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समोसे की भारत पहुंचने की दास्तां

जस्टिन रॉलैट दक्षिण एशिया संवाददाता, बीबीसी आप समोसे को भले ही ‘स्ट्रीट फूड’ (सड़क किनारे मिलने वाला खाना) माने लेकिन ये सिर्फ एक स्ट्रीट फूड नहीं है, उससे कहीं ज्यादा है. इसका एक ऐतिहासिक महत्व है और यह इस बात का सबूत है कि ग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया कोई नई बात नहीं है. समोसे को खाने […]

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आप समोसे को भले ही ‘स्ट्रीट फूड’ (सड़क किनारे मिलने वाला खाना) माने लेकिन ये सिर्फ एक स्ट्रीट फूड नहीं है, उससे कहीं ज्यादा है.

इसका एक ऐतिहासिक महत्व है और यह इस बात का सबूत है कि ग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया कोई नई बात नहीं है.

समोसे को खाने के साथ ही यह धारणा टूट जानी चाहिए है कि किसी चीज़ की पहचान देश की सीमा से तय होती है.

आज के समय में माना जाता है कि समोसा एक भारतीय नमकीन पकवान है लेकिन इससे जुड़ा इतिहास कुछ और ही कहता है.

वाक़ई में समोसे का जुड़ाव मूल रूप से लाखों मील दूर ईरान के प्राचीन साम्राज्य से है.

कुछ भी हो जाए, भारतवासी खाना नहीं छोड़ेंगे !

हमें यह तो नहीं पता कि इसे पहली बार तिकोना कब बनाया गया लेकिन इतना जरूर पता है कि इसका नाम समोसा फारसी भाषा के ‘संबोसाग’ से निकला है.

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समोसे का पहली बार ज़िक्र 11वीं सदी में फारसी इतिहासकार अबुल-फज़ल बेहाक़ी की लेखनी में मिलता है.

उन्होंने ग़ज़नवी साम्राज्य के शाही दरबार में पेश की जाने वाली ‘नमकीन पेस्ट्री’ का ज़िक्र किया है. इसमें कीमा बनाया गया मीट और सूखा मेवा भरा होता था.

इस पेस्ट्री को तब तक पकाया जाता था जब तक कि वे खस्ता ना हो जाएं. लेकिन लगातार भारत आने वाले प्रवासियों की खेप ने समोसे के रूप-रंग को बदल दिया.

समोसा भारत में उसी रास्ते पहुंचा जिस रास्ते दो हज़ार साल पहले आर्य भारत पहुंचे थे. समोसा भारत में मध्य एशिया की पहाड़ियों से गुज़रते हुए पहुंचा जिस क्षेत्र को आज अफ़ग़ानिस्तान कहते हैं.

4,000 साल पुराना खट्टा-मीठा बैंगन

बाहर से आने वाले इन प्रवासियों ने भारत में काफ़ी कुछ बदला और साथ ही साथ समोसे के स्वरूप में भी काफ़ी बदलाव आया.

शुरू में इसके स्वरूप में कम बदलाव हुआ था.

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लेकिन समय के साथ जैसे ही समोसा ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान पहुंचा इसमें बहुत बदलाव आया. और जैसा कि भारतीय खानों के विशेषज्ञ पुष्पेश पंत बताते हैं यह ‘किसानों का पकवान’ बन गया.

अब यह एक ज़्यादा कैलोरी वाला पकवान बन गया है.

ख़ास तरह का इसका रूप तब भी कायम था और इसे तल कर ही बनाया जाता था. लेकिन इसके अंदर इस्तेमाल होने वाले सूखे मेवे और फल की जगह बकरे या भेड़ की मीट ने ले ली थी जिसे कटे हुए प्याज और नमक के साथ मिला कर बनाया जाता था.

सदियों के बाद समोसे ने हिंदू कुश के बर्फ़ीले दर्रों से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप तक का सफ़र तय किया.

समोसे के सफ़र में जो कुछ हुआ वो यह बताने के लिए काफ़ी है कि प्रोफेसर पुष्पेश पंत समोसे को ‘समधर्मी पकवान’ जिसमें सभी संस्कृतियों का संगम हैं, क्यों कहते हैं.

उनका कहना है, "मेरा मानना है कि समोसा आपको बताता है कि कैसे इसतरह के पकवान हम तक पहुंचे हैं और कैसे भारत ने उन्हें अपनी जरूरत के हिसाब से पूरी तरह से बदल कर अपना बना लिया है."

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भारत में समोसा को यहां के स्वाद के हिसाब से अपनाए जाने के बाद यह दुनिया का पहला ‘फ़ास्ट फूड’ बन गया.

समोसा में धनिया, काली मिर्च, जीरा, अदरक और पता नहीं क्या-क्या डालकर अंतहीन बदलाव किया जाता रहा है.

इसमें भरी जानी वाली चीज़ भी बदल गई. मांस की जगह सब्जियों ने ले ली.

भारत में अभी जो समोसा खाया जा रहा है, उसकी एक और ही अलग कहानी है.

अभी भारत में आलू के साथ मिर्च और स्वादिष्ट मसाले भरकर समोसे बनाए जाते हैं. सोलहवीं सदी में पुर्तगालियों के द्वारा आलू लाए जाने के बाद समोसे में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ.

तब से समोसे में बदलाव होता जा रहा है. भारत में आप जहां कहीं भी जाएंगे यह आपको अलग ही रूप में मौजूद मिलेगा.

अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह के समोसे मिलते हैं. यहां तक कि एक ही बाज़ार में अलग-अलग दुकानों पर मिलने वाले समोसे के स्वाद में भी अंतर होता है.

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कभी-कभी यह इतना बड़ा होता है कि लगता है कि पूरा खाना एक समोसे में ही निपट जाएगा.

समय के साथ समोसा शादियों में होने वाले भोज और पार्टियों का हिस्सा तक बन गया.

मोरक्को यात्री इब्न बतूता ने मोहम्मद बिन तुग़लक़ के दरबार में होने वाले भव्य भोज में परोसे गए समोसे का जिक्र किया है.

उन्होंने समोसे का वर्णन करते हुए लिखा है कि ये कीमा और मटर भरा हुआ पतले परत वाला पेस्ट्री था.

पंजाब में बिना पनीर भरे कोई समोसा नहीं बनता जबकि भारत के दूसरे हिस्से में पनीर सिर्फ एक अतिरिक्त स्वाद के तौर पर समोसे में इस्तेमाल होता भी है और नहीं भी होता है.

इन दिनों मिलने वाले सभी समोसे स्वादिष्ट हों, ऐसा भी नहीं है.

बंगाली ‘लबंग लतिका’ बहुत पसंद करते हैं जो कि मावा भरा हुआ समोसा होता है. दिल्ली के एक रेस्तरां में चॉकलेट भरा हुआ समोसा मिलता है.

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समोसा बनाने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं.

जो आम तौर पर समोसा है, वो अब भी भूरे रंग का होने तक तल कर ही बनाया जाता है लेकिन कभी-कभी आप कम कैलोरी वाले पके हुए समोसे भी खा सकते हैं.

प्रोफेसर पुष्पेश पंत बताते हैं कि कुछ शेफ भांप से समोसे पकाने का भी प्रयोग करते हैं लेकिन यह एक भूल है.

उनका मानना है कि समोसा को जब तक तेल में न तला जाए उसमें स्वाद आता ही नहीं है.

और हां, यह भी बहुत साफ़ है कि समोसा का सफर भारत में ही सिर्फ ख़त्म नहीं होता है.

ब्रिटेन के लोग भी समोसा खूब चाव से खाते हैं और भारतीय प्रवासी पिछली कुछ सदियों में दुनिया में जहां कहीं भी गए अपने साथ समोसा ले गए.

इस तरह से ईरानी राजाओं के इस शाही पकवान का आज सभी देशों में लुत्फ उठाया जा रहा है.

एक बात तो तय है कि समोसा दुनिया के किसी कोने में भी बनेगा और उसमें जो कुछ भी भरा जाए उसमें आपको भारतीयता का एहसास होगा.

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