एक पिता ने देखा कि उसके पुत्र ने बाग में लगे एक खूबसूरत पेड़ को काट डाला है. उन्हें बड़ा गुस्सा आया. उन्होंने बेटे को बुलाकर पूछा. बेटे ने सारी बातें सच-सच बता दी. बेटे की सच्चई और गलती स्वीकारने की प्रवृति से पिता गद्गद् हो उठे. उन्होंने बेटे को गले लगा लिया. इस बालक का नाम था-जॉर्ज वाशिंगटन, जो बड़ा होकर अमेरिका का प्रथम राष्ट्रपति बना.
जॉर्ज वाशिंगटन के पिता किसान थे. लेकिन वे किसान नही बने. कुछ अलग कर गुजरने की चाह ने उन्हें सेना में भर्ती होने को प्रेरित किया. अमेरिका उस समय गुलाम था. लोगों में आजादी को पाने की भावना उमड़ रही थी. अगली पंक्ति के नेता में जॉर्ज वाशिंगटन भी शामिल थे. इनके विनम्र स्वभाव के कारण ही लोगों ने अनुभवी लोगों को छोड़कर इन्हें अपना नेता चुना था. वे अमेरिकन मुक्ति सेना के प्रधान सेनापति बनाये गये.
एक बार कुछ सैनिक लकड़ी के एक बड़े टुकड़े को उठा कर कहीं रख रहे थे और उनका सीनियर उन्हें आदेश दे रहा था. जॉर्ज वाशिंगटन वहां से गुजर रहे थे, यह देख वे दौड़ कर आये और सैनिकों की मदद करने लगे. सीनियर यह देख कर लज्जित हुआ. उनकी अपनी कोई औलाद नहीं थी. वे देशवासियों के साथ पुत्रवत व्यवहार करते थे. इसलिए अमेरिका के वासी उन्हें राष्ट्रपिता मानते हैं. आजादी मिलने और संविधान लागू होने के बाद, वे अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गये. अमेरिका की कृतज्ञ जनता ने अपने राष्ट्रपिता के नाम पर अपने देश की राजधानी, एक राज्य, सात पहाड़ों, आठ नदियों, दस झीलों का नाम रखा है. 33 काउंटियों, नौ कॉलेजों, 120 नगरों और कस्बों के नाम भी उनके नाम पर हैं. सिक्कों और नोटों पर जॉर्ज वाशिंगटन की तसवीर छपती है. एक पहाड़ की चोटी को तराश कर उनकी आकृति भी बनायी गयी है.
‘‘अगर कोई व्यक्ति यह प्रतिज्ञा कर ले कि वह प्रतिदिन अपनी शक्ति भर काम करेगा और स्वच्छ तथा उपकारी जीवन जीयेगा, तो मुङो विश्वास है कि उसका जीवन आशा और उत्साह से भरा होगा. फिर उसके लिए संसार का कठिन से कठिन काम भी आसान होगा.’’
जॉर्ज वाशिंगटन
जीवनकाल : 1732-1799