BREXIT : यूरोपियन यूनियन को लेकर क्या रहेगा ब्रिटेन का रूख ?
पवन कुमार पांडेय यूरोप में इन दिनों हलचल है. सभी देशों की निगाह ब्रिटेन की ओर टिकी हुई है. ब्रिटेन में 23 जून को यूरोपियन यूनियन को लेकर जनमत संग्रह होने वाला है. इस जनमत संग्रह के नतीजे का असर पूरी दुनिया में दिखेगा. दरअसल इन दिनों मीडिया में "ब्रेक्जिट "टर्म बेहद लोकप्रिय है. ब्रिटेन […]
यूरोप में इन दिनों हलचल है. सभी देशों की निगाह ब्रिटेन की ओर टिकी हुई है. ब्रिटेन में 23 जून को यूरोपियन यूनियन को लेकर जनमत संग्रह होने वाला है. इस जनमत संग्रह के नतीजे का असर पूरी दुनिया में दिखेगा. दरअसल इन दिनों मीडिया में "ब्रेक्जिट "टर्म बेहद लोकप्रिय है.
ब्रिटेन के भीतर पहली बार यूरोपियन यूनियन के बाहर रहने को लेकर चर्चा उस वक्त शुरू हो गयी जब ग्रीस आर्थिक संकट में फंस चुका था. ग्रीस व इटली के गंभीर संकट का असर यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों पर भी पड़ रहा था. ब्रिटेन यूरोप का बेहद अहम देश है. अन्य यूरोपियन देशों के मुकाबले वह आर्थिक व समारिक रूप से काफी मजबूत है. ब्रिटेन की सीधी पहुंच अमेरिका के व्हाइट हाउस तक है. इस लिहाज से देखा जाये तो उसकी पहचान एक सक्षम देश के रूप में है. वहां के लोग नहीं चाहते थे कि दूसरे देशों की गलतियों के वजह से उसे नुकसान उठाना पड़े.
यूरोपियन यूनियन से बाहर जाने के पीछे की वजह
विशेषज्ञों की माने तो ब्रिटेन के लोग अपने सांस्कृतिक पहचान को लेकर बेहद सजग रहते है. ब्रिटेनवासियों को ऐसा महसूस हो रहा है कि उन्हें यूरोपियन यूनियन में रहने से पहचान का संकट पैदा हो गया. दूसरी वजह, वहां आने वाली शरणार्थियों की संख्या में लगातार वृद्धि को भी बताया जा रहा है.
यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों के मुकाबले ब्रिटेन ने काफी कम शरणार्थियों को स्वीकार किया है. उधर शरणार्थी बेहद कम वेतन में काम करने को तैयार है. यूरोपियन यूनियन के अन्य सदस्यपोलैंड और रोमानिया जैसे देशों के नागरिकों के ब्रिटेन आने से वहां राजकोष पर बोझ बढ़ा है. ऐसे हालत में रोजगार को लेकर संकट की स्थिति पैदा हो सकती है. साल 1957 में जब यूरोपियन यूनियन की स्थापना हुई थी तो ब्रिटेन शामिल नहीं होना चाहता था. 1973 में ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन में शामिल हुआ.
यूरोपियन यूनियन में बने रहने के पीछे की वजह
ज्यादातर अर्थशास्त्रियों की माने तो ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से बाहर होना घाटे का सौदा साबित होगा. वह भी तब जब पहले से ही दुनिया के हर देश वैश्विक मंदी का माहौल है. यूरोप, ब्रिटेन का सबसे बड़ा निर्यातक है . यही नहीं ब्रिटेन में एफडीआई का सबसे बड़ा सोर्स भी यही देश हैं.
भारत पर पड़ने वाला असर
ब्रिटेन के ईयू से बाहर जाने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. सबसे बड़ी चिंता यूरो मुद्रा के कमजोर होने की है. अगर यूरो कमजोर होती है तो डॉलर मजबूत होगा. लिहाजा इसका असर भारतीय मुद्रा रुपया पर भी पड़ेगा. रुपया के कमजोर होने की आशंका बढ़ जाएगी. उधर यूरोपियन यूनियन के देशों में भारत का ब्रिटेन से सबसे बढ़िया संबंध है. ब्रिटेन के रास्ते अन्य देशों में भारत व्यापार कर सकता है. उसकी संभावनाएं भी कम हो जायेगी.