नेपाल सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के इस इलाक़े में इस वक़्त भीषण गर्मी जारी है.
सिद्धार्थ नगर ज़िले के एक पांच एकड़ कैंपस वाले स्कूल की ऊंची दीवारों के अंदर क़रीब सौ लड़के ‘किसी हमलावर’ की लाठियों और चाकुओं से निपट लेने का हुनर सीख रहे हैं.
पास में ही आग की एक रिंग तैयार की जा रही है और पचास लड़कों का एक दूसरा ग्रुप एक एक कर इस रिंग से आर पार कूदते हैं, इनमें से कुछ थोड़ा बहुत जख़्मी भी होते हैं.
इनमें से दर्जन भर लड़के मुंह में किरोसिन लेकर आग के गोले दिखाने जैसा ख़तरनाक़ करतब करते हैं, और हवा में भारत माता की जय के जयकारे गूंज उठते हैं.
इसे देखने आए 100 के क़रीब मेहमानों जिनमें महिलाएं भी हैं, कुछ दूरी पर बैठकर हर शो के बाद जोश में ताली बजाते हैं.
यह कोई सेना की ट्रेनिंग कैंप नहीं है बल्कि यह हिंदू संगठन बजरंग दल द्वारा आयोजित विवादित आत्मरक्षा शिविर या सेल्फ़ डिफ़ेंस कैंप है.
बजरंग दल अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ढहाने वाले दौर में चर्चा में आया था. यह विश्व हिंदू परिषद (परिषद) की युवा शाखा है.
विहिप के वरिष्ठ नेता अम्बरीश सिंह कहते हैं, "हम चाहते हैं कि हिंदू किसी भी दुर्घटना के लिए तैयार रहें. सीमा पर वाक़ई ख़तरा बहुत ज़्यादा है लेकिन देश के अंदर भी कोई कम ख़तरा नहीं है."
एक सप्ताह तक चलने वाले इसी तरह के छह कैंप सूबे उत्तर प्रदेश के अलग अलग शहरों में आयोजित किए गए हैं. एक तो देश की राजधानी से सटे नोएडा में भी आयोजित हुआ.
हर कैंप में इन सैकड़ों युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए भगवा लिबास में प्रशिक्षकों की टीम होती है जिसका दावा है कि यह शारीरिक अभ्यास ‘दुश्मन’ से निपटने के लिए ज़रूरी है.
हालांकि वे दुश्मन का नाम बताने या उन्हें परिभाषित करने से क़तराते हैं, लेकिन उनका कहना है, "जो भी हिंदुओं को दबाता है, दुश्मन है."
हिंदू समुदाय के नौजवान लड़के महज 100 रुपये की फ़ीस देकर इस कैंप में शामिल हो सकते हैं और उन्हें एक सप्ताह बाद जब ट्रेनिंग पूरी होती है, तभी कैंप से जाने दिया जाता है.
इस कैंप में मोबाइल फ़ोन पर प्रतिबंध है. अभ्यास सुबह पांच बजे शुरू हो जाता है और सूरज डूबने तक चलता है. इस कड़े अभ्यास से बच्चे पूरी तरह थक कर चूर हो जाते हैं.
विहिप की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में इसी तरह का कैंप आयोजित कर चुकी है.
ट्रेनिंग लेने आई एक महिला सुषमा सोनकर ने बीबीसी को बताया, "सिर्फ लाठी भांजना ही काफी नहीं है. राइफ़ल चलाना सीखने में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी है."
कुछ जगहों पर कहा जा रहा है कि लोगों को यहां जबरदस्ती लाया जा रहा है लेकिन कैंप के आयोजक इससे इनकार करते हैं.
उनके मुताबिक़, "हम सबसे पहले उनके मां-बाप से रज़ामंदी लेते हैं."
‘सेल्फ़ डिफ़ेंस’ के इन कैंपों पर तब विवाद छिड़ गया था जब अयोध्या में हथियारों की ट्रेनिंग वाले वालंटियरों का वीडियो वायरल हो गया था.
इस वीडियो में कुछ वालंटियर मुस्लिम युवकों की तरह टोपी पहने हाथों में तलवार और बंदूकें लहराते दिख रहे थे.
हालांकि वीएचपी और बजरंग दल के नेताओं ने वालंटियरों के टोपी पहनने से इनकार किया है, लेकिन मुस्लिम समुदाय और मीडिया के एक वर्ग में इस ड्रिल की कड़ी आलोचना हुई और इस तरह के कैंपों को लगाये जाने की छूट देने पर स्थानीय प्रशासन पर सवाल उठाया गया.
इन कैंपों से आहत ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के स्थानीय नेता ख़लीक़ अहमद ख़ान कहते हैं, "मुस्लिमों के अंदर डर पैदा करने की यह दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी और राज्य सरकार की जानबूझ कर की गई कोशिश है और हम इसके ख़िलाफ़ कोर्ट जाएंगे."
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और साम्प्रदायिक नफ़रत फैलाने के आरोप में अयोध्या कैंप के नेता को गिरफ़्तार किए जाने के बावजूद, पूरे प्रदेश में ऐसे कैंप आयोजित हो रहे हैं.
उन्हें राज्य के राज्यपाल राम नाइक का भी समर्थन हासिल है.
बीजेपी के पूर्व मंत्री रहे नाइक ने कहा था, "सेल्फ़ डिफ़ेंस ज़रूरी है और हर नागरिक को इसका प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए."
इस बीच केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने ये कहते हुए इस विवाद से किनारा करने की कोशिश की है कि इन कैंपों का मक़सद किसी ख़ास समुदाय, ख़ासकर मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अंशांति फ़ैलाना नहीं है.
बजरंग दल के नेता रह चुके और बीजेपी सांसद विनय कटियार ने कहा, "इन कैंपों में नया क्या है? पिछले 20 सालों से ये हर साल आयोजित किए जाते रहे हैं. इनमें कोई टोपी नहीं पहनी गई और अगर कुछ लोगं ने सिर पर स्कार्फ़ पहना या एयरगन का प्रदर्शन किया, तो ये ड्रिल का महज़ हिस्सा है."
लोगों में ग़ुस्से को देखते हुए, ऐसा लगता है कि ऐसे हल्के हथियारों की जगह लकड़ी की बंदूकें, चाक़ू और लाठियों का इस्तेमाल होने लगा लेकिन कैंप जारी हैं.
यह पहली बार नहीं कि यह हिंदू कट्टरपंथी संगठन विवादों में घिरा है.
विहिप और बजरंग दल के नेताओं ने तो खुलेआम कहा है, "भारतीय लोकतंत्र को हिंदू संस्कृति के आधार पर चलाने की ज़रूरत है, हालांकि सभी समुदायों के भारत में रहने का स्वागत है."
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