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मोदी-ओबामा: वादे-इरादे अब आगे क्या

ब्रजेश उपाध्याय बीबीसी संवाददाता, वॉशिंगटन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जहां एक तरफ़ भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता हासिल करने में भरपूर सहयोग का वादा किया है, वहीं उन्होंने उम्मीद ज़ाहिर की है कि भारत इस साल के आख़िर तक पेरिस में हुए जलवायु समझौते को औपचारिक तौर से अपना लेगा. वॉशिंगटन […]

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अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जहां एक तरफ़ भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता हासिल करने में भरपूर सहयोग का वादा किया है, वहीं उन्होंने उम्मीद ज़ाहिर की है कि भारत इस साल के आख़िर तक पेरिस में हुए जलवायु समझौते को औपचारिक तौर से अपना लेगा.

वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाक़ात के बाद दोनों ही देशों के बीच उस दस्तावेज़ पर भी सहमति हो गई है, जिसके तहत दोनों देश ज़रूरत पड़ने पर एक दूसरे के सैन्य-तंत्र का इस्तेमाल कर सकेंगे.

इस पर सैद्धांतिक रूप से पहले ही सहमति बन चुकी थी, लेकिन अब दोनों ही पक्ष इस दस्तावेज़ की भाषा पर राज़ी हो गए हैं और एक अमरीकी अधिकारी के अनुसार बहुत जल्द इस पर दस्तख़त हो जाएंगे.

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दोनों ही पक्षों ने अमरीकी परमाणु ऊर्जा कंपनी वेस्टिंगहाउस को भारत में छह परमाणु बिजलीघर बनाने का कांट्रैक्ट देने पर भी खुशी जताई.

बुश प्रशासन के दौरान हुए परमाणु समझौते के बाद ये पहली अमरीकी कंपनी है, जिसे भारत में बिजलीघर लगाने की मंज़ूरी मिली है. अधिकारियों का कहना है कि भारत और अमरीका दोनों ही जगह इससे हज़ारों नौकरियां पैदा होंगी.

विश्लेषकों की माने तो इन सभी मामलों में राष्ट्रपति ओबामा के लिए सबसे अहम था कि भारत जलवायु परिवर्तन पर हुए पेरिस समझौते को औपचारिक रूप से जल्द से जल्द अपना ले.

राष्ट्रपति ओबामा और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाक़ात के बाद जारी साझा बयान में कहा गया कि अमरीका ख़ुद भी इसी साल जितनी जल्दी संभव होगा इस समझौते को अपना लेगा और भारत भी इस लक्ष्य को हासिल करने में उनके साथ है.

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जहां ओबामा प्रशासन के अधिकारी इस समझौते के बारे में भारत की रज़ामंदी की बेहद उत्साहवर्धक तस्वीर पेश कर रहे थे, वहीं भारतीय अधिकारी इसको अपनाने के रास्ते में घरेलू क़ानूनी रुकावटों का भी ज़िक्र कर रहे थे.

भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर ने कहा कि सरकार इस समझौते को आगे बढ़ाने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाएं, उन पर गौर कर रही है.

पेरिस जलवायु समझौता बाध्य तभी हो सकता है, जब कम से कम 55 देश जो दुनिया में 55 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस छोड़ते करते हैं, वो औपचारिक रूप से इसमें शामिल हो जाएं.

माना जा रहा है कि अगर भारत जल्द ही इसमें शामिल हो जाता है तो राष्ट्रपति ओबामा के शासनकाल के दौरान ही ये समझौता लागू हो जाएगा.

भारत को अमरीका और चीन के बाद सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस गैस प्रसार करने वाला देश माना जाता है.

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जहां अमरीका जलवायु परिवर्तन पर भारत के भरपूर समर्थन की कोशिश में है, वहीं प्रधानमंत्री मोदी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता के लिए अमरीका से पूरा साथ चाहते हैं.

ओबामा ने इसका आश्वासन तो दिया ही, एक वरिष्ठ अमरीकी अधिकारी का कहना था, "हमारी भरपूर कोशिश होगी कि भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता इस महीने के आख़िर में होने वाली वोटिंग में ही मिल जाए."

एनएसजी की ये बैठक सियोल में होनी है.

माना जा रहा है कि भारत की सदस्यता के रास्ते में चीन सबसे बड़ी रूकावट है, क्योंकि चीन पाकिस्तान को भी इसकी सदस्यता दिलवाने के हक़ में है.

ये भी कहा जा रहा है कि अगर भारत को इसकी सदस्यता मिल गई तो उसके पास वीटो अधिकार आ जाएगा और वो पाकिस्तान को इस ग्रुप की सदस्यता कभी नहीं हासिल करने देगा.

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