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हर घर में पेइंग गेस्ट, हर मुहल्ले में हॉस्टल
पैकेज के साथ कमरों की गिनायी जाती हैं खूबियां, एसी कमरे का अलग िकराया, कूलर वाले का अलग कोटा से अजय कुमार कोटा में कोिचंग की बदौलत दूसरे कारोबार भी खूब फल-फूल रहे हैं. लॉज के साथ पेइंग गेस्ट के कारोबारी साेच को इस शहर ले साकार िकया है. ऐसे लोगों की भी बड़ी जमात […]
पैकेज के साथ कमरों की गिनायी जाती हैं खूबियां, एसी कमरे का अलग िकराया, कूलर वाले का अलग
कोटा से अजय कुमार
कोटा में कोिचंग की बदौलत दूसरे कारोबार भी खूब फल-फूल रहे हैं. लॉज के साथ पेइंग गेस्ट के कारोबारी साेच को इस शहर ले साकार िकया है. ऐसे लोगों की भी बड़ी जमात है, िजनके पास न तो अपना घर है, न दूसरों को देने के लिए िठकाना, मगर वह भी इस कारोबार में खूब कमा रहे हैं.
कोटा में दाखिला लेने के बाद हॉस्टल का टेंशन. लेकिन टेंशन की जरूरत नहीं. किसी भी कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लें, उसके बाहर हॉस्टल वाले आपको घेरेंगे. पूछेंगे, पीजी चाहिए या कमरा. सब कुछ है हमारे पास. पीजी मतलब पेइंग गेस्ट.
बाबू जी, आपको किसी बात की दिक्कत नहीं होगी. एसी है, कूलर है, लाउंड्री है, मेस भी है. बिजली है, चौबीसों घंटे. लाइट कटी, तो अपना जेनेरेटर है. पानी के लिए आरओ. कोई आपको अपना पैकेज बताते हुए कहेगा, हमारे पास डॉक्टरों का पैनल भी है, बाबूजी.
लड़कियों के लिए चिंता की कोई बात नहीं. सिक्यूरिटी टाइट है हमारे यहां. मेरे यहां 20 बच्चियां हैं. मेरी पत्नी सारा देखरेख करती हैं. हम घर का माहौल देते हैं. घर से इतनी दूर! अपनों को छोड़ कर बच्चों को यहां रहना पड़ता है. गार्जियन की कमी हम दूर करते हैं. जािहर है, उनकी इन बातों में भावना है. सुविधाओं की फेहरिस्त है. और है कारोबार. हॉस्टल का कारोबार. जोरों पर. हजार करोड़ के इस कारोबार ने हर मुहल्ले को हॉस्टल और पीजी में बदल दिया है.
संगठित हुआ कारोबार
घर को िकराये पर देने के चलन से निकल कर हॉस्टल कारोबार संगठित हो चुका है. अब हॉस्टल के लिए बड़ी और आकर्षक बिल्डिंगें बन रही हैं. कई अपार्टमेंट इसी ध्येय से बन रहे हैं. कोटा के नये इलाके में आधा दर्जन बड़े प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है.
लड़कियों के लिए अलग से. अब तो कई कोचिंग संस्थान भी हॉस्टल के क्षेत्र में उतर चुके हैं. बड़े व नामी-गिरामी संस्थानों की नजर आने वाले सालों में बच्चों की संख्या पर है. हॉस्टल व्यवसाय से जुड़े ओम प्रकाश मेहता कहते हैं, साल-दर-साल बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसे देखते हुए कई बड़े लोग इस धंधे में आ गये हैं. उनका कहना है कि सबको पैसा कमाना है. कोटा की बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में से एक शिवालिका भी हॉस्टल के लिए अपार्टमेंट बना रही है.
सबलेट होते हैं कमरे
कई कारोबारी ऐसे हैं, जिन्होंने पचास-सौ कमरे ले रखा हैं. घर के मालिक को कोई झमेला नहीं. मकान मालिक और सबलेटधारी के बीच तय पैसे पर करार होता है. अब सबलेटधारी उससे अधिक कीमत पर ग्राहक को कमरा उपलब्ध कराता है. कई ऐसे भी हैं, जो सिर्फ ग्राहक को तलाश कर मकान मालिक तक पहुंचा देते हैं. बदले में उन्हें कमीशन मिल जाता है.
हॉस्टल दिलाने के काम में सैकड़ों लोग लगे हुए हैं. हॉस्टल के रख-रखाव में बड़ी श्रम शक्ति लगी हुई है. दो-ढाई लाख बच्चों के लिए मेस चल रहा है. एक मेस में कम-से-कम पांच-सात लोग लगे हुए हैं. अगर पांच सौ मेस चल रहे हैं, तो उसमें काम करने वालों की संख्या साढ़े तीन हजार पहुंच जाती है. पढ़ाई करने आये छात्रों पर एक-एक मिनट का दबाव है, सो लाउंड्री का धंधा भी कम नहीं. इसी लिए हर हॉस्टल वाले बताते हैं कि लाउंड्री की कोई समस्या उनके यहां नहीं है. इतनी बड़ी संख्या में आये छात्रों के खाने-पीने की जरूरत को यहां के बाजार पूरा कर रहे हैं.
हर मुहल्ले में हॉस्टल
कोचिंग के इलाके वाले मुहल्लों से गुजरते हुए खास अनुभव होगा. यहां के घरों में पीजी का रिवाज खूब चल रहा है. शायद ही कोई घर ऐसा हो, जिसमें हॉस्टल नहीं चल रहा. पीजी के लिए पांच से सात हजार में रहने का इंतजाम हो सकता है. ढाई हजार रुपये मेस के लगते हैं.
घर चाहे किसी भी हैसियत वाले का हो, उसमें हॉस्टल या पीजी चल रहा है. घरों का डिजाइन भी ऐसा कि उसमें ज्यादा से ज्यादा कमरे निकल आयें. कोचिंग से यहां के लोगों की आमदनी का यह अतिरिक्त जरिया निकल आया है.
बहत्तर हजार दो, नब्बे के पार नंबर पाओ
डमी स्कूलों का फैला है जाल
काउंटर लगा कर लेते हैं 11 वीं में एडमिशन
अटेंडेंस के झंझट से छुटकारा
फर्ज करिए कि दसवीं पास बच्चे का यहां के कोचिंग में दाखिला हो गया. अब रही उसके इंटर में दाखिले की चिंता. तो इसके लिए भी कई काउंटर खुले हुए हैं. यह देख कर आप चौंक भले सकते हैं, मगर सच तो सच है. ऐसे काउंटर को तलाशने की भी फिक्र नहीं करनी है.
यह ‘सेवा’ भी बड़े कोचिंग संस्थानों के परिसर में ही उपलब्ध है. अच्छे नंबरों की गारंटी के साथ. बस, आपके पास पैसे होने चाहिए. काउंटर पर मदद के लिए आदमी बैठा है, बड़े-बड़े दावों के साथ : एडमिशन हो जायेगा. बस, एक साल के 36 हजार लगेंगे. परीक्षा भी यहीं हो जायेगी. कोई दिक्कत नहीं होगी आपके बच्चे को. ये देखो. मेरे पर इतने मार्क्सशीट हैं. देखो… देखो, किसी को 94 परसेंट आया है किसी को 96.
लगभग सभी काउंटर पर ऐसे मार्क्सशीट हैं. वहां बैठा आदमी अपने थैले से निकाल कर थोक में मार्क्सशीट दिखाता है.आपको भरोसा दिलाने का उसके पास पूरा-पूरा हुनर है. फिर भी आपको भरोसा न हो और आप उसके बगल में बैठे आदमी की तरफ बढ़ना चाहेंगे, तो वह अगला पासा फेंकेगा : देखो भाई, 35 में करा दूंगा. एक हजार की छूट रही. इस तरह दो साल के कोर्स के लिए आपसे 70-72 हजार रुपये का सौदा वे कर लेते हैं.
डमी स्कूलों का बोलबाला
शिक्षा के मौजूदा पैटर्न ने यहां डमी स्कूलों को फलने-फूलने का खूब मौका दिया है. यहां ऐसे दर्जनों स्कूल चल रहे हैं. यहां आये दसवीं पास बच्चों की मजबूरी है कि वे इन्हीं में से किसी डमी स्कूल में दाखिला लें. अपने राज्य के बोर्ड द्वारा संचालित स्कूल में दाखिला लेना चाहें, तो उनके भी डमी स्कूल वहां चल रहे हैं.
इन स्कूलों में अटेंडेंस की कोई बाध्यता नहीं है. एक एजुकेशन ब्रोकर कहता है: आपको सिर्फ एग्जाम देना होगा. बाकी बातें भूल जाओ. सारा कुछ हम करा देंगे. ये सभी सीबीएसइ से संबद्ध होने का दावा करते हैं. कई स्कूल दिल्ली में संबद्ध हैं, पर उनका कारोबार कोटा में चल रहा है. वैसे, यह कारोबार देश में हर जगह चल रहा है. कोचिंग के बढ़ते चलन ने नन अटेंडिंग का रास्ता खोल दिया है.
करोड़ों का धंधा : यहां डमी स्कूलों का कारोबार भी करोड़ों का है. मान लीजिए कोटा के कोचिंग संस्थानों में हर साल जितने दाखिला होते हैं, उनमें से अगर दस हजार छात्र भी इन डमी स्कूलों मे जाते हैं, तो दो साल में 70 करोड़ इन स्कूलों के पास पहुंच जाते हैं. बच्चों की संख्या पर पैसों की आमद तय होती है. यह संख्या घट-बढ़ सकती है. डमी स्कूलों के काउंटर पर बैठने वाले से आप कहें कि बीस हजार में ही दाखिला ले लो, तो वह बतायेगा कि उसे कहां-कहां पैसे देने होते हैं. और अंत में कहेगा, सब कुछ मैनेज करने के बाद उसके पास कुछ हजार रुपये ही बचेंगे.
इंजीनियरिंग कॉलेज में डमी स्कूल : अब इंजीनियरिंग कॉलेज भी इंटर कराने की होड़ में शामिल हो गये हैं. उनकी ओर से सीबीएसइ संबद्धता प्राप्त स्कूल खोले जा रहे हैं. प्राइवेट कॉलेजों में स्टूडेंट्स की कमी के चलते उन्होंने स्कूलों की ओर रुख किया है.
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