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भारत में बढ़ रहा है बाहर खाने का चलन

देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण ने भारतीयों की जिंदगी में कई तरह के नये चलन को शुमार किया है. ऐसा ही एक चलन इन दिनों शहरी भारतीयों की जिंदगी में बड़े पैमाने पर देखा जा सकता है. भारतीय परिवारों में बाहर खाना खाने का प्रचलन अब आम हो चुका है. वीकेंड हो या […]

देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण ने भारतीयों की जिंदगी में कई तरह के नये चलन को शुमार किया है. ऐसा ही एक चलन इन दिनों शहरी भारतीयों की जिंदगी में बड़े पैमाने पर देखा जा सकता है. भारतीय परिवारों में बाहर खाना खाने का प्रचलन अब आम हो चुका है. वीकेंड हो या किसी का जन्मदिन या फिर कुछ अच्छा खाने का मूड, बाहर जाकर खाना खाने के लिए अब वजहों की कमी नहीं. भारतीयों के इस शौक का असर भारत में बढ़ रहे रेस्टोरेंट उद्योग के तौर पर भी देखा जा सकता है.

पटना में रहनेवाली अदिति सेन को हर वीकेंड का बेसब्री से इंतजार रहता है. इस इंतजार के पीछे पति और बच्चों के साथ होनेवाला ढेर सारा इंजॉयमेंट तो होता ही है, रसोई से एक शाम के लिए मिलनेवाला आराम भी होता है. महीने में पड़नेवाले चार वीकेंड में से कम से कम दो या तीन में तो उनके परिवार का बाहर डिनर तय होता है. डिनर की फेवरेट जगहें और डिशेस भी लगभग तय होती हैं. कभी अंगीठी, कभी राज-रसोई, कभी मेनलैंड चाईना. किसी वीकेंड में कोई फिल्म देख ली, तो कभी बाजार की तफरी कर ली, लेकिन खाना तो बाहर खाकर ही लौटना है. घर के खाने से अलग स्वाद और सबके साथ अच्छा वक्त बिताने का मौका भी. यह बदलाव महानगरों ही नहीं, छोटे शहरों में भी देखा जा सकता है. भारतीय परिवारों में होटल और रेस्टोरेंट में खाना खाने का चलन इन दिनों जोरों से बढ़ा है. इस चलन ने रेस्टोरेंट और होटल व्यवसाय को ऊंचाई पर पहुंचाने का काम किया है.

कोलकाता की सौम्या मिश्र, जो सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, वीकेंड पर बाहर खाना खाने के इस बढ़ते चलन को कई लिहाज से बेहतर मानती हैं. सौम्या कहती हैं हम जैसे कामकाजी लोगों के लिए हफ्ते भर की थकान मिटाने और परिवार के सदस्यों के साथ क्वालिटी समय बिताने के लिए यह एक मौके की तरह होता है. बाहर खाना खाते हुए आप एक दूसरे के साथ वो सारी बातें भी शेयर कर लेते हैं, जो समय न मिलने के कारण नहीं कर पा रहे थे.

वहीं दिल्ली में रहने वाले वैभव गुप्ता इस चलन को सेहत के नजरिये से ठीक नहीं मानते. उन्हें लगता है हर वीकेंड पर बाहर खाना खाने का असर सेहत पड़ता है. वैभव कहते हैं कि चिकित्सक भी मसालेदार खाना और फास्टफूड जैसी चीजें कम से कम खाने की सलाह देते हैं. लेकिन फिर भी कभी कभार रोजमर्रा के रूटीन के हटकर खास मौकों पर दोस्तों या परिवार के सदस्यों के साथ बाहर डिनर या लंच करने से जिंदगी में कुछ खुशनुमा पल भी जुड़ते हैं.

बाहर खाना खाने को लेकर लोगों की राय भले ही अलग-अलग हो लेकिन नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में संगठित रेस्टोरेंट इंडस्ट्री अगले पांच वर्षो में 48 अरब के करीब पहुंच सकती है. इस आंकड़े से जाहिर होता है कि भारतीयों में बाहर खाना खाने का चलन कितनी तेजी से बढ़ रहा है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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