इस्तेमाल करते हुए यह जान सकते हैं कि किसी खास क्षेत्र में खास समयांतराल के दौरान तापमान में वास्तव में कितना परिवर्तन हुआ है. इससे हमें यह आकलन करने में सुविधा होगी कि मानव जीवन पर इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ा है. यानी कुल मिला कर पर्यावरण के प्रति हमारी जागरूकता को बढ़ाने और इसे संरक्षित करने में भी इस तकनीक का योगदान कम नहीं कहा जा सकता.
6,000 मौसम केंद्रों के आंकड़े
इस तकनीक को धरातल पर उतारने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ इस्ट एंग्लिया के मौसम विज्ञानियों ने व्यापक शोध किया है. उन्होंने गूगल की मैपिंग सुविधा का इस्तेमाल करते हुए दुनियाभर में उपलब्ध पिछले डेढ़ सौ वर्षो से भी ज्यादा समय के तापमान और मौसम संबंधी आंकड़ों को इसमें दर्ज किया है. इस महती योजना को अंजाम देने के लिए उन्होंने दुनियाभर में तकरीबन 6,000 वैश्विक मौसम केंद्रों (ग्लोबल वेदर स्टेशन्स) से वर्ष 1850 के बाद के वार्षिक, त्रैमासिक और मासिक आधार पर हुए तापमान में परिवर्तन का आंकड़ा जुटाया है.
ब्रिटिश अखबार ‘डेली मेल’ में बताया गया है कि खास दिनों के मौसम को जानने के लिए आप क्रूटेम4 (क्लाइमेटिक रिसर्च यूनिट टेंपरेचर वजर्न 4) लैंड- सरफेस एयर टेंपरेचर के आंकड़ों और ग्राफ का इस्तेमाल कर सकते हैं. साथ ही, इन आंकड़ों के विश्वसनीय होने का दावा भी किया गया है. बताया गया है कि चूंकि मौसम संबंधी तमाम आंकड़े दुनियाभर के मौसम केंद्रों से ही जुटाये गये हैं और ये सभी मौसम प्रणाली का हिस्सा हैं, इसलिए इन्हें विश्वसनीय माना जा सकता है. इस अभियान की शुरुआत बीते समय में मौसम के रुख को जानने की कवायदों की बीच की गयी, ताकि ‘मौसम परिवर्तन’ के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके. इसके लिए ऐसी प्रणाली विकसित किये जाने पर जोर दिया गया, जिसे ज्यादा से ज्यादा पारदर्शी बनाया जा सके और हर आदमी इसके बारे में समझ सके.
कुछ और खासियत
यूएइ के क्लाइमेटिक रिसर्च यूनिट से जुड़े डॉ टिम ऑसबोर्न का कहना है कि इस तकनीक की खासियत यह भी है कि इसका इस्तेमाल करते हुए आप जान सकते हैं कि दुनिया में मौसम केंद्र कहां-कहां हैं. इसमें आप खास देशों और केंद्रों के आंकड़ों को ज्यादा स्पष्टता से देख सकते हैं. इसके आंकड़े आप लेटेस्ट क्रूटेम4 से हासिल कर सकते हैं, जिसमें मौसम कार्यालयों द्वारा मुहैया कराये गये आंकड़ों को गूगल की वेबसाइट पर ज्यादा स्पष्टता से देख सकते हैं. साथ ही, इसमें प्रमुख इलाकों के जो तापमान दर्ज किये गये हैं, उन्हें इस तरह से दर्शाया गया है, ताकि लोगों को उनकी तलाश करने में ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़े.
ग्रिड बॉक्स का इस्तेमाल
इसके सरल इस्तेमाल के लिए गूगल अर्थ क्लाइमेट लेयर के एक हिस्से के रूप में इस ग्लोब को पांच डिग्री अक्षांश और देशांतर ‘ग्रिड बॉक्स’ के तौर पर रखा गया है. विषुवत रेखा के पास ये बॉक्स तकरीबन 550 किमी चौड़े हैं, जबकि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की ओर बढ़ने पर इनकी चौड़ाई कम होती जाती है. पृथ्वी पर मौजूद स्थलीय इलाके में तकरीबन सभी जगह मौसम केंद्र स्थापित हैं. गूगल ग्लोब में इन्हें अलग-अलग बॉक्स के तौर पर (शतरंज के खानों की तरह दिखनेवाले) हरे और लाल रंगों के माध्यम से दर्शाया गया है. इसमें आप किसी खास क्षेत्र की पहचान करते हुए पिछली डेढ़ सदी से ज्यादा समय के वार्षिक, त्रैमासिक और मासिक तापमान को खोज सकते हैं.
हालांकि, इस नयी पेशकश को अभी व्यापक तौर पर पहुंच हासिल नहीं हो पायी है, लेकिन शोधकर्ताओं की टीम इसमें गलतियों की गुंजाइश को कम से कम करने की कोशिशों में जुटी हुई है. इस परियोजना की व्याख्या करते हुए डॉ ऑसबोर्न कहते हैं कि इसमें 6,000 मौसम केंद्रों के पिछले तकरीबन डेढ़ सौ वर्षो के मासिक आंकड़ों को दर्ज किया गया है. इसलिए व्यापक पैमाने पर आंकड़ों को दर्ज करने में हुई गलतियों की गुंजाइश से इनकार नहीं किया जा सकता. इसे स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा है कि इस्तेमाल के दौरान किसी तरह की गलती यानी आंकड़ों में गलती की दशा में लोग इसकी जानकारी उन्हें दे सकते हैं.
विसंगतियों की गुंजाइश
इस ग्रिड में कुछ क्षेत्र खाली हैं. खास कर अफ्रीका के सहारा मरुस्थल समेत दूरदराज के ऐसे अन्य इलाके जहां कोई मौसम केंद्र नहीं है. साथ ही, कुछ स्थानों के मौसम केंद्रों के आंकड़े कुछ तकनीकी वजहों से सटीक नहीं हैं. कुछ इलाकों में अक्षांश और देशांतर में एक दशमलव के हेर-फेर से आंकड़ों में काफी बदलाव देखा जा सकता है. इसलिए आंकड़ों में कुछ हद तक विसंगतियां होने की यह भी एक वजह हो सकती है. इसका मतलब यह हो सकता है कि दर्शाये गये कुछ मौसम केंद्र वास्तविक लोकेशन से एकाध किमी इधर-उधर स्थित होंगे. हालांकि, वैज्ञानिक तौर पर यह कोई समस्या नहीं है, क्योंकि तापमान के रिकॉर्ड प्रत्येक स्टेशन के निर्धारित लोकेशन के आधार पर निर्भर नहीं होते हैं; बल्कि इसे वहां विस्तृत क्षेत्र से हासिल सूचनाओं के आधार पर तैयार किया जाता है.
क्या हम अपने कंप्यूटर पर गूगल अर्थ देख सकते हैं?
गूगल मैप्स वेबपेज का इस्तेमाल करते हुए आप कुछ सूचनाओं को देख सकते हैं. इसके इस्तेमाल करने की प्रक्रिया के बारे में भी इस लेख में चरचा की गयी है. हरे और लाल बॉक्स में क्लिक करके आप ग्रिड बॉक्स तापमान को देख सकते हैं और इस तरह आप इस तक पहुंच सकते हैं. हालांकि, ग्रिड बॉक्स में स्टेशन तक पहुंचने के लिए आप ग्रिड बॉक्स बैलून के ‘स्टेशन्स’ लिंक पर जाकर ‘राइट’ क्लिक कर ‘सेव’ करें और गूगल मैप्स पेज के सर्च बॉक्स में उस लिंक को ‘पेस्ट’ कर दें. इस तरह स्टेशन्स तो दिखाई देंगे, लेकिन ग्रिड बॉक्स नहीं दिखाई देंगे.
क्या इसमें सभी मौसम केंद्रों के आंकड़े दर्ज किये गये हैं?
फाइनल क्रू टेम4 डाटासेट में सभी मौसम केंद्रों के आंकड़े दर्ज किये गये हैं. कुछ मौसम केंद्रों के पास वर्ष 1961-1990 के बीच या किसी अन्य अवधि के समुचित रिकॉर्ड मौजूद नहीं होने से उस अवधि के आंकड़े नहीं दर्ज किये जा सके हैं. ग्रिड बॉक्स में दर्शाये गये इन केंद्रों में से जिसका डाटा क्रूटेम4 के पास (बॉक्स में दिये गये अन्य स्टेशनों से हासिल) है, उसे शामिल किया गया है.
कुछ मौसम केंद्रों की लोकेशन गलत दर्शायी गयी है?
दरअसल, प्रत्येक स्टेशन की जो लोकेशन अभी दर्शायी गयी है, वह अक्षांश/ देशांतर पर आधारित है और वह एक दशमलव स्थान तक सीमित है. इसलिए हो सकता है कि ‘स्टेशन मार्कर’ उसकी सटीक लोकेशन से एकाध किलोमीटर इधर-उधर दर्शाये. हालांकि, वैश्विक तापमान रिकॉर्ड और क्रूटेम ग्रिड के निर्माण के लिए यह पर्याप्त है, क्योंकि ये प्रत्येक स्टेशन के लिए निर्धारित बिलकुल सटीक लोकेशन पर निर्भर नहीं हैं. फिर भी इस दिशा में कार्य जारी है, ताकि भविष्य में सटीक लोकेशन दर्शायी जा सके.
(स्रोत: क्लाइमेटिक रिसर्च यूनिट, यूनिवर्सिटी ऑफ इस्ट एंग्लिया)
क्लाइमेटिक रिसर्च यूनिट टेंपरेचर वजर्न (क्रूटेम)
क्रूटेम एक तरह से आंकड़ों का संग्रह है, जिसे दुनिया के सभी महादेशों में स्थापित मौसम केंद्रों के सतह के आसपास वायुमंडल के तापमान से लिया गया है. वर्ष 1980 में इसे क्लाइमेटिक यूनिट के तौर पर विकसित किया गया और तभी से यह कायम है. इसे सबसे ज्यादा वित्तीय मदद अमेरिकी ऊर्जा विभाग की ओर से मिलती है. इसके कार्यो के निष्पादन के लिए इसे विभिन्न कॉलेजों के अग्रणी वैज्ञानिकों का सहयोग मिलता है. क्रूटेम के नये व संचालित किये जा रहे वजर्न ‘क्रूटेम4’ के लिए मेट ऑफिस हेडली सेंटर (एमओएचसी) से भी बहुत सहयोग मिल रहा है. दुनियाभर में क्रूटेम के माध्यम से पृथ्वी की सतह से जुटाये गये तापमान के संदर्भ में समुद्री सतह का तापमान उपलब्ध करानेवाला एमओएचसी के आंकड़ों का मिश्रण ‘हेडक्रूट’ के नाम से जाना जाता है. मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन की संभावनाओं का मूल्यांकन करने के लिए इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है.
की होल मार्कअप लैंग्वेज
आंकड़ों को समझने और उन्हें विजुअलाइज करते हुए उन तक सीधे पहुंच कायम करने की सुविधा गूगल अर्थ के मौजूदा संस्करण में मुहैया करायी गयी है. इसे ऑनलाइन देखा जा सकता है. इन मौसम केंद्रों के मुताबिक उनके मासिक तापमान संबंधी आंकड़ों और सभी तरह के ग्राफ को कोई भी देखा जा सकता है. इसे ‘की होल मार्कअप लैंग्वेज’ (केएमएल) के रूप में दर्शाया गया है.
थ्री डाइमेंशनल अर्थ
भौगोलिक तौर पर इच्छित इलाके की मौसम संबंधी सूचना हासिल करने के लिए गूगल अर्थ सॉफ्टवेयर ने ‘केएमएल’ फाइल के माध्यम से पृथ्वी को त्रिवीमिय (थ्री डाइमेंशनल) तरीके से दर्शाया है. बताया गया है कि इससे मौसम संबंधी इच्छित आंकड़ों को जानने के लिए उन तक पहुंचना आसान हो सकता है. यह गूगल सॉफ्टवेयर पूरी तरह से नि:शुल्क है और अब तक इसे करोड़ों बार डाउनलोड किया जा चुका है. क्रूटेम4 डाटासेट (दर्ज आंकड़ों) तक पहुंचने का यह एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त विस्तारित रूट है. गूगल अर्थ के माध्यम से क्रूटेम4 तक पहुंचा जा सकता है और केएमएल फाइल को डाउनलोड किया जा सकता है.
इस्तेमाल करने की प्रक्रिया
जब आप डाउनलोड किये गये केएमएल फाइल पर क्लिक करेंगे, तो यह गूगल अर्थ के साथ खुलेगा. शतरंज के खानों की तरह पृथ्वी का नक्शा ग्लोब की भांति प्रदर्शित होगा यानी उसमें शतरंज के घरों की तरह हरे और लाल रंग के बॉक्स आपको दिखाई देंगे. ये बॉक्स इंगित करते हैं कि किन इलाकों में मौसम केंद्रों के आंकड़ों को लिया गया है. मालूम हो कि क्रूटेम में समुद्र की सतह का तापमान नहीं दिया गया है, यह केवल ‘हेडक्रूट’ में है. किसी भी हरे या लाल बॉक्स को चुनते हुए आप वहां क्लिक कर सकते हैं और उस ग्रिड बॉक्स के लिए निर्धारित समय-सारिणी के मुताबिक दर्ज मौसम संबंधी आंकड़े आपको दर्शाये जायेंगे. इसे ‘मौसम केंद्रों’ से भी लिंक किया गया है. इस पर क्लिक करने से ग्रिड बॉक्स में दर्ज सभी मौसम केंद्रों की लोकेशन आप देख सकते हैं, जिसे मार्कर पिन्स और पहचान के नाम से दर्शाया गया है. आप किसी भी स्टेशन पिन पर क्लिक करके उसके वार्षिक समयबद्ध तापमान और मौसम संबंधी ग्राफ व इमेज को देख सकते हैं. डाटा फाइल्स को समुचित फॉरमेट में स्प्रीडशीट पर दर्शाया गया है. इसे आप ‘सेव’ करके कोमा-डेलिमिनेटेड (सीएसवी) फाइल्स के तौर पर खोल सकते हैं.