।। दक्षा वैदकर।।
हमारे जीवन में जब भी कुछ बुरा होता है, एक सवाल हमारे मन में आता है कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है? मैंने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा. मैंने तो अपना काम ईमानदारी से मन लगा कर किया. फिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों? जब भी मैं लक्ष्य के एकदम करीब आ जाता हूं, सब कुछ क्यों बिगड़ जाता है? मैंने कभी किसी को धोखा नहीं दिया, फिर मेरे साथ उसने ऐसा क्यों किया? मैं जरूरत पड़ने पर सबकी मदद करता हूं, लेकिन जब मुझे जरूरत होती है, तब कोई मेरी मदद नहीं करता.
ये सारे सवाल जब भी हमारे मन में आते हैं, हम उसे यही जवाब देते हैं कि दुनिया सीधे, ईमानदार, मेहनती व सच्चे लोगों के लिए नहीं है. यहां तो चालाक, बेइमान, झूठा बन कर ही काम हो सकता है. हम धीरे-धीरे दूसरे लोगों की कॉपी करना शुरू कर देते हैं और अपना वास्तविक स्वभाव खो देते हैं. फिर इसी तरह हम काम करवाते हैं, रुपये कमाते हैं, अमीर हो जाते हैं, सुख-सुविधाएं जुटा लेते हैं. लेकिन जब सारी चीजें मिल जाती हैं, तो हम खुद से यही कहते हैं कि मेरे पास सब कुछ है, लेकिन भीतर कुछ खाली-खाली-सा लगता है.
क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? दरअसल, आपने उस वक्त अपने मन को सही जवाब नहीं दिया था, जब उसे मिलना चाहिए था. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि आप जवाब नहीं जानते हैं. दरअसल, आप जागरूक नहीं हैं.
यहां हम बात कर रहे हैं आध्यात्मिक कानून यानी ‘लॉ ऑफ कर्माज’ की. आपको यह पता होना चाहिए कि आप जैसे कर्म करोगे, वैसा ही फल आपको मिलेगा. हो सकता है कि आप अपने परिवारवालों, दोस्तों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते हों, लेकिन बदले में वे आपको सम्मान नहीं देते हों, धोखा देते हों. अब आप कहेंगे कि मैंने तो उन्हें सिर्फ प्यार दिया. फिर उन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? यहां आपको सोचना होगा कि क्या आपने ऑफिस के लोगों के साथ, समाज में अन्य लोगों के साथ भी ऐसा ही प्यार भरा व्यवहार रखा है? याद रहे कि आपके कर्म कहीं से भी, किसी भी दिशा से वापस लौट कर आते हैं. इसलिए आपको सभी से प्यार भरा व्यवहार करना होगा.
बात पते की..
आप जैसा कर्म करेंगे, आपको वैसा ही फल मिलेगा. यदि फिर भी कुछ गलत हो, तो याद रखें कि पिछले जन्म के भी कर्म हमें यहीं भोगने हैं.
लोगों पर चिल्लाना, उन्हें डांटना, सजा देना बंद करें. इस तरह आप उन्हें नहीं, बल्कि खुद को सजा देते हैं. अपनी सेहत गिराते हैं. खुशी त्यागते हैं.