दुनिया के 167 देशों में 4.58 करोड़ लोग आधुनिक दासता के शिकार हैं और इनमें सबसे अधिक संख्या भारतीयों की है. ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के सर्वेक्षण के आंकड़े वैश्विक विकास की प्रक्रिया पर बड़ा सवालिया निशान हैं. इस रिपोर्ट में सरकारों से ठोस पहल करने का आह्वान किया गया है. इस वार्षिक इंडेक्स के विभिन्न पहलुओं पर आधारित इन-डेप्थ की प्रस्तुति….
भारत एक महत्वपूर्ण संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, जहां एक ओर अर्थव्यवस्था तेजी से हो रहे सामाजिक और राजनीतिक बदलावों को गति दे रही है, वहीं दूसरी ओर इनका असर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. आर्थिक वृद्धि ने बीते बीस सालों से अधिक की अवधि में बढ़ते मध्य वर्ग को बनाने के साथ-साथ कई अन्य स्तरों पर देश को परिवर्तित किया है.
वर्ष 1993 में देश की करीब 45 आबादी गरीबी में जी रही थी. यह संख्या 2011 में घट कर 21 फीसदी रह गयी थी. आर्थिक विकास के साथ कानूनी और सामाजिक सुधार के भी व्यापक उपाय किये गये हैं. इन उल्लेखनीय बदलावों के बावजूद कम-से-कम 27 करोड़ लोग दो डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करने पर मजबूर हैं.
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.83 करोड़ से अधिक लोग आधुनिक गुलामी का जीवन बिताते के लिए विवश हैं. दासता के कुछ प्रकार है-
बंधुआ मजदूरी : हालांकि कानूनी तौर पर बंधुआ मजदूरी को बहुत पहले ही अवैध घोषित किया जा चुका है, परंतु इस सर्वेक्षण और इससे पहले के शोध रेखांकित करते हैं कि यह प्रथा आज भी बदस्तूर जारी है. इसका बड़ा कारण कर्ज की प्रणाली और सामंती मानसिकता हैं. बंधुआ मजदूर आम तौर पर स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक और गंदी स्थितियों में काम करते हैं और उन्हें बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं.
घरेलू सेवा : घरों में काम करनेवाले सभी लोगों के साथ दुर्व्यवहार नहीं होता है, लेकिन ऐसे कामकाजी लोगों के शोषण की आशंका रहती है, क्योंकि नियम-कानूनों से ये दूर होते हैं. आधिकारिक भारतीय आंकड़ों के अनुसार 2004 में देश में 40 लाख से अधिक पुरुष, महिलाएं और बच्चे घरेलू कामकाज में लगे थे. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे लोगों की वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है. कुछ राज्यों में घरेलू मजदूरों को श्रम कानूनों के दायरे से बाहर रखा गया है.
भीख मांगने के लिए मजबूर करना : शहरों और कस्बों में व्यस्कों और बच्चों द्वारा सड़कों पर भीख मांगना आम बात है. बहुत से भिखारी ऐसे हो सकते हैं जो अत्यधिक गरीबी के कारण भीख मांगने के लिए मजबूर हैं, लेकिन सर्वेक्षण में पाया गया है कि अपराधी जबरन भीख मांगने के लिए लोगों को मजबूर करते हैं.
व्यावसायिक यौन शोषण : पहले से उपलब्ध अध्ययन और 2016 के सर्वेक्षण बताते हैं कि भारत में बड़े पैमाने पर जोर-जबर्दस्ती से वेश्यावृत्ति करायी जाती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2014 के आंकड़ों के अनुसार मानव तस्करी अपराधों के अंतर्गत करीब 5.5 हजार मुकदमे दर्ज किये गये थे.
चूंकि कानून मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति में अंतर नहीं करता है और बचाये गये लोगों की पहचान के लिए कोई औपचारिक दिशा-निर्देश नहीं है, इसलिए यह जान पाना असंभव है कि ऐसे मामलों में कितने लोग जीवन-यापन के लिए इस पेशे में आये थे और कितने लोग जबरन धकेले गये थे.
जबरन शादी : भारत में अब भी करीब आधी महिलाओं की शादी 18 वर्ष की तय आयुसीमा से पहले कर दी जाती है. स्त्री भ्रूण हत्या, रोजगार के लिए लड़कियों का शहरों में पलायन आदि कारणों से अनेक ग्रामीण इलाकों में शादी के लिए लड़कियों की संख्या कम रह गयी है. इस स्थिति में मजबूरन शादी के लिए लड़कियों की तस्करी के मामले लगातार बढ़े हैं. कुछ मामलों में ऐसी लड़कियों को शादी के बाद बिना मजदूरी दिये काम भी कराया जाता है.
सशस्त्र समूहों में जबरन बहाली : भारत में ऐसे अनेक इलाके हैं जहां सशस्त्र समूहों और राज्य के सुरक्षा बलों के बीच हिंसक संघर्ष जारी है. अध्ययन में ऐसे सबूत मिले हैं, जो यह संकेत करते हैं कि राज्य के विरुद्ध संघर्षरत समूह बच्चों को बहाल करते हैं. ऐसे मामले जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में सामने आये हैं.
गुलामी के कुछ प्रमुख कारक
भारत में 27 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. बेघर होने की समस्या चिंता का एक बड़ा कारण है. वर्ष 2013 में मुंबई की सड़कों पर किये गये एक सर्वेक्षण में 37 हजार से अधिक बच्चे बेघर पाये गये थे, जिनमें 70 फीसदी लड़के थे और शेष लड़कियां थीं. इनमें से 18 फीसदी 10 से 12 साल की उम्र के थे.
भारत की अधिकांश श्रम अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक होने के कारण गुलामी की आशंका बढ़ जाती है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 75 फीसदी ग्रामीण मजदूर और 69 फीसदी शहरी मजदूर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में हैं. ऐसे मजदूरों को नियम-कानूनों का संरक्षण नहीं होता है, जिससे इनके शोषण की स्थितियां बनती हैं.
आबादी में वृद्धि और विकास की गति के कारण ‘खूनी ईंट’ की मांग बढ़ी है तथा ईंट भट्टे शोषण के सबसे खतरनाक ठिकाने बने हैं. गरीबी, परेशानी सहने की क्षमता का अभाव और संरचनात्मक विषमता के कारण गुलामी की परिस्थितियां बनती हैं. रोजगार की खोज में मजदूरों का प्रवासन भी उन्हें शोषण की ओर धकेलता है. जाति और लिंग के आधार पर उत्पीड़न और शोषण भी बड़े कारक हैं.
गुलामी के मामलों में भारत सरकार का रुख
सरकार ने घरेलू नौकरों के लिए राष्ट्रीय नीति का प्रारूप तैयार किया है, जिसे कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार है. इसमें समुचित वेतन और सुविधाओं का प्रावधान है. जून, 2015 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने गुमशुदा महिलाओं और बच्चों का पता लगाने के लिए ‘खोया-पाया’ वेबसाइट की शुरुआत की है. इसके अलावा गृह मंत्रालय भी ‘ट्रैक चाइल्ड’ साइट चालाता है.
भारत ने आधुनिक दासता के ज्यादातर रूपों को आपराध घोषित कर दिया है. इस संबंध में केंद्र सरकार तीन मंत्रालयों- श्रम मंत्रालय, गृह मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय- के माध्यम से कार्य करती है. लेकिन इन मंत्रालयों और संबद्ध विभागों में परस्पर सहयोग और साझेदारी के अभाव के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाता है. जांच और कानूनी प्रक्रिया में ढीलापन के कारण भी समस्या का सामना उचित तरीके से नहीं हो पा रहा है.
क्या है स्लेवरी इंडेक्स
वैश्विक सामाजिक संस्था वाक फ्री फाउंडेशन की ओर से ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स रिपोर्ट जारी की जाती है. वर्ष 2016 की रिपोर्ट इस सिलसिले की तीसरी रिपोर्ट है. इस इंडेक्स में 167 देशों में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर आधुनिक दासता के शिकार लोगों, मुख्य कारकों और सरकारों की कार्रवाई के बारे में विस्तार बताया गया है.
इंडेक्स सरकारों, स्वयंसेवी संस्थाओं, कारोबारी समूहों तथा नागरिकों को दासता को समाप्त करने के लिए जरूरी सुझाव भी उपलब्ध कराता है. वाक फ्री फाउंडेशन के प्रमुख एंड्रू फॉरेस्ट ने रिपोर्ट में लिखा है कि यह इंडेक्स कोई अकादमिक अध्ययन नहीं है, बल्कि ठोस कार्रवाई का आह्वान है. यदि दुनिया के नेता, उद्योगपति और सामाजिक कार्यकर्ता अपनी इच्छाशक्ति प्रदर्शित करें, तो दासता को मिटाया जा सकता है.
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स रिपोर्ट में दिये गये सुझाव-
– कानूनों के समुचित पालन पर जोर.
– बाल श्रम पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन को मंजूर और लागू करना.
– घरेलू नौकरों पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन को मंजूर और लागू करना.
– बंधुआ मजदूरी पर 2012 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर राज्यों द्वारा कार्रवाई को सुनिश्चित करना.
– बंधुआ मजदूर कानून में अपेक्षित सुधार करना.
– प्लेसमेंट एजेंसियों के कामकाज पर निगरानी और उनका नियमन.
– आधुनिक दासता को समाप्त करने के लिए नेशनल एक्शन प्लान बनाना.
– पीड़ितों को हरसंभव सहायता सुनिश्चित करना.
– महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाना और आश्रय स्थलों को बेहतर करना.
– बच्चों को हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल करने पर रोक और छुड़ाये गये बच्चों के बेहतर पुनर्वास की कोशिश.
– उद्योगों को सरकार और सिविल सोसायटी के साथ सहयोग कर दासता की स्थितियों को सुधारने का प्रयास.
ये भी जानिए
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स वैश्विक स्थिित
दुनियाभर में 167 देशों में आधुनिक गुलामी के कुछ प्रारूपों का अध्ययन किया गया और अनुमान लगाया गया है कि करीब 4.58 करोड़ लोग इस तरह की गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं. भारत में एक करोड़, 83 लाख 50 हजार लोग बंधुआ मजदूरी, वेश्यावृत्ति और भीख मांगने जैसी आधुनिक गुलामी की चपेट में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में आधुनिक गुलामी से पीड़ितों की सर्वाधिक संख्या भारत में है.