जर्मनी के शहर म्यूनिख के शॉपिंग सेंटर में हुई गोलीबारी की घटना ने एक बार फिर यूरोप को हिला कर रख दिया है. कहा जा रहा है कि हमलावर ईरानी मूल का था. और अकेला था.
यूरोप में एक के बाद एक हो रहे हमलों को प्रवासियों और शरणार्शियों के लिए कठिन दौर की शुरूआत माना जा रहा है.
म्यूनिख में हुआ हमला किस तरह से प्रवासियों पर असर डाल सकता है.बता रहे हैं जर्मनी के शहर बॉन से स्थानीय पत्रकारअनवर जमाल अशरफ़ .
म्यूनिख में हुआ हमला अलग तरह का है. लगभग सात घंटे तक हमलावर की तलाश में पूरा शहर एक तरह से बंद कर दिया गया था. लोगों से कहा गया कि वे घरों से न निकलें और जहां है वहीं रहें.
म्यूनिख में हुए इस हमले ने एकबार फिर से ढाका और मुंबई में हुए हमलों की याद को ताज़ा कर दिया है. इसके साथ ही पिछले हफ्ते जर्मनी के बवेरिया में भी एक हमला हुआ था जहां एक अफ़गान नागरिक ने कुल्हाड़ी से लोगों पर हमला किया था.
बवेरिया जर्मनी का एक अमीर लेकिन रूढ़िवादी इलाका भी है.
नीस के बाद जर्मनी में एक के बाद एक हुए ये हमले यूरोप को परेशान करते हैं.
इस हमले के बाद सबसे अधिक परेशानी यूरोप में रह रहे शरणार्थियों को होगी. क्योंकि इस हमलावर के पास ईरान और जर्मनी दोनों की ही नागरिकता थी.
जर्मनी में काफी ईरानी रहते हैं जो 1980-90 के दशक में यहां आए थे.
जर्मनी के लोगों ने जिस तरह से शरणार्थियों के लिए अपने घर के दरवाजे खोले हैं और यहां दस लाख से ज्यादा रिफ्यूजियों को शरण दी हुई है,आने वाले समय में उन शरणार्थियों को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
इस तरह के हमलों के बाद और हाल ही में कोलोन में हुए हमले के बाद लोगों में प्रवासियों को लेकर यहां के लोगों में गुस्सा, नाराज़गी और खौफ़ का माहौल है.
चांसलर अंगेला मर्केल के लिए भी लोगों में जो समर्थन दिखता था अब वो नहीं दिख रहा है.
यूरोप और जर्मनी में हो रहे हमलों से शरणार्थियो के लिए कठिन दौर की शुरुआत हो सकती है.
(बीबीसी संवाददाता फैसल मुहम्मद अली से बातचीत पर आधारित)
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