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हेल्थकेयर स्टार्टअप में बढ़ता निवेश : अमेरिकी टेक कंपनियां चीन में फेल भारत में पास!
312 मिलियन डॉलर का निवेश किया भारतीय हेल्थकेयर स्टार्टअप में निवेशकों ने वर्ष 2014 और 2015 के दौरान. ज्यादातर इनोवेशन आधािरत स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराते है.49 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया था मात्र वर्ष 2014 में देश के हेल्थकेयर स्टार्टअप में. 262 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया बीते वर्ष 2015 में देश के […]
312 मिलियन डॉलर का निवेश किया भारतीय हेल्थकेयर स्टार्टअप में निवेशकों ने वर्ष 2014 और 2015 के दौरान. ज्यादातर इनोवेशन आधािरत स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराते है.49 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया था मात्र वर्ष 2014 में देश के हेल्थकेयर स्टार्टअप में.
262 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया बीते वर्ष 2015 में देश के हेल्थकेयर स्टार्टअप में, जो इसके पिछले वर्ष के मुकाबले करीब पांच गुना ज्यादा रहा.
156 मिलियन डॉलर का निवेश हो चुका है अब तक इस वर्ष देशभर में हेल्थकेयर स्टार्टअप में.
105 डील्स के तहत 91 हेल्थकेयर स्टार्टअप को निवेश हासिल करने का मिला है मौका इस वर्ष अब तक.
56 नये स्टार्टअप शुरू हुए हैं इस वर्ष देशभर में हेल्थकेयर सेक्टर में, जो लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का इनोवेटिव तकनीकों से समाधान करने में जुटे हैं.
(स्रोत : क्जेलर्स8)
किसी भी देश में स्टार्टअप के सफल होने के कई कारण होते हैं. जहां तक बात अमेरिकी तकनीकी कंपनियों के चीन के मुकाबले भारत में ज्यादा सफल होने की है, तो तीन अलग-अलग समूहों की तुलना के आधार पर इसे समझा जा सकता है. पहला, उपभोक्ता (जिन्हें पाने के लिए कंपनियों में होड़ लगी रहती है), दूसरा स्थानीय प्रतिस्पर्धा (वे, जिनके बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता होती है) और तीसरा है सरकार (जो तय करती है कि उसे किसके पक्ष में खड़ा होना है). जानते हैं इनके बारे में.
1 उपभोक्ता का मिजाज
चीन के स्टार्टअप अवाजू के सीइओ यी शी का कहना है कि चीन में स्थानीय कारोबारियों से मुकाबला करने के लिए 100 फीसदी लोकलाइजेशन की जरूरत है. अमेरिका के मुकाबले चीन के उपभोक्ता बिल्कुल अलग मिजाज के हैं, लिहाजा अमेरिकी कंपनियों के लिए चीन में लोकलाइजेशन या तो बेहद मुश्किल है या फिर महंगा.
उदाहरण के लिए इबे और अमेजन जब चीन आये, तो चीनी उपभोक्ताओं को केवल प्रोडक्ट बेचनेवालों की समीक्षा देखने-पढ़ने को मिली. चीनी यूजर्स प्रोडक्ट बेचनेवालों से बात करना चाहते थे और उनसे रिश्ते विकसित करना चाहते थे, जैसा कि पारंपरिक खरीदारी में होता है. ये अमेरिकी कंपनियां चीनी यूजर्स की इस नब्ज को पकड़ने में नाकामयाब रहीं, जबकि अलीबाबा (चीनी स्टार्टअप) ने इसे समझा और उसी अनुरूप अपनी नीतियां बनायीं और पूरे चीन में छा गयी.
दूसरी ओर चीन के मुकाबले भारत में इन अमेरिकी कंपनियों के लिए लोकलाइजेशन आसान रहा है. भारतीय शहरों में अंगरेजी जाननेवालों की बड़ी आबादी होने के कारण शुरू से ही इन कंपनियों को अपना प्रोडक्ट ऑनलाइन बेचने में खास दिक्कत नहीं हुई. भारतीय यूजर्स को घर पर सामान की डिलीवरी मिलने से बड़ी खुशी होती है.
2 स्थानीय प्रतिस्पर्धा
उबर का चीन में डीडी चुक्सिंग से डील होने पर राइड-शेयरिंग के करीब 80 फीसदी चीनी बाजार पर कब्जा हो गया, लेकिन दो वर्षों के ‘प्राइस वार’ के बाद यह खत्म हो गया.
ग्राहकों को छूट देने के कारण उबर को सालाना एक अरब डॉलर का नुकसान हुआ. हालांकि, डीडी चुक्सिंग की वित्तीयहालत भी चरमरायी, लेकिन प्राइस वार से उबर के पास चीन में महज 1.2 अरब डॉलर बचे, जबकि डीडी के पास 10 अरब डॉलर थे.
इधर, भारत में पहले से किसी बड़ी राइड-शेयरिंग कंपनी के अभाव में उबर का कारोबार फैल गया. बीते जून में अमेजन के मुखिया जेफ बेजोस ने भारत में तीन अरब डॉलर अतिरिक्त निवेश की घोषणा की थी. इस तरह पिछले दो सालों में अमेजन का भारत में पांच अरब डॉलर निवेश हो जायेगा. बीते पांच सालों में स्नैपडील भारत से 1.54 अरब डॉलर की उगाही कर चुका है. दरअसल, उबर और अमेजन जैसी कंपनियों ने भारत में ऐसे समय दस्तक दी, जब उनसे मुकाबले के लिए कोई स्थानीय प्रतिस्पर्धी नहीं था.
3 सरकार की नीतियां
दुनिया की ज्यादातर पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि ईश्वर चंचल और गुस्सैल प्रवृत्ति के होते हैं और उनके समक्ष तर्क नहीं काम करते, लेकिन उनके अनुरूप चलने पर उनका आशीर्वाद बना रहता है. चीन की कम्युनिस्ट सरकार के साथ भी कुछ ऐसा ही माना जाता है. कंपनी चाहे देशी हो या विदेशी, चीन में उसे वहां की कुछ जरूरी प्रथाओं को मानना होता है. वहां इसे प्रभाव जमाने के लिए नेटवर्क बनाने के रूप में समझा जाता है. सरकार की ओर से गूगल, फेसबुक और ट्विटर को बाहर रखते हुए चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियों को ही पनपने का मौका दिया गया.
इधर, भारत में बाइडू या वेइबू या रेनरेन जैसा अपना कुछ नहीं है, क्योंकि इस तरह के स्थानीय स्टार्टअप्स के पनपने से पहले अमेरिकी कंपनियों ने इस जगह को भर दिया. वालमार्ट और स्टारबक्स जैसी अनेक विदेशी कंपनियों को चीन में घुसने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है, जबकि भारतीय नियामकों ने कुछ मामलों (जैसे- फेसबुक की फ्री-बेसिक्स मुहिम) को छोड़ कर शायद ही कभी विदेशी तकनीकी कंपनियों का विरोध किया है. चीन के हालात के विपरीत भारतीय रेगुलेटर्स विदेशी कंपनियों का आगे बढ़ कर स्वागत करते रहे हैं.
(चीन और भारत के बारे में अध्ययन एवं लेखन में जुटी तारा कोला के आलेख पर आधारित)
(स्रोत : टेक इन एशिया डॉट कॉम)
कार्यक्षेत्र में आने पर होती है चुनौतियों की समझ
स्टार्टअप का गठन करना और उसे चलाना अपनेआप में चुनौतीपूर्ण अनुभव है. दुनियाभर में लोगों की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आज कई नये कारोबार सामने आ रहे हैं और नये विचारों को धरातल पर उतारते हुए नये-नये स्टार्टअप शुरू हो रहे हैं. हालांकि, ज्यादातर स्टार्टअप के साथ कुछ ऐसी समस्याएं देखी जाती हैं, जिनसे आम तौर पर शुरू में सभी को जूझना पड़ता है और यदि इन सबसे पुख्ता तरीके से निबटा जाये, तो स्टार्टअप कामयाब हो जाता है. कुछ ऐसी चीजें हैं, जिन्हें शुरुआती वर्ष में ध्यान में रखा जाये, तो सफलता की संभावना बढ़ जाती है :
– अकेले न करें शुरुआत : कारोबार शुरू करने और बाद में कई काम करने होते हैं. बतौर फाउंडर आपको कस्टमर सर्विस से लेकर फाइनेंस जैसे सभी काम खुद करने होते हैं. इसलिए यदि आप अपने साथ किसी अन्य व्यक्ति को भी जोड़ेंगे, तो काम का बोझ कुछ कम होगा. एक सही पार्टनर आपके लिए न केवल आइडिया के मामले में मददगार साबित होगा, बल्कि वह प्रोडक्ट निर्माण में भी मदद करेगा.
– शहर में होनेवाले सभी इवेंट में हिस्सा लें : किसी भी कारोबार को बढ़ाने के लिए नेटवर्किंग सबसे जरूरी है. खासकर नये बाजार, नये पार्टनर, नये उपभोक्ता और निवेश तलाशने वालों के लिए. इसलिए स्थानीय तौर पर आयोजित होनेवाले सभी इवेंट में शामिल होने की कोशिश करें, जिससे आपके नेटवर्क का दायरा बढ़ेगा.
– आलोचनाआें पर ध्यान न दें : आलोचकों को स्टार्टअप का अच्छा मित्र कहा जा सकता है. फाउंडर काे अपने स्टार्टअप को अपने बच्चे की तरह समझना चाहिए. हो सकता है कि जब कोई आपके प्रोडक्ट की गलत समीक्षा करेगा, तो आपको कष्ट हो, लेकिन आप उसकी बातों को गौर से सुनें. इससे आपको अपने प्रोडक्ट के बारे में एक नयी समझ भी पैदा हो सकती है.
– चुनौतियों को कम करके आंकना : स्टार्टअप के गठन के नियमों में काफी बदलाव आया है. बिजनेस शुरू करना उतना आसान भी नहीं, जितना किसी बिजनेस स्कूल में पढ़ाया जाता है. सैद्धांतिक ज्ञान को व्यवहार में उतारते समय बहुत सी अन्य चीजों से भी जूझना पड़ता है. अनेक चुनौतियां मुंह बाये खड़ी रहती हैं, जिनका ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि उसके बारे में कम ही बताया गया होता है. इसलिए शुरुआती दौर में कभी भी चुनौतियों को कम करके नहींआंकना चाहिए.
– धीरे-धीरे आगे बढ़ें : शुरू करने के बाद स्टार्टअप को धीरे-धीरे आगे बढ़ायें. इससे वित्तीय जोखिम कम रहने के साथ अनेक प्रकार की अन्य चुनौतियों से निबटते रहने के लिए आपको पर्याप्त समय मिलेगा.
इन्हे भी जानें
‘स्टार्टअप इंडिया’ के तहत क्या है स्टार्टअप
देश में स्टार्टअप्स के लिए माकूल माहौल मुहैया कराने के मकसद से केंद्र सरकार ने ‘स्टार्टअप इंडिया’ पहल की शुरुआत की है. भारत सरकार के विविध मंत्रालयों द्वारा इस मकसद को पूरा करने के लिए अनेक गतिविधियां शुरू की गयी हैं. इन उद्यमों में एकरूपता लाने के मकसद से किसी कारोबार द्वारा इन शर्तों को पूरा करने पर स्टार्टअप माना जायेगा :
– पंजीकरण की तिथि से पांच वर्ष तक.
– किसी वित्तीय वर्ष में उसका कारोबार यानी टर्नओवर 25 करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं हो.
– वह कारोबार इनोवेटिव, तकनीकी या बौद्धिक संपदा आधारित नये उत्पादों, प्रक्रियाओं या सेवाओं के विकास और उसे व्यवसाय के संबंध में काम कर रहा हो.
स्टार्टअप क्लास
वेबसाइट बना कर अपने प्रोडक्ट
का करें एक्सपोर्ट और मार्केटिंग
– क्या खेती सेक्टर में भी स्टार्टअप हो सकता है? मैंने ड्रैगन फ्रूट नामक खास फल की खेती शुरू की है, जो आम तौर पर बिहार में नहीं होती है़ इसे स्टार्टअप से कैसे जोड़ा जा सकता है?
– बच्छराज नखत, ठाकुरगंज, किशनगंज
हर वह नया उद्यम जो नये तरीके या नये मार्केट में किया जाता है, स्टार्टअप होता है. खेती के क्षेत्र में काफी स्टार्टअप आये हैं, जो अच्छा काम कर रहे हैं. ड्रैगन फ्रूट एक लाभकारी फल है, जिसका इस्तेमाल खानपान में सलाद और अन्य तरीकों से किया जाता है.
साथ ही यह अनेक आयुर्वेदिक दवाओं में भी काम आता है. भारत में 95 फीसदी ड्रैगन फ्रूट आयात किया जाता है. दिल्ली जैसे शहर में इसकी कीमत 400 से 500 रुपये प्रति किलो है. इस लिहाज से आप अपना ब्रांड अच्छी पैकेजिंग के साथ दिल्ली और अन्य शहरों में बेच सकते हैं. आप अपनी वेबसाइट बना कर सीधे एक्सपोर्ट और मार्केटिंग भी कर सकते हैं. आपने सही उत्पाद की खेती की है, जरूरत बस इतनी है कि आप उसे सही ब्रांड बना कर बड़े बाजार में ले जाएं और याद रखें, बिचौलियों से बचें. बड़ी रिटेल कंपनियों से सीधे बात करें. आप काफी मुनाफा कमायेंगे.
छोटे उत्पादकों के लिए एफएसएसएआइ समेत अन्य लाइसेंस जरूरी नहीं
– मैं डेयरी फार्म शुरू करना चाहता हूं. इसके लिए एफएसएसएआइ समेत अन्य नियामकों से लाइसेंस हासिल करने का सिस्टम क्या है? मैं मिल्क एटीएम शुरू करना चाहता हूं, जिससे लोगों को 24 घंटे दूध मुहैया कराया जा सके़ कृपया उचित सलाह दें? – पंकज ठाकुर, जमशेदपुर
एफएसएसएआइ के मानक हर खाद्य उत्पाद के लिए अलग-अलग हैं. अगर आप अभी छोटे उत्पादक हैं, तो आपको लाइसेंस की जरूरत नहीं है. लेकिन आपको मानकों का पालन करना जरूरी है.
मानक आपको एफएसएसएआइ की वेबसाइट पर मिल जायेंगे. ये ज्यादातर चिलर और प्रोसेसिंग प्लांट की गुणवत्ता के बारे में हैं. आपको लाइसेंस की जरूरत तब पड़ेगी, जब आपका उत्पादन 50 हजार लीटर प्रतिदिन से ज्यादा हो जायेगा. मिल्क एटीएम एक अच्छा आइडिया है, लेकिन इसकी जरूरत बड़े शहरों में ही होती है, जहां दूध की जरूरत बड़े पैमाने पर होती है. छोटे शहरों में मिल्क एटीएम मुनाफा नहीं कमा पाते. दिल्ली में पांच हजार से ज्यादा मिल्क एटीएम चलानेवाली मदर डेरी इन्हें 4-6 घंटे ही चलाती है, क्योंकि उससे ज्यादा उसे घाटा सहना पड़ता है. मिल्क एटीएम तब तक न खोलें, जब तक रोजाना दो-तीन लाख लीटर का उत्पादन न कर रहे हों.शुरुआती पूंजी आपको हीलगानी होगी
– मैं स्टार्टअप शुरू करना चाहता हूं, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं. बैंक से किस तरह लोन हासिल किया जा
सकता है?
– संतोष कुमार, सीतामढ़ी
मैंने अपने पिछले कई लेखों में बताया है कि स्टार्टअप को बैंक से कोई लोन या मदद नहीं मिलती है. अगर आपके पास गिरवी रखने के लिए जमीन या गहने हैं, तो आप बैंक से लोन ले सकते हैं. स्टार्टअप के लिए पूंजी आपको अपनी ही लगानी होगी.
ज्यादा दाम में शेयर बेच कर मुनाफा कमाते हैं निवेशक
– मेरा स्टार्टअप एग्रो सेक्टर में प्रोडक्शन और सेल्स मार्केटिंग का है़ मैं जानना चाहता हूं कि कोई भी निवेशक जैसे एंजेल, वेंचर कैपिटल आदि या कोई और इसमें निवेश करता है, तो निवेशक स्टार्टअप से अपना मुनाफा कैसे लेता है? – सुमन मुंडारी, झारखंड
निवेशक ज्यादातर अपने शेयर ज्यादा दाम में बेच कर मुनाफा कमाते हैं. मान लीजिये आप आज 15 लाख का बिजनेस करते हैं, तो निवेशक आपकी कंपनी का मूल्यांकन तीन-चार करोड़ का करेंगे और आपको एक करोड़ दे कर 25 फीसदी शेयर खरीद लेंगे. इस एक करोड़ के निवेश से आप अपना बिजनेस 15 लाख से पांच करोड़ तक ले जाते हैं. अब आपकी कंपनी का मूल्य 25 करोड़ हो जायेगा. इस हाल में निवेशक के एक करोड़ के निवेश का मूल्य 7.5 करोड़ हो जाता है. अब जो भी नया निवेशक आयेगा, उसको यह निवेशक अपने शेयर बेच कर अपना मुनाफा ले लेगा.
स्किल, रुचि और क्षमता के अनुकूल शुरू करें कारोबार
– मैं एमएससी कर रहा हूं और कोचिंग में 11वीं और 12वीं के बच्चों को पढ़ाता हूं. मैं कोई बिजनेस शुरू करना चाहता हूं, लेकिन किस चीज का करूं यह नहीं समझ पाता. कृपया मार्गदर्शन करें.
– धर्मेंद्र कुमार, समस्तीपुर
अपना काम शुरू करने के लिए आपको दो चीजें समझनी होंगी. पहला यह कि आपकी रुचि और क्षमता किस प्रकार के काम को करने की है. अगर आप अच्छा खाना बनाते हैं, तो आप रेस्टोरेंट का बिजनेस कर सकते हैं, लेकिन तभी जब आपकी उसमे रुचि हो. इसी प्रकार से आपको चह सोचना पड़ेगा कि आपकी रुचि और स्किल के साथ आप कौन सा बिजनेस कर सकते हैं.
दूसरा यह कि आपके पास कितनी पूंजी है. चूंकि आप कोचिंग का काम करते हैं, तो आप समझ सकते हैं कि कोचिंग सेंटर के लिए भी पूंजी की जरूरत होती है. सो आपको यह भी देखना होगा की पूंजी के हिसाब से आप कौन सा काम शुरू कर सकते हैं. यह फैसला आप खुद ही लें तो बेहतर है. कोई और आपको यह सलाह कभी नहीं दे पायेगा कि आप किस प्रकार का बिजनेस करें.
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