रियो डि जिनेरियो : रियो ओलंपिक की जिम्नास्टिक स्पर्धा में चौथे स्थान पर रहने के बाद दीपा कर्माकर भले ही मुस्कुराती हुई नजर आई लेकिन उसकी इस मुस्कान के पीछे अपार दर्द छिपा था और खेलगांव लौटने के बाद वह अपने जज्बात पर काबू नहीं रख सकी. खेलगांव पहुंचने के बाद दीपा फूट फूटकर रोई. उसके कोच और पितृतुल्य बिश्वेश्वर नंदी के लिये भी खुद को रोक पाना मुश्किल हो गया था.
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खेलगांव पहुंचने के बाद फूट फूटकर रोई दीपा कर्मकार
रियो डि जिनेरियो : रियो ओलंपिक की जिम्नास्टिक स्पर्धा में चौथे स्थान पर रहने के बाद दीपा कर्माकर भले ही मुस्कुराती हुई नजर आई लेकिन उसकी इस मुस्कान के पीछे अपार दर्द छिपा था और खेलगांव लौटने के बाद वह अपने जज्बात पर काबू नहीं रख सकी. खेलगांव पहुंचने के बाद दीपा फूट फूटकर रोई. […]
कोच नंदी ने कहा ,‘‘ खेलगांव आने के बाद दीपा को संभालना मुश्किल हो गया था. मामूली अंतर से कांस्य से चूकना हमारे लिये जिंदगी के सबसे बड़े खेद में से रहेगा.’ दीपा और उसके कोच पूरी शाम खेलगांव में एक दूसरे को ढांढ़स बंधाते रहे. कोच ने कहा ,‘‘ हर कोई खुश था लेकिन हमारी तो दुनिया ही मानो उजड़ गई और वह भी इतने मामूली अंतर से. यह सबसे खराब स्वतंत्रता दिवस रहा. मैं धरती पर सबसे दुखी कोच हूं. यह खेद ताउम्र रहेगा.’ महिलाओं के वोल्ट फाइनल में दीपा का स्कोर 15.266 था और वह स्विटजरलैंड की जिउलिया स्टेनग्रबर से पीछे रही जिसने 15.216 के साथ कांस्य पदक जीता.
रियो ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने के बाद दीपा के पास तैयारी के लिये तीन महीने का ही समय था. कोच ने कहा ,‘‘ हमने सिर्फ तीन महीने तैयारी की जबकि दूसरे जिम्नास्ट पूरे साल तैयारी करते हैं.’ यह पूछने पर कि क्या विदेश में अभ्यास या कोचों के बारे में विचार किया जा रहा है, नंदी ने कहा ,‘‘ मैं विदेशी कोचों के खिलाफ हूं. यदि हम कर सकते हैं तो उनकी क्या जरुरत है. हमें फिट रहने और उसे तोक्यो ओलंपिक 2020 तक फिट बनाये रखने के लिये उचित सुविधायें चाहिये.’ उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण की तमाम सुविधायें मुहैया कराने के लिये जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा ,‘‘ हमें सर्वश्रेष्ठ सुविधायें मिली.’
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