14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सासू मां अपनी बहू से उम्मीद रखें मगर अपना पूरा सहयोग भी दें

अभी तक हम यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि एक महिला सास बन कर बहू से जैसा व्यवहार करती है, उसके पीछे क्या कारण हैं. कारण और भी हैं, मगर प्रमुख कारण है उसे अपना महत्व और प्यार घटता दिखाई देता है. अगर मामला आत्म सम्मान पर अटकता है, तो मां को थोड़ा […]

अभी तक हम यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि एक महिला सास बन कर बहू से जैसा व्यवहार करती है, उसके पीछे क्या कारण हैं. कारण और भी हैं, मगर प्रमुख कारण है उसे अपना महत्व और प्यार घटता दिखाई देता है. अगर मामला आत्म सम्मान पर अटकता है, तो मां को थोड़ा संतुष्ट करना, उसको सम्मान देना तो फर्ज भी है, लेकिन वहीं महिलाओं को अपनी बहुओं के पक्ष को भी जानना और समझना होगा.
जब आप अपने बेटे का विवाह करती हैं, तो यही सोच कर बहू घर लाती हैं जिससे आपके बेटे का अपना परिवार हो. वह भी अपने मन की बात किसी से कह सके. अब तक पढ़ाई और नौकरी में जो उलझा रहा, उसे सांसारिक सुख भी मिले. वह नये रिश्तों में बंधे. जिस लड़की का विवाह होता है, उसके अपने सपने होते हैं. उसकी अपनी सोच और जिंदगी होती है.
हो सकता है बहुत सारी बातों पर वह आपसे सहमत न हो. शादी कर आपके घर आने का यह मतलब भी नहीं कि आपके घर के कानून-कायदे उसे अक्षरश: मानने होंगे. उसका परिवेश, लालन-पालन अलग तरह से हुआ. अगर आप चाहती हैं कि बहू आपके घर के हिसाब से चले, तो आपको उसे समझाकर समय देना होगा. क्यों विवाह के बाद सभी लोग घर की बहू से उम्मीद करने लगते हैं कि वह आते ही घर का काम संभाल ले. सबके लिए खाना, नाश्ता से लेकर घर की सफाई तक सारी जिम्मेवारी उस पर डाल दी जाती है.
आप अपने बेटे के लिए पत्नी लाते हैं नाकि काम करनेवाली बाई और अगर घर की माली हालत ठीक नहीं है और घर के रोजमर्रा के काम खुद करती हैं, तो भी बहू के आते ही उस पर एकदम से सारा बोझ न डालें. उसे धीरे-धीरे अपने कामों में शामिल करें. धीरे-धीरे जिम्मेवारी दें. घर की अन्य महिलाएं भी उसे सहयोग दें. अगर आप अपनी तरफ से उसे थोड़ा-सा सहयोग देंगी, तो निश्चित रूप से वह आपका ध्यान रखेगी. अपवाद की चर्चा मैं नहीं कर रही. वह तो मिलते ही हैं. आजकल तो लड़कियां भी कामकाजी हैं. जॉब कर रही हैं, तो ऐसे में उनसे इतनी उम्मीदें मत बांधिए कि वह विद्रोह कर दे. नौकरी के अपने अलग तरह के दबाव-तनाव होते हैं. अगर आप या आपका बेटा चाहता है कि लड़की नौकरी करती हो, जो आज के समय की जरूरत भी है, तो आपको उसे सहयेग तो करना ही होगा.
जब बेटा या पति नौकरी से थक कर आता है, तो आप कैसे तुरंत चाय-पानी हाजिर करती हैं, तो क्या बहू को आप चाय या पानी नहीं दे सकतीं? वह जब थक कर आये, तो पानी-चाय खुद ले और फिर उस पर यह भी जिम्मेवारी कि खाना बनाये. यह कैसा दोहरा चरित्र है? आपका पति या बेटा तो थक जाता है, तो क्या महिलाएं नहीं थकतीं? अगर यह बात सास नहीं समझेगी, तो कौन समझेगा? हर इनसान प्रेमभाव का भूखा होता है. महिलाएं भी अपनी पूरी उम्र घर के भलाई में खर्च कर देती हैं और किसी से उम्मीद नहीं करतीं. विवाह के बाद जब उसका अपना घर होता है, तो वह केवल और केवल घर के बारे में सोचती है. अगर घर के सदस्य उसकी थोड़ी-सी परवाह करते हैं, तो उसकी ऊर्जा दोगुनी और कार्य करने की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है.
विवाह के बाद पति-पत्नी का मन होता है कि वह घूमने जाएं, बाहर खाना खाएं, फिल्म देखने जाएं, छुट्टियां मनाने जाएं जिससे उन्हें और अधिक साथ रहने का मौका मिले. अगर बेटा-बहू बाहर जा रहे हैं, तो अकसर देखा गया है कि बहू खाना बना कर जाती है या आकर बनाती है. ऐसा क्यों ? क्या एक दिन घर की अन्य महिलाएं घर का काम नहीं देख सकतीं ? यह एक उदाहरण है. ऐसी कई बातें होती हैं, जिसमें आपसी सूझ-बूझ की जरूरत होती है. चूंकि जो महिलाएं सास बनती हैं, वे उम्र के हर मोड़ पर अनेक अनुभवों से गुजरी होती हैं, इसलिए सकारात्मक पहल की आशा उन्हीं से होगी. एक सकारात्मक सोच आपका पूरा जीवन बदल सकती है.
बहू भी बच्ची नहीं होती, इसलिए उसके अपने सपने होते हैं. अपने जीवन को वो अपनी मर्जी से जीना चाहती है. इसीलिए वह बहुत ज्यादा हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर पाती. घर, पति व ससुराल को लेकर उसकी अपनी कल्पनाएं होती हैं. वे महिलाएं जिनके घर में बहुएं आ चुकी हैं, वे एक बार यह सोचें कि जब उनका विवाह हुआ था, तो क्या उनके मन में सपने नहीं थे ?
अपने घर और पति को लेकर उनकी कल्पनाओं ने उड़ान नहीं भरी थी? क्या उन्हें ससुरालवालों का हस्तक्षेप बर्दाश्त होता था? कितनी बार आपने सोचा होगा कि रोज-रोज की किचकिच से बेहतर है, हम घर से अलग हो जाएं. कितनी महिलाएं अलग हुई भी होंगी, क्योंकि उनके पतियों ने उनका पूरा साथ दिया. वह भी शायद इसलिए कि रोज-रोज घर में लड़ाई-झगड़े हों, इससे अच्छा है कि घर से अलग रहें. कितनी बार अन्य रिश्तेदारों का बोलना आपको खला होगा. कई बार यूं भी हुआ होगा कि ननदों को ज्यादा मान-सम्मान मिलता देख कर आपको उनसे जलन हुई होगी. आप नहीं चाहती होंगी कि उन पर ज्यादा रुपया खर्च हो.
जब आपसे बार-बार कहा गया होगा कि अब परिवार का और घर की बेटियों के यहां का लेन-देन भी आपको देखना है, तो आपको लगा होगा कि क्या हर त्योहार में लेन-देन करना पड़ रहा है. यह तो फिजूल खर्च है. अब जब आपके बेटे का विवाह हुआ, तो आप भी तो यही कर रही हैं कि बहू के घरवालों पर अनावश्यक दबाव बना कर बार-बार अपनी बेटी और परिवारीजन के लिए बहू के घरवालों को लेन-देन की लिस्ट थमा रही हैं.
क्रमश:

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें