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सावन में शिव तत्व की सार्थकता
बल्देव भाई शर्मा श्रीमद् भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मासों में मैं कार्तिक मास हूं. श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार हैं, इसलिए कार्तिक मास विष्णु के महात्म्य से जुड़ा है. आज भी देश में बड़ी संख्या में ग्रामीण विशेषकर महिलाएं कार्तिक स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करती हैं. कुछ साल पहले तक भी […]
बल्देव भाई शर्मा
श्रीमद् भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मासों में मैं कार्तिक मास हूं. श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार हैं, इसलिए कार्तिक मास विष्णु के महात्म्य से जुड़ा है. आज भी देश में बड़ी संख्या में ग्रामीण विशेषकर महिलाएं कार्तिक स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करती हैं.
कुछ साल पहले तक भी गांवों में भोर हुए यानी सुबह चार बजे के अासपास जब दिन नहीं निकलता, समूहों में लोकगीत गाती हुई महिलाएं कुएं पर स्नान करने जाती हुई आसानी से देखी जा सकती थीं. कार्तिक पूर्णिमा पर तो विशेषकर उत्तर भारत में पवित्र नदियाें में स्नान करने के लिए लाखों लोग उमड़ पड़ते हैं. ऐसी है कार्तिक मास की महिमा. इसी कार्तिक मास में अमावस्या के घने अंधकार को चीरते हुए दीपावली के दीये जगमगा उठते हैं.
अभी 20 जुलाई से श्रावण मास प्रारंभ हो गया है जिसमें चारों ओर बम भोले की गूंज सुनायी देती है. यानी शिवशंकर की उपासना का महीना है यह. लाखों शिव भक्त भारी कष्ट उठा कर पैदल यात्रा करके गंगाजल कांवड़ में लाते हैं और उससे शिव मंदिरों में भगवान शंकर का अभिषेक करते हैं. शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी होना. शिव आशुतोष हैं जो शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं.
भोलेे नाथ हैं शिव जो पूजा-अर्चना से प्रसन्न होकर ऐसे लोगों को भी वरदान दे देते हैं जो उन्हीं की जान के दुश्मन बन जाते हैं. भस्मासुर की ऐसी ही कथा लोक प्रचलित है जब शिव से ही वरदान लेकर उन्हीं के प्राणों के पीछे पड़े भस्मासुर को मोहिनी का रूप लेकर विष्णु संहारते हैं व शंकर जी को आफत से बचाते हैं.
शिव के इसी लोक कल्याणकारी रूप का कैसा अदभुत गायन किया है लोक कवियों ने – ‘धन धन भोलेनाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में/सारी बसुधा जग को सौंपी आप बसे वीराने में.’ शिव महिमा अनंत है, वह भले ही सृष्टि के संहारक माने गये हैं लेकिन लोक कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहने वाले हैं.
इसीलिए उन्हें महादेव कहा गया है. सावन के महीने की महिमा भी शिव के इसी लोक कल्याणकारी स्वरूप से जुड़ी है. श्री भागवत पुराण में कथा है कि देवासुर संग्राम के दौरान जब लगातार देवताओं की हार होती गयी और राक्षस (असुर) विजयी होते चले जा रहे थे तब चिंतातुर देवराज इंद्र को पराजय से उबरने का उपाय भगवान विष्णु ने सुझाया. तदनुसार शेषनाथ की मथनी बना कर सुमेरू पर्वत से समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त होगा जिसे पीकर देवता अमर और विजयी होंगे. लेकिन समस्या थी कि समुद्र मंथन तो देवता और असुर दोनों करेंगे. मथनी को एक तरफ देवता घुमायेंगे और दूसरी राक्षस. जब अमृत निकलेगा तो अकेले देवताओं को वह कैसे मिलेगा, असुर भी तो मांगेंगे.
परंतु विष्णु ने सोच रखा था कि वह अमृत केवल देवताओं को ही कैसे मिलेगा, यह कथा अलग, लेकिन जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से एक-एक कर ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, कल्पवृक्ष, उच्चैश्रवा घोड़ा ऐसे अमृत सहित चौदह रत्न निकले. उसी में से निकला हलाहल विष. हलाहल विष के निकलते ही उसके अत्यधिक जहरीले प्रभाव से चारों ओर हाहाकार मच गया कि यदि वह विष और थोड़ी देर यों ही रखा रहा तो सृष्टि का विनाश हो जायेगा. प्रकृति, वनस्पति, जल, जीव सब मानो विनाश के कगार पर पहुंच गये.
एक बड़ी समस्या थी कि इस विष का पान कौन करे ? उसके विनाशकारी दुष्प्रभाव को झेल सके ऐसा कौन है ? तब शिव आगे आये और उस हलाहल गरल का पान किया लेकिन माता पार्वती ने उसे उनके कंठ यानी गले में रोक दिया. शिव नीलकंठ हो गये, विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया, लेकिन शिव ने स्वयं विष पीकर प्रकृति और जीव-जगत को बचा लिया. यही है शिव का लोक कल्याणकारी स्वरूप कि स्वयं को संकट में डाल कर भी दूसरों की रक्षा करना, भलाई करना. यही शिव तत्व है.
शिव ने हलाहल तो पी लिया, वह भले ही उनके कंठ में ठहरा हुआ था लेकिन उसके जहरीले असर से शिव बेचैन हो गये, उनकी छटपटाहट बढ़ गयी, बेसुध होने लगे तब विष्णु आदि समस्त देवाें ने लगातार उन पर जल की धार छोड़ी, इस जलाभिषेक से शिव चैतन्य हुए और प्रकृति व सृष्टि पूर्ववत चलने लगीं. श्रावण मास शिव के उसी विष-ताप को शांत करने का महीना है. इसीलिए चारों और शिव पूजा का नाद गूंजता है और भक्तगण जल, दूध, शहद, गन्ने के रस व गंगा जल आदि से शिवजी का अभिषेक करते हैं. इस उल्लास में खूब नाचते-गाते हैं.
सावन के महीने में प्रकृति में भी यह उल्लास खूब छलकता देखा जा सकता है मानो हरियाली चूनर ओढ़कर पूरी प्रकृति नाच उठी हो. शिव के विष-ताप को शांत करने के लिए मेघ भी सावन में खूब बरसते हैं. सावन जीवन की उमंग जगाने वाला महीना है, चारों ओर सावन की बहार है, मेघों की फुहार है.
मानसून ने धरती की तपिश को शांत करना शुरू कर दिया है. चारों ओर बोल बम का जयनाद करते हुए भगवा वेशधारी कांवड़ियों की टोलियां, भक्तिमय वातावरण का सृजन करने लगी हैं. श्रावण के हर सोमवार को तो मंदिरों में शिव के अभिषेक के लिए भक्तोंकी लंबी कतारें लग जाती हैं. श्रावण के सोमवार को शिव-पूजा का विशेष महत्व है. पूरा श्रावण मास ही शिव-पूजा का पर्व है.
सावन में रिमझिम फुहारों के बीच खिलखिलाती हरियाली देख कर हर एक मन में मानो आनंद फूट पड़ता है. प्रकृति का यह मनोहारी और मंगलमय रूप ही शिव का स्वरूप है. इस समय शिव की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने और अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की चाह तो सबकी रहती है लेकिन शिव की लोक कल्याणकारी भावना को हम आत्मसात करें, इसके बिना पूजा अधूरी है.
प्रकृति तो शिव की अर्द्धांगिनी है, अपनी लालसाओं और सुविधाओं के लिए हम उसके अंग नोचने में भी संकोच नहीं करते ‘हमारी विलासी लिप्साओं के शिकार होकर पहाड़ खिसक रहे हैं, जंगल कट रहे हैं, नदियां सूख रही हैं, पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है तो शिव प्रसन्न कैसे होंगे ? इससे तो हम उनका क्रोध भड़का रहे हैं जिसका हल्का-सा रौद्र रूप हमने केदार घाटी की त्रासदी के रूप में देखा. अब तो धरती भी चाहे जब कंपित होकर डोलने लगती है, लोगों की सांसें अटक जाती हैं. हर बार कितने ही लोग अकाल मौत के शिकार होकर भूकंपों की भेंट चढ़ जाते हैं.
शिव ने जिस प्रकृति और जीव-जगत की रक्षा के लिए विष पी लिया, हम जाने-अनजाने अपनी करतूतों से उसी को बरबाद कर रहे हैं तो शिव-पूजा निरर्थक है. वह मात्र ढोंग है, इससे शिव प्रसन्न कैसे होंगे. शिव ने दूसरों की भलाई के लिए विष पी लिया, लेकिन हम अपनी भलाई के लिए रोज न जाने कितनों को विष के घूंट पीने को मजबूर कर देते हैं.
हमारा मन और बुद्धि यदि दूसरों के प्रति कल्याणकारी और मंगलमय भावनाओं व कृत्यों से ओत-प्रोत न हों तो हम खुद शिव की कृपा के पात्र कभी नहीं बन सकते.
हम अपने स्वार्थों, सुविधाओं व इच्छाओं के वशीभूत प्रकृति, इनसान और अन्य जीवों के दुश्मन बने रहेंगे तो हम भी सुखी कभी नहीं होंगे और न ही शिव हमारा कल्याण करेंगे. ऐसी शिव-पूजा बेमानी है जिसमें हम शिव भक्त बन कर शंकर जी की पिंडी का तो अभिषेक करें लेकिन हमारे अंदर दूसरों के सुख-चैन के प्रति ईष्या-द्वेष पलता रहे. शिव और प्रकृति दोनों जगत के कल्याण के लिए हैं और श्रावण मास उनका प्रतिरूप है, यह भावन जीवन में साकार हो, तभी सावन में शिव पूजा की सार्थकता है.
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