मां ओशो प्रिया
संस्थापक
ओशोधारा, सोनीपत
रोगों के उपचार के लिए कई पद्धतियां अपनायी जाती हैं. अलग-अलग पद्धतियों के साथ यदि योग को भी अपनाया जाये, तो रोग से जल्दी छुटकारा पाने या नियंत्रण करने में मदद मिलती है. यहां अलग-अलग रोगों के उपचार के िलए योग के अलग-अलग आसनों के बारे में जानकारी दी गयी है.
वर्तमान में डायबिटीज, रक्तचाप, मनोरोग, हृदय रोग जैसी समस्याओं से ग्रसित लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है. ये सभी रोग मुख्य रूप से खराब जीवनशैली के कारण हो रहे हैं़ इस तनाव भरी जिंदगी में स्वस्थ रहने के िलए योगासनों की भूमिका महत्वपूर्ण है. योग ही वह उपाय है, जो हमारे जीवन को सुंदर एवं संयमित बनाता है. ‘योग दिवस’ के रूप में आज इसकी महत्ता पूरी दुनिया, मेडिकल साइंस भी स्वीकार कर चुका है. ऐसे कई योगासन हैं, जिनके नियमित अभ्यास से न केवल कई रोगों से हम दूर रह सकते हैं, बल्कि दवाओं पर हमारी निर्भरता भी कम होगी. योग विशेषज्ञ विभिन्न रोगों में लाभ पहुंचानेवाले प्रमुख योगासनों की दे रहे हैं विशेष जानकारी.
विधि : बैठ कर दोनों पैरों को सीधा कर लें. अब दोनों हाथों को दायीं ओर रख कर पैरों को बायीं ओर घुमाते हुए घुटनों को मोड़ लें. पैरों की एड़ियों को दायें-बायें लिटा दें, मगर अंगूठों को मिला कर रखें. अपने नितंबों को एड़ियों पर टिकाएं. घुटने मिला कर रखें. हाथ को घुटनों पर रख लें और शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें. यदि पैरों के नीचे तकिया रख लिया जाये, तो वज्रासन में बैठना आसान हो जाता है. पांच से 25 मिनट तक करना पर्याप्त है.
उच्च और निम्न दोनों ही प्रकार के बीपी रोगियों के लिए बेहतर होगा कि वे आसन की बजाय प्राणायाम पर जोर दें. दोनों ही रोगियों के लिए आसन एक जैसे ही होंगे किंतु मुद्राएं अलग-अलग होंगी और ये मुद्राएं बहुत कारगर हैं.
उच्च रक्तचाप के रोगी शीतली, शीतकारी और चंद्रभेदि प्राणायाम करें. जिन लोगों के घुटनों में दर्द रहता है, वे वज्रासन न करें. ऐसे रोगी कोई कठिन व्यायाम भी न करें, केवल गहरे श्वास के साथ अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें. अनुलोम-विलोम के दौरान कुंभक हरगिज न लगाएं. हां, सूक्ष्म व्यायाम कर सकते हैं.
निम्न रक्तचाप के रोगियों के लिए सूर्यभेदि तथा अनुलोम-विलोम प्राणायाम करना और बायीं करवट लेटना बहुत लाभकारी है. ऐसे रोगी को ज्ञान मुद्रा, व्यान मुद्रा और मियाओ मुद्रा का उपयोग करना चाहिए.
हृदय रोगी ज्यादा मेहनतवाले आसन न करें. इनके लिए शवासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन और पादुतानासन भी उपयोगी हैं. किंतु सबसे फायदेमंद है-तड़ासन, जिसे लेट कर व खड़े होकर-दोनों तरीकों से किया जाता है.
विधि : लेट कर : एड़ी-पंजे मिला कर जमीन की ओर तानें. दोनों हाथों को भी सिर के पीछे ले जाकर तानें. हथेलियों का मुख जमीन पर ऊपर की ओर रखें. अब हाथों और पैरों को विपरीत दिशा में इतना तानें कि शरीर की सभी मांसपेशियां खिंच जाएं. नाभि से नीचेवाला हिस्सा नीचे की ओर तथा नाभि से ऊपरवाला भाग ऊपर की ओर तानें. इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें और पुनः तानें.
खड़े होकर : दोनों पैरों को मिला कर, हाथों को इंटरलॉक करें और श्वास भरते हुए हाथों को तान कर ऊपर ले जाएं. भुजाएं बिल्कुल सीधी रहें और कानों के साथ लगा कर हाथों को पूरी शक्ति से ऊपर की ओर तानें और एड़ियां ऊपर उठा लें. आंखें खोल कर सामने की ओर देखें और इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें.
सांस छोड़ते हुए हाथों को तानते हुए सामने की ओर से अथवा दायें-बायें से नीचे ले जाएं.
दोनों प्रक्रिया को दो बार करें.
रक्तचाप
रक्तचाप पीड़ितों के लिए वज्रासन, सिद्धासन, सुखासन और पद्मासन विशेष लाभकारी हैं.
वज्रासन
अन्य उपाय : उच्च रक्तचाप में दायीं करवट ही लेटना चाहिए. आधे घंटे के लिए दायीं नासिका को बंद रखना और हाइपरटेंशन मुद्रा भी उपयोगी है. अचार और पापड़ जैसे-अत्यधिक नमकवाले पदार्थों से बचें.
लाभ : इससे सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी का संतुलन बनता है. आप चाहे जितने थके हों, वज्रासन में बैठते ही आराम मिलता है.
ताड़ासन
अन्य उपाय : मुद्राओं में अपान वायु मुद्रा का 45 मिनट अभ्यास अत्यंत लाभप्रद होगा. अधिक पानी और कम कैलोरीवाला भोजन लें. खास कर सुबह के वक्त आंवला जूस वरदान साबित होगा. धूम्रपान से बचें.
लाभ : सायटिका दूर होता है. कंधे और कोहनियों की तकलीफ से मुक्ति मिलती है. किशोरों की लंबाई बढ़ाने में उपयोगी है. हाथों के कंपन से निजात मिलती है. सुस्ती दूर होती है.
मधुमेह
मधुमेह, मोटापा, फैटी लिवर, कॉलेस्टेरॉल से ग्रसित रोगियों के लिए अर्धमत्स्येंद्रासन और मंडूकासन (दोनों आसन खाली पेट रोजाना तीन बार पांच-पांच मिनट के लिए) विशेष उपयोगी हैं. अर्द्धमत्स्येंद्रासन अगर सुबह, दोपहर और शाम को खाली पेट दो-तीन बार कर लिया जाये, तो टाइप-2 मधुमेह ठीक हो जाता है.
अन्य उपाय : कम कैलोरीवाला और रेशायुक्त भोजन लें. मीठे से परहेज करें और भोजन में नमक भी कम रहे. जामुन, फालसा, डाभ, पपीता और अमरूद लाभकारी हैं. आम लेना हो, तो भोजन से एक घंटे पहले ले सकते हैं, बाद में नहीं. सुबह के वक्त गरम पानी के साथ आधा चम्मच दालचीनी पाउडर लेना उपयोगी होगा. रोजाना भूना हुआ चना थोड़ी मात्रा में लें. मिस्सी रोटी का आटा और भिंडी मधुमेह रोगियों के लिए रामबाण है. धीरे खाएं, चबा कर खाएं ताकि ग्लूकोज मुंह में ही बन जाये. प्रत्येक दो घंटे पर खाएं, लेकिन उसमें अनाज दो-तीन बार ही हो. फल और सलाद पर जोर रहे.
लाभ : यह आसन पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देता. सर्वाइकल की पीड़ा दूर होती है. रीढ़ को लचकदार बनाता है और तोंद घटाता है.
आर्थराइटिस
सूक्ष्म व्यायाम
ऐसे रोगियों को आसन से बचना चाहिए. सूक्ष्म व्यायाम पर जोर दें. लेट कर अथवा बैठ कर साइकिल चलाने की तरह पैर चलाएं.
विधि : सीधे बैठें. दायें पैर को घुटने से मोड़ कर पंजे को बायीं ओर ले जाएं. बायां पैर सीधा तान कर रखें. दायां हाथ घुटने पर रखें और बायां हाथ एड़ी के नीचे रखें. अब घुटने को बार-बार दायीं ओर खींचें.
इसी स्थिति में दायें पैर की एड़ी को बायें घुटने पर रखें. हाथों से घुटने पर दबाव बनाते हुए घुटने को नीचे की ओर दबाव बना कर जमीन के साथ लगाएं. वापसी में हाथ घुटने के नीचे रख कर घुटने को ऊपर उठाएं और छाती के साथ लगाएं. इस क्रिया में कमर से ऊपर का हिस्सा हिलना नहीं चाहिए.
बायें पैर से भी उपर्युक्त क्रियाएं करें. इस दौरान दायां पैर सीधा रखें.
दोनों पैरों से पूरी प्रक्रिया पांच से 10 बार दुहराएं. इस दौरान घुटना धरती के समानांतर रहे, ऊपर न उठने पाये.
अन्य उपाय : दाल, प्रोटीनयुक्त अन्य पदार्थों और ठंडी तासीरवाले आहार से बचें. रोजाना एक बार आधे घंटे तक अनुलोम-विलोम करें. वजन कम करने पर जोर दें. संधि मुद्रा, वायु मुद्रा और चलते समय अथवा सीढ़ियां चढ़ते समय अपानवायु मुद्रा करें.
लाभ : निष्क्रियता के कारण मांसपेशियों और जोड़ों में भर गयी वायु को निकालता है. अत्यंत सूक्ष्म नस-नाड़ियों तक भी सहज रक्तप्रवाह सुनिश्चित करता है.
थायरॉयड
सिंहासन
सिंहासन रोजाना तीन-चार बार. सर्वांगासन और हलासन भी उपयोगी हैं.
विधि
पद्मासन में यानी दोनों पैरों को जांघों पर चढ़ा कर बैठें. आगे झुकते हुए दोनों हथेलियों को आगे ज़मीन के सहारे टिका दें. हथेलियां पास-पास और उंगलियों की दिशा अंदर की ओर. कमर नीचे और गरदन पीछे रखते हुए जीभ बाहर की ओर निकालें. नजर ऊपर की ओर रहे.
सांस भरें और सांस छोड़ते हुए गले से तब तक मधुर आवाज निकालते रहें जब तक सांस पूरी तरह से बाहर न निकल जाये. सांस छोड़ते समय पेट को अंदर की ओर सिकोड़ें. यह क्रिया तीन बार करें. अंत में, गले की मालिश करें.
अन्य उपाय
रोजाना तीन बार पांच-पांच मिनट के लिए उज्जायी प्राणायाम करें. हाइपोथायराॅयड के रोगियों के लिए उदान मुद्रा और सूर्य मुद्रा काफी उपयोगी है.
लाभ
आवाज सुरीली होती है और टॉन्सिल सहित गले के अन्य रोग ठीक होते हैं. तुतलाहट दूर होती है और थायरॉयड की समस्या का भी समाधान होता है. झुर्रियों से बचाव में प्रभावी.
पीठ व कमर दर्द
ऊष्ट्रासन
रोजाना उष्ट्रासन और भुजंगासन करने से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस और कमर दर्द से निजात मिल जाता है. मत्स्यासन, धनुरासन और मकरासन भी उपयोगी हैं.
विधि : वज्रासन में बैठ कर घुटनों के बल खड़े हो जाएं. दोनों घुटने और पैर कंधे की चौड़ाई के बराबर तक खुले हुए हों. पंजे खड़े नहीं, बल्कि लेटे हुए हों. अब दोनों हाथों को कमर पर इस प्रकार रखें कि अंगूठे रीढ़ पर मिले हुए हों और उंगलियां पेट की तरफ हों.
सांस भरते हुए कमर के निचले भाग से पीछे की ओर झुकें. अंगूठों से रीढ़ पर दबाव बना रहे. अब पहले दायां हाथ दायें तलवे से लगाएं, फिर बायां हाथ बायें तलवे से लगाएं. इस स्थिति में सांस को सामान्य करते हुए यथाशक्ति रुकें. फिर सांस छोड़ते हुए सीधे हो जाएं और वज्रासन में बैठें. आंखें बंद.
रीढ़ संबंधित रोगियों को ऐसा कोई आसन नहीं करना चाहिए जिसमें आगे झुकना पड़ता हो. प्रोटीनयुक्त और ठंडी तासीरवाले आहार से परहेज करें. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस में वायुमुद्रा और गरदन घुमानेवाले व्यायाम, पीठ दर्द में कटि मुद्रा, रीढ़ संबंधी सभी समस्याओं और सायटिका में मेरुदंड मुद्रा उपयोगी है. पीठ दर्द और सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के रोगी हमेशा पीठ सीधी कर बैठें. दिन में हर घंटे कुछ पल के लिए खड़े हों और दो मिनट के लिए शरीर को ताननेवाले व्यायाम करना चाहिए, जैसे-ताड़ासन, आगे-पीछे, दायें-बायें झुकना आदि.
लाभ : स्लिप डिस्क दूर होता है. छाती चौड़ी होती है. ऑक्सीजन ग्रहण करने की शक्ति बढ़ती है, जिससे दमा और हृदय रोग ठीक होते हैं.
मनोरोग
जब विवेक, मन और आध्यात्मिक शक्तियां कमजोर होती हैं, तभी आदमी मनोरोग, तनाव, दबाव आदि से ग्रस्त होता है. ऐसे रोगियों के लिए पद्मासन में बैठ कर प्राणायाम करना अधिक लाभकारी है. अगर कर सकते हों, तो विपरीतकर्णी और सर्वांगासन ज्यादा कारगर होंगे. सर्वांगासन से विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र जागृत होते हैं, लेकिन यह आसन सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिसवालों के लिए मना है़ सर्वांगासन के बाद मत्स्यासन करना जरूरी है. जो सर्वांगासन नहीं कर सकते, वे रात को सोने से पहले पांच-दस मिनट के लिए विपरीतकर्णी करें.
विपरीतकर्णी की विधि : पीठ के बल लेट कर दोनों हाथ नितंबों के नीचे ले जाकर पैर ऊपर ले जाकर सीधा रखें. बेहतर होगा कि पैरों और नितंबों को दीवार के साथ लगा दें.
सर्वांगासन की विधि :
पीठ के बल लेट जाएं. दोनों हाथ कमर के साथ लगाएं. हथेलियां नीचे की ओर रहें. दोनों पैर मिला कर तानें.
सांस भरते हुए, दोनों पैर तान कर धीरे-धीरे ऊपर 90 डिग्री पर लाकर रुकें.
दोनों हाथ कमर पर रखते हुए, नितंबों को ऊपर उठा लें. पंजों को ऊपर की ओर तान कर रखें. कुछ देर इस स्थिति में रुकें.
पैरों को सिर के पीछे ले जाकर कुछ रुकें.
पैर ऊपर लाकर सीधा करें.
हाथों को जमीन से लगा कर सांस छोड़ते हुए दोनों पैर तान कर जमीन पर ले आएं.
पद्मासन खोल, दो मिनट शवासन में रहें.
लाभ : ऊपर के अंगों में ऊर्जा का प्रवाह होना शुरू होता है, जिससे मस्तिष्क, आंख, मुंह, नाक आदि स्वस्थ होते हैं.
मत्स्यासन की विधि : पीठ के बल लेट कर एड़ी-पंजे मिलाएं.
हाथ कमर के पास सीधी और हथेलियां धरती की ओर रहें.
गरदन को पीछे की ओर मोड़ कर माथा धरती के साथ लगाएं.
रीढ़ को थोड़ा ऊपर उठा कर यथासंभव रुकें.
पुनः सामान्य होकर पीठ के बल लेट जाएं.
अन्य उपाय : प्रत्येक आसन और व्यायाम या टहलना मूड बदलने में सहायक है. अनुलोम-विलोम गहरे श्वास के साथ करें. मुद्राओं में ज्ञानमुद्रा से बहुत फायदा होगा.
लाभ : नेत्र-ज्योति, स्मरण-शक्ति और बुद्धिमत्ता बढ़ती है. विचारों की शुद्धि होती है.
सामान्य स्वास्थ्य
सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार, वज्रासन व अनुलोम-विलोम की आदत जो डाल लेगा, वह किसी रोग से पीड़ित नहीं हो सकता. यह ध्यान रखना जरूरी है कि सूर्य नमस्कार धीमी गति से हो. पांच से 10 मिनट तक करना काफी है.
विधि : इसके 12 चरण हैं-
खड़े होकर, एड़ियां मिला लें. पंजों को खुला रहने दें. दोनों हाथों को जांघों के साथ सीधा रखें. फिर, नमस्कार की मुद्रा बनाएं. कोहनियां शरीर के साथ, हथेलियां थोड़ी तिरछी और अंगूठे हृदय के नीचे डायफ्राम पर. ध्यान आज्ञा चक्र पर हो.
दोनों हाथ सिर के ऊपर ले जाएं और श्वास भर कर तानें. भुजाएं कानों से सटी, हथेलियां सामने की ओर. अब हाथों को इस प्रकार गरदन के पीछे ले जाएं कि भुजाएं कानों के साथ ही लगी रहें. कुछ देर रुकें. ध्यान विशुद्धि चक्र पर हो.
हाथों को वापस ऊपर लाते हुए, सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे झुकें. हाथों को दायें-बायें ले जाएं. हथेलियां धरती के साथ लगाएं, लेकिन घुटने बिल्कुल सीधे रखें. सिर को घुटने से लगाएं. ध्यान मणिपुर चक्र पर हो.
सांस भरते हुए दायां पैर पीछे ले जाएं. घुटना बिल्कुल सीधा और जमीन से ऊपर रहे. बायें पैर के घुटने को छाती के साथ लगाएं कि पंजे से घुटने तक का हिस्सा 90 डिग्री पर रहे. ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर हो.
बायां पैर भी पीछे ले जाएं. दोनों पैरों की एड़ियों को जमीन से सटने दें और कमर को ऊपर उठाएं. सिर नीचे की और रहे, ठोड़ी को कंठ से लगाएं और इस स्थिति में कुछ पल रहें. ध्यान सहस्त्रार चक्र पर हो.
शरीर को धरती के समानांतर ले आएं. पूरा दबाव पंजों और हथेलियों पर हो. अब घुटने और माथे को जमीन से सटने दें. नाभि धरती से कुछ इंच ऊपर और कोहनियां खड़ी रहें. इस अवस्था में कुछ पल रुकें. ध्यान अनाहत चक्र पर हो.
शरीर को थोड़ा आगे सरकाते हुए, सांस भर कर हाथ सीधी करें और गरदन पीछे की और ले जाएं. पंजों को मिला कर रखें और एड़ियां ऊपर की तरफ हों. कमर नीचे झुका कर रखें. ध्यान मूलाधार चक्र पर.
सांस छोड़ते हुए शरीर को वापस ऊपर की ओर उठाएं. एड़ियों को जमीन से सटने दें. सिर नीचे की ओर रहे और कमर का हिस्सा ऊपर की ओर.
चौथी स्थिति की तरह, सांस भरते हुए दायां पैर आगे दोनों हाथों के बीच ले आएं.. गरदन पीछे, कमर नीचे. यथाशक्ति रुकें.
तीसरी स्थिति की तरह, श्वास छोड़ते हुए बायां पैर आगे ले आएं. घुटने सीधे, हथेलियां जमीन पर, माथे को घुटने से सटाएं. यथाशक्ति रुकें.
लाभ : संपूर्ण आरोग्य, ऊर्जा और शक्ति की प्राप्ति होती है. रक्तशोधन की प्रक्रिया तेज होती है और मोटापा तेजी से घटता है. सभी ग्रंथियों का हार्मोन स्राव नियंत्रित होता है. स्मरण-शक्ति बढ़ती है, सिर के बाल स्वस्थ और मजबूत होते हैं. मुखमंडल की आभा बढ़ती है.
कैसे लाभ पहुंचाते हैं आसन
डॉ रमेश पुरी
योग विशेषज्ञ
ओशोधारा, सोनीपत
पतंजलि ने कहा है-स्थिरं सुखं आसनम्. स्थिरता व सुख की अनुभूति आसन का गुण है. जाहिर है, आसन व्यायाम से भिन्न हैं. दोनों का बुनियादी फर्क यह है कि व्यायाम से शरीर में कड़ापन आता है, आसन से मांसपेशियां लचीली बनती हैं. अधिक मेहनती व्यायाम फौजियों या पहलवानों के लिए तो ठीक हैं, किंतु सामान्य कामकाज करनेवालों के लिए आसन ही काफी हैं. इसके अलावा, कुछ ग्रंथियों पर किसी भी व्यायाम का कोई असर नहीं होता. जैसे-पिट्यूटरी और पीनियल ग्लैंड. इन्हें केवल आसनों से ही प्रभावित किया जा सकता है. किसी भी व्यायाम में मन पर ध्यान नहीं दिया जाता, जबकि आसन और प्राणायाम मन पर आधारित होते हैं.
अधिकतर रोग हमारे बेलगाम मन का परिणाम हैं. इसलिए,अष्टांग योग में आसन को इतना महत्व दिया गया और अब तो एलोपैथ भी आसन-प्राणायाम की सलाह देते देखे जाते हैं. आसन को अब तक योगियों के मतलब की चीज समझा जाता था, लेकिन मीडिया के प्रसार और सरकारी संरक्षण के कारण अब आम लोगों की इसमें दिलचस्पी बढ़ी है और वे वैकल्पिक चिकित्सा के प्रभावी विकल्प के तौर पर इसे आजमाने लगे हैं.
पं श्रीराम शर्मा आचार्य ने आसनों की पांच श्रेणियां मानी हैं. पहली श्रेणी में वे आसन हैं, जो रहन-सहन व उठने-बैठने के ढंग पर आधारित हैं. जैसे-भुजंग, शलभ, मयूर, वक, मकर, उष्ट्र, हंस, मत्स्य, सिंह आदि. दूसरे आसन वे हैं, जिनके नाम विशेष पदार्थों की आकृति पर हैं, जैसे-हल, धनुष, चक्र, वज्र, नौका आदि. तीसरी श्रेणी उन आसनों की है, जिनके नाम वनस्पतियों पर है.
जैसे-पद्मासन, लतासन, ताड़ासन, वृक्षासन आदि. चौथे वर्ग में ऐसे आसन हैं, जिनके नाम शरीर के अंगों पर हैं, जैसे-शीर्षासन, सर्वांगासन, एकपाद ग्रीवासन, हस्त पादासन आदि. पांचवां प्रकार उन आसनों का है, जो महान हस्तियों/योगियों के नाम पर हैं, जैसे-मत्स्येंद्रासन, महावीरासन, ध्रुवासन आदि. इसी प्रकार,आसनों को कुछ अन्य श्रेणियों में भी रखा जा सकता है. जैसे-खड़े होकर किये जानेवाले, बैठ कर किये जानेवाले, घुटनों के बल किये जानेवाले, पेट के बल लेट कर किये जानेवाले व पीठ के बल लेट कर किये जानेवाले.
विशेषता के आधार पर आसन
विशेषता को आधार बनाएं तो हम आसन को मोटे तौर पर चार प्रकार का कह सकते हैं-खिंचाववाले, प्राणायाम सहित किये जानेवाले, शक्तिवर्द्धक और स्नायु संचालन में सहायक आसन. आसन में जितना श्रम का तत्व होता है, उतना ही विश्राम का भी होता है. इसलिए,थकान पैदा करनेवाले आसनों के तरंत बाद शवासन का क्रम रखा जाता है. प्रत्येक आसन धीरे-धीरे ही किये जाते हैं. इससे ऑक्सीकरण की प्रक्रिया नियंत्रण में रहती है व थकान नहीं होती. प्राणायाम के साथ किये जानेवाले आसन विशेष लाभप्रद होते हैं. स्त्रियों को ऐसे आसनों से बचना चाहिए, जिनमें गुदा और जननांग के बीच में एड़ी लगानी होती है. मासिक धर्म के दौरान भी आसन वर्जित हैं. कोई भी आसन खुली हवा में ही करें. आसन के दौरान आंखें बंद रहें और ध्यान सांसों पर केंद्रित रखें. आसन कोई भी हो, उससे शुरुआत में ही पूर्ण सफलता प्राप्त करने का हठ करने के बजाय, उसे ठीक-ठीक करने पर जोर दें. आरंभ में कोई भी विधि कम समय के लिए ही करें.
आसनों में तीन प्रमुख क्रियाएं होती हैं
सांस भरते हुए मांसपेशियों को पूरी तरह से तानना.
आसन ठीक से लग जाने पर सांसों को सहज रखते हुए वैसी स्थिति में यथासंभव रुकना और सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे वापस आना और शरीर को ढीला छोड़ना.
आसन प्रायः खाली पेट या भोजन के चार घंटे बाद, नहीं तो पाचन-शक्ति बिगड़ जायेगी.
शीतकारी प्राणायाम
संजय कुमार
योग काउंसलर
भागलपुर, बिहार
प्राणायाम आष्टांग योग की चौथी कड़ी है. प्राणायाम के अभ्यासों में ‘शीतली’ और ‘शीतकारी’ प्राणायाम दो ऐसे अभ्यास हैं, जो हमें प्रचंड गरमी में तत्काल राहत देने का कार्य करते हैं. इसके अलावा ये ब्लड प्रेशर को नॉर्मल बनाये रखने में मददगार हैं. ‘शीतली’ और ‘शीतकारी’ प्राणायाम प्रशांतक समूह के अभ्यास हैं. जिसके अभ्यास से हमारे रक्त और रक्त के साथ हमारा शरीर शीतल तथा मन शांत व एकाग्र होता है.
शीतली प्राणायाम की विधि
ध्यान के किसी आसन में बैठ जाएं. रीढ़, गरदन व सिर एक सीध में, दोनों हथेली घुटनों के ऊपर ज्ञान या चिन मुद्रा में रखें और आंखें सहजतापूर्वक बंद कर लें. फिर तन-मन को शिथिल व शांत कर लें. जिह्वा को सहजतापूर्वक अधिक-से-अधिक मुंह के बाहर लाकर जिह्वा के दाेनों कोरों को ऊपर मोड़ें और छिद्र युक्त नलिका की आकृति दें. अब आपकी नलिकायुक्त जीभ के चारों तरफ गोल आकृति में होठों की पकड़ होनी चाहिए. रेचक नासिका छिद्रों से करें. अभ्यास के दौरान पूरक की क्रिया के साथ-साथ तीव्र वाचू प्रवाह की ध्वनि सी-सी उत्पन्न करें. उक्त अभ्यास उपलब्ध समय, परिस्थिति, क्षमता व आत्मसंतुष्टि के अनुसार कर सकते हैं.
‘शीतकारी’ प्राणायाम की विधि
शीतकारी प्राणायाम के अभ्यास की पूर्व तैयारी शीतली प्राणायाम की तरह ही कर लें. इसमें सामान्यत: खेचरी मुद्रा में यानी जिह्वा के अग्रभाग को उलट कर तालू में सटाने के पश्चात प्रारंभ करें. जिह्वा तालू को स्पर्श करती हुई तथा दोनों अग्र दंत पंक्ति आपस में मिल कर जालीनुमा आकृति बनाये. मुंह अधिकतम खुला रखें. अब आगे खुले मुंह से लंबी-गहरी (पूरक) श्वांस लें तथा होंठ बंद कर नासिका छिद्रों से रेचक के अभ्यास को क्रमश: दुहराते जाएं. अभ्यास उपलब्ध समय, परिस्थिति क्षमता के अनुसार करें.
सजगता : श्वांस की शीतलता तथा तन-मन की शीतलदायी संवेदना पर आपकी सजगता होनी चािहए.
लाभ : रक्त की शीतलता से तन शीतल व मन शांत, एकाग्रता में वृद्धि, प्यास और भूख में कमी, उच्च रक्तचाप में लाभ, कामेच्छा, शारीरिक ताप और उदर की अम्लता में संतुलन पैदा करता है. निराशा, कुंठा अवसाद तथा उग्रता को दूर करता है. प्राण शक्ति और स्मरण शक्ति में वृद्धि करता है. दांतों के दोषों तथा मुंह के दुर्गंध को दूर करता है.
सीमाएं : दमा, ब्राॅन्काइटिस, कफ, श्वास नली या जिह्वा व मुंह में गंभीर दोष होने पर न करें. कब्ज या निम्न रक्तचाप के रोगी यह अभ्यास न करें.
सावधानियां : प्रदूषित वातावरण, अत्यधिक ठंडे मौसम में इससे परेशानी हो सकती है. अत: इस समय अभ्यास न करें.