लंबे समय से ये माना जाता रहा है कि एक अच्छा लीडर वो है जो निर्णय तत्काल ले.
वो महिला या पुरुष जो अपने दिमाग़ को समझता हो और सही फ़ैसले तत्काल लेता हो.
हमें बताया जाता है कि वो इस तरह का शख्स होता है जो इंचार्ज होता है, फिर चाहे वो कारोबार का क्षेत्र हो, सरकारी विभाग हो या यहाँ तक कि फ़ुटबॉल टीम का मैनेजर.
लेकिन अगर आमतौर पर चली आ रही ये धारणाएं गलत हों तो क्या हो?
क्या किसी ऐसे व्यक्ति को इंचार्ज बनाया जाना ठीक है जो घबराता हो या चीजों की हीला हवाली करता हो? जो जब फैसले लेने का समय आता है, तब पीछे हट जाता हो?
कारोबार के मनोविज्ञानी प्रोफ़ेसर एडम ग्रांट की हाल ही आई किताब- हाउ नॉन कनफर्मिस्ट सी द वर्ल्ड, में इन्हीं पहलुओं पर बात की है.
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन बिज़नेस स्कूल के प्रोफ़ेसर ग्रांट कहते हैं कि फैसले लेने में टालमटोल करने वाले या परियोजना शुरू करने की तारीख तय न कर पाने वाले- वास्तव में कंपनी के मालिक के दिमाग़ को अधिक रचनात्मक तरीके से सोचने का मौका देते हैं और नई परियोजना को शुरू करने का बेहतर मौका देने में मदद करते हैं.
ग्रांट कहते हैं, “टालमटोल से आपके विचारों को छानने का समय मिलता है….और नई तकनीक सामने आती हैं.”
ग्रांट की राय है कि कारोबारियों को नए विचारों पर जल्द विचार करना चाहिए, लेकिन उन्हें लागू करने में पर्याप्त वक्त लेना चाहिए ताकि वे अनपेक्षित गलतियों से बच सकें
या यूं कहें, नए प्रोजेक्ट को “शुरू करने में जल्दबाज़ी करें, लेकिन निपटाएं धीरे-धीरे.”
अपनी किताब के लिए शोध करते वक्त ग्रांट ने गूगल के सह संस्थापक लैरी पेज और अमेज़न के संस्थापक जैफ़ बेज़ोस से बात की.
ग्रांट का कहना है कि उन दोनों ने माना कि उन्होंने फ़ैसलों को तब तक टाला है जब तक इन्हें टाला जा सकता था, क्योंकि वे सारी सूचनाएं अपनी मेज पर चाहते थे और इन सूचनाओं की छानबीन के लिए खुद को पर्याप्त समय देना चाहते थे.
शायद इसी नज़रिए ने दोनों कंपनियों की सफलताओं में योगदान दिया.
शिकागो स्थित डे पॉल यूनिवर्सिटी से जुड़े और टालमटोल पर 65 से अधिक शोध पत्र लिखने वाले
मनोविज्ञानी जोसेफ़ फ़ेरारी का कहना है कि फैसले लेने में टालमटोल वाला रवैया विनाशकारी हो सकता है. वो कहते हैं, “अगर कोई किसी प्रोजेक्ट में देरी करता है तो दूसरे लोग इससे प्रभावित होंगे.”
फ़ेरारी चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति टालमटोल करता है तो वो वास्तव में काम में देरी अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा होता है.
फ़ेरारी जहाँ टालमटोल वाले रवैए पर चेताते हैं, वहीं कोलंबिया बिज़नेस स्कूल की प्रोफ़ेसर रीता मैकग्राथ का कहना है कि कंपनियां आमतौर पर जल्दबाज़ी में सही फ़ैसला नहीं कर सकतीं.
वो कहती हैं, “जटिल फ़ैसलों को लेने में समय लगता है.”
उनका कहना है कि बिज़नेस लीडर्स को किसी काम को करने से पहले उसकी हर पहलू से जाँच करनी चाहिए.
मैकग्राथ कहती हैं कि फ़ेसबुक इसका अच्छा उदाहरण है. मार्क ज़करबर्ग ने फ़ेसबुक नहीं के बराबर पैसों से शुरू किया था और उन्होंने सबसे पहले इसे अमरीकी विश्वविद्यालयों में परखा. ये वो दौर था जब ऐसी ही साइट्स माइस्पेस और फ्रेंडस्टर फिसलती जा रही थी.
यूके जॉब्स वेबसाइट सीवी-लाइब्रेरी के संस्थापक और प्रबंध निदेशक ली बिगिन्स कहते है टालमटोल और मौके के लिए त्वरित फ़ैसला अहम होता है.
वो कहते हैं, “ये निर्भर करता है कि फ़ैसला किस बारे में लिया जा रहा है और कारोबार कितना बड़ा है.”
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