उत्तर कोरिया ने अपना पांचवा परमाणु परीक्षण किया है. दक्षिण कोरिया का मानना है कि यह उत्तर कोरिया का अब तक का ‘सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण’ है.
दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति पाक गुन-हे ने इसे ‘आत्म-विनाश’ वाला क़दम बताया और कहा कि इससे नेता किम जोंग-उन की सनक ज़ाहिर होती है.
चीन ने उत्तर कोरिया को भविष्य में ऐसे किसी भी कदम से दूर रहने का आग्रह किया है.
ये परमाणु परीक्षण उत्तर कोरिया के गठन की सालगिरह के मौक़े पर हुआ है.
इधर अमरीका ने भी उत्तर कोरिया के इस क़दम पर ‘गंभीर परिणामों’ की चेतावनी दी है.
उत्तर कोरिया के इस परमाणु परीक्षण के दुनिया की राजनीति पर क्या असर हो सकते हैं. इस सवाल पर बीबीसी हिंदी के संवाददाता निखिल रंजन ने रक्षा विशेषज्ञ हर्ष वी पंत से ख़ास बातचीत की.
हर्ष के अनुसार, ” उत्तर कोरिया की समस्या तो पहले से ज़्यादा जटिल होती जा रही है. अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है. सभी ने उत्तर कोरिया के इस कदम की निंदा की है. ऐसे देश के ख़िलाफ़ इससे ज़्यादा और क्या किया जा सकता है जो पहले से ही कूटनीति की मुख्यधारा से कटा हुआ है. उत्तर कोरिया पर पहले से ही कई प्रतिबंध लगे हैं. यह बेहद कड़े प्रतिबंध हैं. इसलिए मुझे लगता कि यह समस्या काफ़ी जटिल है और इसका कोई समाधान नज़र नहीं आता है. दुनियाभर के नीति निर्माताओं को भी अब इस बात का अहसास हो चुका है.”
कुछ जानकारों का मानना है कि अब उत्तर कोरिया के इस कदम के बाद अमरीका सैनिक कार्रवाई के विकल्प पर विचार कर सकता है लेकिन हर्ष इस बात से सहमत नहीं दिखते. .
उनका मानना है कि अमरीका में इस वक़्त जिस तरह के समीकरण विदेश नीति को लेकर बन रहे हैं उस स्थिति में तो अमरीका के पास सैनिक कार्रवाई कोई विकल्प या समाधान नहीं नज़र आता. अभी तक ओबामा की विदेश नीति भी किसी सैनिक कार्रवाई के पक्ष में नहीं रही है. उन्होंने जहां भी सेना का प्रयोग किया है वहां काफ़ी सोच समझकर, विचार करके किया है और बेहद सीमित तरीके से किया है.
उत्तर कोरिया में ऐसी परिस्थितियां नहीं हैं कि वहां सेना का इस्तेमाल किया जाए. हालांकि उन्होंने यह अवश्य कहा है कि उत्तर कोरिया को इस कदम के गंभीर परिणाम झेलने होंगे.
जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने कहा है कि ये परमाणु परीक्षण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
हर्ष के अनुसार,’ चीन ने इस मसले पर आज तक पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं. कुल मिलाकर चीन की भूमिका इसमें ख़ासी रोचक है. कुछ समय पहले पश्चिमी देशों और जापान ने जो नीति अपनाई थी उसका एक अहम बिंदु यह था कि चीन के साथ दोस्ती बढ़ाई जाए. ताकि इससे चीन के ज़रिए उत्तर कोरिया पर कुछ नियंत्रण रखा जा सके. लेकिन चीन के अपने जो हित या स्वार्थ हैं वह काफ़ी अलग हैं. चीन नहीं चाहता कि वहां की सरकार कमज़ोर हो या गिरे. इसीलिए चीन ने अभी जो बयान दिया है उसमें कहा है कि उत्तर कोरिया के इस कदम की वो निंदा करते हैं लेकिन इस कदम के लिए अकेले उत्तर कोरिया को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.’
उनका कहना है, ”इस कदम को उन्होंने दक्षिण कोरिया की नीतियों से जोड़ दिया है. दक्षिण कोरिया ने अमरीका से जो एंटी मिसाइल शील्ड ली हुई है, उससे चीन ने इस मसले को जोड़ दिया है. इसीलिए मुझे लगता है कि कई जगह चीन का रवैया साफ़ नहीं हैं, इससे ज़्यादा परेशानी हो रही है.”
उत्तर कोरिया के इस परमाणु परीक्षण से दक्षिण कोरिया की चिंताओं पर हर्ष का मानना है ,”दक्षिण कोरिया की चिंताएं काफ़ी जायज़ हैं. उत्तर कोरिया के इस कदम से सबसे पहले जो प्रभावित होगा वह दक्षिण कोरिया ही है. पिछले दो वर्षों से इसीलिए दक्षिण कोरिया ने काफ़ी प्रतिरक्षात्मक कदम उठाएं हैं. वह इस को लेकर काफ़ी सर्तकता और संवेदनशीलता बरत रहे हैं. उन्होंने एंटी न्यूक्लियर अभ्यास किए हैं. अमरीका से कुछ समझौते भी इस लिहाज़ से किए है.”
अपनी रक्षा नीति में भी दक्षिण कोरिया ने बदलाव किए हैं क्योंकि उन्हें यह स्पष्ट नहीं है कि उत्तर कोरिया के लीडर किस तरह से सोचते हैं. वहां नीतियां किस तरह से बनती है.
इस समझ के अभाव में दक्षिण कोरिया प्रति रक्षात्मक नीतियों का पालन कर रहा है.
चीन को दक्षिण कोरिया की यह प्रति रक्षात्मक नीतियां परेशान कर रहीं हैं.
यह सारी बातें आपस में जुड़ी हैं.
लेकिन इतना तय है कि उत्तर कोरिया के इस कदम से सबसे पहले और ज़्यादा प्रभावित दक्षिण कोरिया ही होगा.
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