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आज से गूंजेगा भगवान का नाम

श्रद्धा. श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर का नौवां वार्षिकोत्सव तीन दिनों तक रांची : राणी सती मंदिर लेन रातू रोड स्थित श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर के नौवे वार्षिकोत्सव सह कल्याणोत्सव पर शुक्रवार से भगवान का नाम गूंजेगा. समापन पांच जून को होगा. तीन जून की शाम चार बजे से कलश स्थापना होगी. सभी तैयारियां लगभग पूरी […]

श्रद्धा. श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर का नौवां वार्षिकोत्सव तीन दिनों तक
रांची : राणी सती मंदिर लेन रातू रोड स्थित श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर के नौवे वार्षिकोत्सव सह कल्याणोत्सव पर शुक्रवार से भगवान का नाम गूंजेगा. समापन पांच जून को होगा. तीन जून की शाम चार बजे से कलश स्थापना होगी. सभी तैयारियां लगभग पूरी हो गयी है. मंदिर के प्रवेश द्वार को फूलों से सजाया गया है. राणी सती मंदिर के सभागार में भगवान का विवाह समारोह आयोजित होगा. आयोजन स्थल को आकर्षक व भव्य तरीके से सजाया जा रहा है. मंदिर समिति के सदस्यों ने गुरुवार को तैयारियों को अंतिम रूप दिया. श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य वर्ष 2007 में पूरा हुआ था.
वर्ष 2007 में 16, 17 व 18 जून को मंदिर में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा की गयी थी. आगम शास्त्र विधि से निर्मित इस मंदिर की स्थापना का नाै वर्ष पूरा हो रहा है. लगभग 20 लाख से अधिक श्रद्धालु आ चुके हैं. प्रत्येक वर्ष दो लाख से अधिक लोग पहुंचते हैं. मंदिर की वर्षगांठ के माैके पर प्रत्येक वर्ष बड़े पैमाने पर कल्याणोत्सव सह वार्षिकोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. कार्यक्रम का आयोजन श्रीमद वेदांत देशिक आश्रम ट्रस्ट वृंदावन के अध्यक्ष जगत गुरु स्वामी अनिरुद्धाचार्य जी महाराज की अध्यक्षता में संपन्न होगा.
चार जून को निकलेगी भव्य शोभायात्रा
मंदिर के प्रबंधक रंजन सिंह ने बताया कि भगवान चार जून को दोपहर तीन बजे नगर भ्रमण पर निकलेंगे. उस दिन भव्य शोभायात्रा निकाली जायेगी. शोभायात्रा रातू रोड, हरमू रोड, गाड़ीखाना चाैक, कार्ट सराय रोड, जेजे रोड, शहीद चाैक, पुस्तक पथ, गांधी चाैक, महावीर चाैक, रातू रोड होते हुए श्री राणी सती मंदिर प्रांगण में लाैट जायेगी. उन्होंने कहा कि भगवान श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर श्रीश्रीदेवी व श्री भूदेवी के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं. भगवान भक्तों को दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ करते हैं. भक्त के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि व ऐश्वर्य की शोभा प्रदान करते हैं. मान्यता है कि शोभायात्रा में शामिल होने पर भगवान प्रसन्न होते हैं.
बंगाल से आयी है मालाकारों की टीम
भगवान वेंकटेश्वर मंदिर के वार्षिकोत्सव सह कल्याणोत्सव को भव्य बनाने के लिए पश्चिम बंगाल से मालाकारों की टीम बुलायी गयी है. मंदिर, प्रवेश द्वार, आयोजन स्थल को फूलों से सजाने में मालाकार जुटे हुए हैं. विनय धरनीधरका की देखरेख में हरि मालाकार, टुवलू मित्रा, शंकर पात्रा, चंडी दा, विपुल, सुब्रतो, देबू, संजय, शीतल, संजीव दा, विशु, गणेश, दिलीप व समोल साज-सज्जा के काम में लगे हुए हैं.
भगवान से जुड़ें, आनंद की प्राप्ति होती है
श्रीमद वेदांत देशिक आश्रम ट्रस्ट वृंदावन के अध्यक्ष व श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर संचालन समिति के अध्यक्ष जगत गुरु स्वामी अनिरुद्धाचार्य जी महाराज ने कहा कि भगवान का नाम ही उत्सव है.
जीव जब भगवान के साथ संलिप्त हो जाता है, तो उसका भी जीवन आनंदित हो जाता है. भगवान के अवतार का प्रायोजन है कि जीवों को आनंद की प्राप्ति हो जाये. भगवान के साथ जीव जुड़ जाता है. आनंद प्रकाशित हो जाता है. आनंद की प्राप्ति के लिए सभी जीवों का प्रयास होता है. भगवान से जुड़ने पर आनंद मिलेगा. आनंद भगवान के चरणों में है. भगवान के उत्सव में सम्मिलित होता है, बार-बार भगवान का दर्शन करता है, तोउसके आनंद में वृद्धि होती है.
क्या कहते हैं आयोजक
नारसरिया ने कहा कि तिरुपति बाला जी की इच्छा से सबकुछ संभव हुआ है. झारखंड में भगवान विराजमान है. भगवान के दर्शन मात्र से ही पाप कट जाते हैं.
राम अवतार, कार्यकारी अध्यक्ष
तिरुपति बाला जी का दर्शन रांची में सुलभ हो, इसके लिए डेढ़ दशक से प्रयास चलता रहा. बैकुंठवासी जगत गुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी भगवान दासाचार्य जी महाराज ने जो संकल्प लिया था, वह वर्ष 2007 में पूरा हो गया.
अनूप अग्रवाल, सदस्य
अब तक 20 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच चुके हैं. प्रत्येक वर्ष लगभग दो लाख से अधिक लोग मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आते हैं. प्रत्येक शुक्रवार भगवान का अभिषेक होता है.
गोपाल लाल चाैधरी, सचिव
भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान कर रहे हैं भगवान
श्रीलक्ष्मी वेंकटश्वर मंदिर रूपी दिव्य देश में कलयुग के अधिष्ठाता देव और भक्तों के अभिष्ट फलदाता भगवान श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर चतुर्भुज रूप में विराजमान हैं. जगत नियंता भगवान श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर वरदायी और शरणागत-रक्षक की मुद्रा में सुशोभित हो रहे हैं. श्रद्धापूर्वक दर्शन करने मात्र से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और लोक कल्याण करने के लिए भक्तों को सहज ही सुख, शांति और समृद्धि प्रदान कर रहे हैं.
सर्वशक्तिमान भगवान श्रीलक्ष्मी वेंकटेश ने दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण कर रखा है. चक्रराज भगवान श्रीसुदर्शनजी को श्रीमन् नारायण का अशांवतार कहा गया है. श्री सुदर्शनजी भगवान के अंतरंग पार्षद हैं. करोड़ों सूर्य की प्रभा को अपने में संजोकर रखनेवाले श्री सुदर्शनजी प्राणी को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकालते हैं और वे जीवन के तम-महातम को नष्ट करते हैं.
इस कलयुग में इनकी विशेष महिमा है. इनकी आराधना करने से न केवल सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, बल्कि प्राणी के सभी प्रकार के कार्य सफल होते हैं. दक्षिण प्रांत के कांचीपुरम के पास तिरूपुक्कुली नानक क्षेत्र में एक बार विष-ज्वर (सन्निपात) की बीमारी जोरों से फैली और वहां के लोग बीमारी से पूरी तरह से त्रस्त हो गये. यह जानकर श्री स्वामी देशिकन के मन में बड़ी करुणा उठी और लोगों की रोग निवृत्ति और शांति के लिए श्री सुदर्शनाष्टक और श्री षोडशायुध स्रोत की रचना की.
इसके पाठ और अनुसंधान करने से लोगों की रोग निवृत्ति हुई और मन की शांति भी मिली़ रांची स्थित श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर मंदिर में श्री चक्रराज भगवान विराजमान होकर भक्तों पर अनुग्रह कर रहे हैं. यहां पर चक्रराज भगवान के सांकेतिक रूप में 16 हाथ हैं, जिनमें 16 दिव्य आयुध शोभित हैं. श्रीसुदर्शन जी के हाथों में सुशोभित ये आयुध संसार के सबसे अधिक विकट और शक्तिशाली आयुध हैं. इन आयुधों की शक्ति से ओत-प्रोत श्री सुदर्शनजी अमोघ अस्त्र और शस्त्र के रूप में स्वयं श्रीलक्ष्मी वेंकटेश के हाथ में विराजमान हैं. इस संसार के प्राणियों के पाप, ताप और संताप को नष्ट करने के लिए ही भगवान श्रीमन्नारायण ने सुदर्शन-चक्र धारण किया है.
भगवान श्रीमान नारायण ही श्रीलक्ष्मी वेंकटेश हैं. श्री सुदर्शनजी की आराधना करने से दुश्मनों का समूह भी डर कर भाग जाता है और श्री सुदर्शनजी के स्रोत का परायण करनेवाले हमेशा विजयी होते हैं. श्री सुदर्शनजी की आराधना प्राणी को पुर्नजन्म से बचानेवाली है और असुरों और दुष्टों की माया से मनुष्यतों की रक्षा करती है. भगवान सुदर्शन के स्रोत का पाठ जो भी भक्त श्रद्धापूर्वक करते हैं, भगवान श्रीसुदर्शन की कृपा कटाक्ष से उनके असंभव तथा कठिन कार्य भी सहज ही पूर्ण होते हैं. इसमें तनिक भी संदेह नहीं है.

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