पब्लिक ट्रांसपोर्ट का एक नया विकल्प मोनो रेल

-नॉलेज डेस्क-... मुंबई में दो फरवरी से मोनो रेल सेवा की शुरुआत को देश में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मील के पत्थर के तौर पर देखा जा रहा है. दुनिया के कई देशों में मोनो रेल सार्वजनिक परिवहन का सबसे पसंदीदा और सुलभ साधन है. इसे देखते हुए देश के कुछ अन्य महानगरों में भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 3, 2014 3:32 AM

-नॉलेज डेस्क-

मुंबई में दो फरवरी से मोनो रेल सेवा की शुरुआत को देश में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मील के पत्थर के तौर पर देखा जा रहा है. दुनिया के कई देशों में मोनो रेल सार्वजनिक परिवहन का सबसे पसंदीदा और सुलभ साधन है. इसे देखते हुए देश के कुछ अन्य महानगरों में भी यह सेवा शुरू करने के लिए तैयारियां चल रही हैं. मोनो रेल में आखिर क्या है खास और भारत तथा दुनिया में मोनो रेल के इतिहास पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में दो फरवरी से वडाला और चेंबूर के बीच मोनो रेल सेवा की शुरुआत हुई है. भारत की यह पहली मोनो रेल सेवा है, जबकि जापान समेत कई अन्य विकसित देशों में यह दशकों पहले शुरू हो चुकी है. इस मोनो रेल में चार कोच हैं, जिनमें 560 यात्री सफर कर सकते हैं. मुंबई मोनोरेल लोकल ट्रेनों समेत परिवहन के अन्य साधनों से भी जुड़ी रहेगी. चेंबूर के रेलवे स्टेशन से एक पुल बनाया गया है, जो मोनो रेल के स्टेशन को जोड़ता है. संबंधित अधिकारियों का कहना है कि मोनो रेल से मौजूदा दूरी तय करने में लगनेवाला समय अब 40 मिनट से घट कर 21 मिनट हो गया है. इसके अलावा, यह रेल सेवा इको-फ्रेंडली भी है, इसमें यातायात के अन्य साधनों की तुलना में ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है. मुंबई मोनो रेल का वडाला से जैकब सर्किल तक का दूसरा चरण अगले वर्ष तक पूरा होने की उम्मीद है. पहले चरण में मोनो रेल मुंबई के पूर्वी इलाके में शुरू की गयी है.

विश्व स्तरीय संचालन

मुंबई मोनो रेल को चलानेवाले प्राधिकरण ने यह दावा किया है कि इसका संचालन विश्व स्तरीय है. मोनो रेल में सफर का अनुभव लाजवाब माना जा रहा है. इसमें चार वातानुकूलित डिब्बे लगाये गये हैं. प्रत्येक डिब्बे में 18 यात्रियों के बैठने और सौ से सवा सौ यात्रियों के आराम से खड़े होने की जगह बनायी गयी है. यानी एक ट्रिप में तकरीबन 500 यात्री आराम से सफर कर सकते हैं. यात्रियों की सुरक्षा के लिए भी इसमें कई इंतजाम किये गये हैं. माना जा रहा है कि जल्दी ही इसका दूसरा चरण भी शुरू कर दिया जायेगा. दूसरे चरण की लागत 2500 करोड़ बतायी गयी है. इस चरण में कुल 17 स्टेशन होंगे. करीब 20 किलोमीटर का यह सफर सड़क के रास्ते से दो घंटे का है. माना जा रहा है कि मोनो रेल के शुरू होने से यह महज 45 मिनटों तक सिमट जायेगा.

जापान से कम लागत

भारत में बुनियादी ढांचा निर्माण संबंधी परियोजनाएं भले ही लंबे समय तक लंबित होने के चलते शुरुआती अनुमानित लागत से कई गुना ज्यादा हो जाती हों, लेकिन मुंबई में मोनो रेल परियोजना निर्माण लागत के मामले में भारत ने जापान को पीछे छोड़ दिया है. जापान के ओसाका में बनायी गयी मोनो रेल परियोजना के निर्माण पर 12,690 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि मुंबई की मोनो रेल परियोजना तकरीबन 3,000 करोड़ रुपयों में ही पूरी होने की जानकारी है. जहां तक यात्री किराये का सवाल है तो इस मामले में भी मुंबई की मोनो रेल जापान से काफी सस्ती बतायी गयी है. जापानी मोनो रेल में सफर करने का खर्च कम से कम दो से साढ़े चार अमेरिकी डॉलर बताया जाता है, जबकि मुंबई की मोनो रेल में यात्रियों को कम से कम पांच रुपये और ज्यादा से ज्यादा 11 रुपये ही चुकाने होंगे.

मोनो रेल की तकनीक

मोनो रेल एक अलग तरह की पटरी पर चलायी जानेवाली यातायात व्यवस्था है. इसमें केवल एक ही चौड़ी पटरी होती है, जिस पर संतुलन कायम करते हुए यह दौड़ती है. इसके लिए मोटे-मोटे पिलर बनाये जाते हैं और उनके ऊपर चौड़ी पटरी तैयार की जाती है. इसी चौड़ी पटरी पर बिलकुल सट कर यह रेल चलती है. इसकी तकनीक मौजूदा बुलेट ट्रेनों में इस्तेमाल की जानेवाली मैग्लेव की तरह है, जो कुछ-कुछ चुंबकीय तकनीक पर आधारित है.

जानकारी के मुताबिक मोनो शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1897 में जर्मन इंजीनियर यूगेन लैंगन ने किया था, जिन्होंने एलीवेटेड रेलवे सिस्टम के लिए यह नाम दिया था. शुरुआती दौर में किसी भी तरह के एलीवेटेड रेलवे को मोनो रेल के तौर पर जाना जाता था. लेकिन बाद में इसको लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हुई. डॉकलैंड लाइट रेलवे, वैंकुवर स्काइ ट्रेन ओर जेएफके एयर ट्रेन स्टील आधारित थे, जिसके चलते इसकी परिभाषा को लेकर भ्रम होने लगा. मोनो रेल प्रथम द्रष्टया तो लाइट रेल की तरह ही लगता है और इसे ड्राइवर के बिना भी चलाया जा सकता है. आम तौर पर इसे अन्य एडवांस्ड रैपिड ट्रांजिट सिस्टम्स के रूप में भी जाना जाता है.

दुनिया में मोनो रेल का इतिहास

पहली मोनो रेल रूस में 1820 में चली थी. केवल एक पटरी पर चलायी जानेवाली यह रेल अद्भुत तरीके से बनायी गयी थी. शुरुआती दौर में इसका डिजाइन पारंपरिक रेलवे से मिलता-जुलता था. धीरे-धीरे डिजाइन में परिवर्तन किया गया. कहा जाता है कि उन्नीसवीं सदी में पंजाब के पटियाला में भी मोनो रेल हुआ करती थी. यह हाइब्रिड मॉडल पर आधारित थी और एक ही पटरी पर एक अतिरिक्त पहिये के माध्यम से संतुलन बनाते हुए चलती थी.

आधुनिक मोनो रेल की शुरुआत पहली बार आयरलैंड में बेलीबुनियन और लिस्टोवेल के बीच 1888 में हुई थी, जिसे 1924 में गृहयुद्ध में क्षति पहुंचने के बाद से बंद कर दिया गया. इसके बाद लिवरपूल और मैनचेस्टर के बीच वर्ष 1901 में हाइस्पीड मोनो रेल की शुरुआत हुई. 1910 में अलास्का में कोयले की खदानों में इसकी शुरुआत की गयी. अमेरिका में पहली बार वर्ष 1930 में न्यूयॉर्क सिटी में मोनो रेल चलायी गयी थी. बीसवीं सदी में बड़े बीम या गर्डर आधारित ट्रैक का निर्माण करते हुए मोनो रेल का डिजाइन तैयार किया गया. 1950 के बाद हिटाची मोनो रेल और बॉॅम्बार्डियर जैसी बड़ी कंपनियों ने इसका निर्माण कार्य शुरू किया. 1956 में अमेरिका के ह्यूस्टन में इसकी शुरुआत की गयी. कुछ समय बाद कैलिफोर्निया के डिजनीलैंड समेत फ्लोरिडा के वाल्ट डिजनी वर्ल्ड और जापान में मोनो रेल निर्माण की बड़ी परियोजनाएं शुरू की गयीं. हालांकि, शुरुआती दौर में इसका निर्माण भले ही छोटे स्तर पर किया गया, लेकिन कई शहरों में धीरे-धीरे इसने सार्वजनिक यातायात प्रणाली में व्यापक भूमिका निभानी शुरू की.

प्रतियोगी सार्वजनिक परिवहन

वर्ष 1950 और 1980 के बीच मोनो रेल का कॉन्सेप्ट बढ़ता गया और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में ऑटोमोबाइल से इसकी प्रतिस्पर्धा होने लगी. मोनो रेल के लिए वर्ष 1980 के बाद का समय इसके आधुनिक इतिहास के तौर पर जाना जाता है. इसके बाद से जापान और मलयेशिया में बढ़ते शहरीकरण के बीच सड़कों पर यातायात कम करने में इसने बड़ी भूमिका निभायी है. टोक्यो मोनो रेल को तो दुनिया का सबसे व्यस्त माना जाता है, जहां रोजाना सवा लाख से ज्यादा यात्री इसका इस्तेमाल करते हैं. इस शहर में यह भीड़भरे बाजारों के बीच से होकर भी गुजरती है. हालांकि, चीन के चोंगकिंग शहर में इसे एक अलग तकनीक से बनाया गया है, जिसमें भारी पटरियों का इस्तेमाल करते हुए मौजूदा मोनो रेल के मुकाबले इसे चौड़ा बनाया गया है. दरअसल, इसके मार्ग में कई पहाड़ियां और नदियां आती हैं, इसलिए इसे इस तरह से बनाया गया है.

इसे इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा चलाया जाता है. पिलर के ऊपर पटरी के बीच में ही इलेक्ट्रिक लाइन सेट की जाती है. कुछ देशों में डीजल आधारित मोनो रेल सिस्टम भी मौजूद है.

मेट्रो बनाम मोनोरेल

महानगरों में भीड़भाड़ वाले इलाकों समेत सघन बस्तियों के बीच आम लोगों को सार्वजनिक परिवहन मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौती रही है. भले ही अंडरग्राउंड मेट्रो के तौर पर विकल्प अब हमारे पास मौजूद है, लेकिन यह अत्यधिक खर्चीली योजना है. यदि ऊपरीगामी मेट्रो की बात करें, तो भी सघन बस्तियों के बीच से इसे निकालना आसान काम नहीं. मेट्रो के मुकाबले मोनो रेल को टेढ़े-मेढ़े रास्तों से निकालना ज्यादा आसान है. इसकी दूसरी बड़ी खासियत यह भी है कि इसे मेट्रो के मुकाबले ज्यादा तीव्र मोड़ पर भी आसानी से चलाया जा सकता है. यानी इसका संचालन ज्यादा लचीला है. हमारे देश में शहर की घनी आबादी के इलाकों से मोनो रेल गुजारी जा सकती है. मोनो रेल को एलिवेटेड ट्रैक पर चलाने के लिए मेट्रो के मुकाबले कम व्यास के खंभों की जरूरत होती है. साथ ही, यह मेट्रो की तरह 120 डिग्री के बजाय 60 डिग्री के घुमाव पर मुड़ सकती है. वैसे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए मोनो व मेट्रो रेल में कौन बेहतर विकल्प है, यह बहस का विषय रहा है. दोनों सिस्टम्स की अपनी-अपनी खूबियां और कमियां हैं.

भारत में मोनो रेल का सफर

पिछले वर्ष नयी दिल्ली में आयोजित इंडो-जापान मोनो रेल सेमिनार में दिल्ली में मोनो रेल की संभावनाओं पर विस्तार से चरचा की गयी थी. इसमें दिल्ली की मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार के संबंधित मंत्री के अलावा जापानी एजेंसी जेआइसीए के अधिकारी और जापानी कंपनियां भी शामिल हुई थीं. इसके बाद से सरकार ने भीड़भाड़ और सघन आबादी वाले इलाकों में इसके निर्माण और संचालन संबंधी कार्ययोजना तैयार करने का काम शुरू किया था. इसी संदर्भ में शास्त्रीपार्क से त्रिलोकपुरी के बीच 11 किलोमीटर की दूरी में पहला मोनो रेल कॉरिडोर 2017 तक शुरू होने की उम्मीद जतायी गयी थी. इस परियोजना पर 2,200 करोड़ रुपये की लागत आने की संभावना जतायी गयी, जिसके लिए जेआइसीए धनराशि मुहैया करा रही है. बाद में जेआइसीए के अधिकारियों ने इस परियोजना की लागत और बढ़ने की आशंका जाहिर की थी.

केंद्र और राज्य सरकार का मानना है कि मोनो रेल परियोजना भारत के लिए व्यावहारिक नजर आती है, क्योंकि संकरी सड़कों और व्यस्त गलियों वाले इलाकों में मेट्रो रेल सेवा पहुंचाना बहुत कठिन है. जेआइसीए के विभिन्न अधिकारियों ने लागत के हिसाब से भी मोनो रेल को व्यावहारिक बताते हुए कहा कि इस पर कम लागत आती है और इसने जापान की राजधानी टोक्यो में अत्यधिक सफलता हासिल की है. हालांकि, मुंबई में एक सेमिनार में कुछ संबंधित अधिकारियों ने वैश्विक स्तर पर मोनो रेल की घटती लोकप्रियता को लेकर सवाल उठाये थे. अधिकारियों का कहना था कि भले ही मोनो रेल परियोजना निर्माण की लागत कम आती है, लेकिन एक बार में यात्रियों को ले जाने की इसकी क्षमता भी मेट्रो के मुकाबले कम होती है, जो दिल्ली जैसे सघन आबादीवाले शहर के लिए एक अहम मसला है. पूर्वी दिल्ली में मोनो रेल चलाने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से मंजूरी मिल गयी है. उम्मीद की जा रही है कि राजधानी के लोग अगले तीन-चार वर्षो में मोनो रेल का मजा ले पायेंगे.

राजधानी दिल्ली की रफ्तार कहलाने वाली मेट्रो की शुरुआत पूर्वी दिल्ली के शाहदरा से हुई थी. वहीं अब राजधानी की दूसरी बड़ी उपलब्धि मोनो रेल की शुरुआत भी पूर्वी दिल्ली में शाहदरा-रिठाला मेट्रो लाइन के रास्ते में पड़नेवाले प्रमुख स्टेशन शास्त्री पार्क से होने जा रही है. माना जा रहा है कि मोनो रेल से एक घंटे के सफर में 8,000 पैसेंजरयात्राकर पायेंगे. उम्मीद की जा रही है कि दिनभर में मोनो रेल करीब एक लाख से ज्यादा पैसेंजर को उनकी मंजिल तक पहुंचा सकेगी. यह कॉरिडोर तकरीबन 10 किलोमीटर लंबा होगा. इसमें 12 से 14 स्टेशन बनाये जायेंगे. यह मोनो रेल मौजूदा समय में दिलशाद गार्डन से रिठाला लाइन, आनंद विहार से द्वारका लाइन और फेज तीन के तहत निर्माणाधीन मुकुंदपुर से यमुना विहार लाइन को जोड़ेगी.

मोनो रेल की सबसे बड़ी खासियत यह होगी कि इसमें बैठे पैसेंजर को इसका कोई शोर सुनाई नहीं देगा और न ही बाहर के लोगों को ही इसकी आवाज महसूस होगी. वहीं, इसकी दूसरी खासियत इसका प्रदूषण रहित होना है. इसके निर्माण के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने जापान की एजेंसी से समझौता किया है, जिसमें 40 से 50 फीसदी तक लोन मुहैया कराने की बात कंपनी ने कही है. यदि सब कुछ सही रहा तो 2015 में इसका प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर लिया जायेगा. इसके लिए फिलहाल जापान, मलयेशिया और जर्मनी से बातचीत अंतिम चरण में है. उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2017 तक राजधानी दिल्ली में इसकी शुरुआत हो सकती है.

कई महानगरों में तैयारी

दिसंबर, 2009 में मलयेशिया की एम रेल इंटरनेशनल ने राजस्थान के छह प्रमुख शहरों यथा जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, बीकानेर और अजमेर में निजी जन सहभागिता (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोडल पर आधारित मोनो रेल चलाने प्रस्ताव दिया था. इस पर राज्य सरकार ने इन सभी शहरों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने के लिए फर्म को स्वीकृति भी दे दी. फर्म की ओर से जवाब नहीं देने पर राज्य सरकार ने स्वीकृति निरस्त कर दी. बिहार सरकार ने भी पटना में मोनो रेल की शुरुआत करने की घोषणा की है. मध्य प्रदेश सरकार ने भी इसके फायदों को देखते हुए इंदौर, भोपाल समेत कई अन्य शहरों में इसे चलाने की बात कही है. चेन्नई में तो बाकायदा इसके लिए डीपीआर तैयार करवायी जा रही है और जल्द से जल्द इसका निर्माण सुनिश्चित किया जा सके इसके लिए एक प्राधिकरण गठित किया जा रहा है.

दुनिया में कुछ प्रमुख मोनो रेल

चोंगकिंग रेल ट्रांजिट (चीन)

प्रारंभ होने का वर्ष: 2011

स्टेशनों की संख्या: 39

कुल लंबाई: 55.5 किलोमीटर

दैनिक यात्रियों की संख्या: 5,00,000

वाल्ट डिजनी वर्ल्ड मोनो रेल सिस्टम

प्रारंभ होने का वर्ष: 1971

स्टेशनों की संख्या: 6

कुल लंबाई: 23.7 किलोमीटर

दैनिक यात्रियों की संख्या: 1,50,000

ट्रेन की लंबाई: 62 मीटर

औसत स्पीड: 64 किमी प्रति घंटा

अधिकतम स्पीड: 89 किमी प्रति घंटा

चीबा अरबन मोनो रेल (जापान)

प्रारंभ होने का वर्ष: 1988

स्टेशनों की संख्या: 18

कुल लंबाई:15 किलोमीटर

दैनिक यात्रियों की संख्या: 50,000

ओसाका मोनो रेल (जापान)

प्रारंभ होने का वर्ष: 1990

स्टेशनों की संख्या: 18

कुल लंबाई:18 किलोमीटर

दैनिक यात्रियों की संख्या: 1,20,000

अधिकतम स्पीड: 75 किमी प्रति घंटा

शोनान मोनो रेल (जापान)

प्रारंभ होने का वर्ष: 1970

स्टेशनों की संख्या: 8

कुल लंबाई:6.6 किलोमीटर

दिल्ली में मोनो रेल

दिल्ली में 2007 में तैयार की गयी व्यवहार्यता रिपोर्ट में तीन कॉरिडोर चिह्न्ति किये गये थे. साथ ही, एक अन्य प्रोजेक्ट की मंजूरी भी दे दी गयी थी और उसके लिए शीघ्र कार्य शुरू करने की योजना तैयार हो चुकी है.

28.5 किलोमीटर लंबी

लाइन बुद्ध विहार से लाल किला के बीच बनायी जायेगी.

15.4 किलोमीटर लंबी लाइन कल्याणपुरी से पुल मिठाई के बीच बनायी जायेगी.

3.8 किलोमीटर लंबी

लाइन दिल्ली विश्वविद्यालय से गुलाबी बाग के बीच बनायी जायेगी.

11 किमी लंबी लाइन शास्त्रीपार्क से त्रिलोकपुरी के बीच 2017 तक शुरू होने की उम्मीद.