कौशलेंद्र रमण
काम में नुक्स निकालना कुछ लोगों की प्रवृत्ति होती है. ऐसे ही लोगों में हैं नवल जी. आज तक मैंने उनके मुंह से किसी की प्रशंसा नहीं सुनी है. हर चीज में मीन-मेख निकालते हैं. दफ्तर हो या घर, उनकी इस आदत से सभी परेशान रहते हैं. दफ्तर में लोग उनसे दूर भागते हैं.
और घर में नवल जी से कोई राय लेना नहीं चाहता है. घर और दफ्तर में सबको पता है वह सिर्फ नुक्स निकालेंगे. काम को कैसे और अच्छा किया जाये, इसके बारे में नहीं बतायेंगे. एक दिन नवल जी के आठ साल के बेटे को स्कूल से एक प्रोजेक्ट बनाने को मिला. उसने अपनी समझ के अनुसार प्रोजेक्ट बनाया और स्कूल में जमा कर दिया. शिक्षक को प्रोजेक्ट बहुत अच्छा लगा. उन्होंने उसे ‘ए प्लस’ दिया. बेटा बहुत खुश हुआ. उसने अपने बनाये प्रोजेक्ट को नवल जी को दिखाया. प्रोजेक्ट देखने के बाद उन्होंने कहा, ए प्लस लायक नहीं है. इसे और अच्छा बनाया जा सकता था. कंटेंट का चयन अच्छे तरीके से नहीं किया गया है. इस तरह के न जाने कितने नुक्स नवल जी ने निकाल दिये.
उनकी बातों से बेटा मायूस हो गया. दूसरे दिन उसने यह बात अपने शिक्षक को बतायी. शिक्षक को लगा कि इससे बच्चा हतोत्साहित होगा. उसका भविष्य खराब हो सकता है. वह नवल जी से मिलने उनके घर शाम को पहुंचे. शिक्षक ने उनसे पूछा – सर आपने कहा कि प्रोजेक्ट ए प्लस के लायक नहीं है. उसे और अच्छा बनाया जा सकता था. सर, क्या आप बता सकते हैं कि इसमें क्या-क्या किया जा सकता है? सवाल सुनकर नवल जी बगलें झांकने लगे.
इसके बाद शिक्षक ने बोलना शुरू किया – सर नुक्स निकालना आसान है और अच्छाई की कोई सीमा नहीं है. आप अगर नुक्स निकालेंगे तो बच्चा हतोत्साहित होगा, लेकिन उसे यह बतायेंगे कि क्या करने से अच्छा होगा, तब उसका हौसला बढ़ेगा. नुक्स निकालना नकारात्मक प्रवृत्ति है, इससे बचना चाहिए़
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