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संघ के ये मुस्लिम चेहरे मोदी सरकार पर क्या कहते हैं?

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता, दिल्ली दिल्ली की मक्की मस्जिद मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के निकट है. बहादुर शाह ज़फर मार्ग से लगी एक सड़क मस्जिद तक जाती है. वहां हर महीने के पहले रविवार को आरएसएस से जुड़े संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की सभा होती है. सभा में शरीक होने वाले मुसलमान भाजपा के समर्थक […]

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दिल्ली की मक्की मस्जिद मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के निकट है. बहादुर शाह ज़फर मार्ग से लगी एक सड़क मस्जिद तक जाती है. वहां हर महीने के पहले रविवार को आरएसएस से जुड़े संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की सभा होती है.

सभा में शरीक होने वाले मुसलमान भाजपा के समर्थक भी होते हैं और कार्यकर्ता भी.

मज़े की बात ये है कि आरएसएस और भाजपा की विचारधारा का प्रचार करने वाले ये लोग पांच वक़्त के नमाज़ी हैं. इनमें से कई पुरुषों की मौलवियों वाली दाढ़ी भी है. कुछ महिलाएं भी सभा में आती हैं.

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उनके हुलिए को देखकर शायद अब सोचेंगे कि ये लोग मुस्लिम, इस्लाम और अल्पसंख्यक के हित में ही बातें करेंगे. उनसे रूबरू होने के बाद उनकी ज़बान से राष्ट्रवाद, देश भक्ति और बहुलवाद की बातें सुनकर थोड़ा अटपटा सा ज़रूर महसूस होगा.

लेकिन ये लोग आरएसएस और संघ परिवार का मुस्लिम चेहरा हैं और ये जो बातें कहते हैं वो आस्था के साथ कहते हैं. अगर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हैं या उनका पक्ष लेते नहीं थकते, तो उनकी सरकार की आलोचना करने का साहस भी रखते हैं.

दिलदार हुसैन बेग़ दिल्ली नगर निगम में कॉन्ट्रैक्टर हैं और पुरानी दिल्ली में काफी असर रखते हैं. वो पिछले 25 सालों से भाजपा से जुड़े हैं.

बेग़ कहते हैं, "हम लोगों को दोनों तरफ से मार पड़ती है. अपने मुस्लिम समुदाय में भी और जिन हिन्दू भाइयों के साथ काम करते हैं उनसे भी. हमने भाजपा को 28,000 वोट दिलवाए, लेकिन आज हमें कोई पूछने तक नहीं आता."

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दबंग सामाजिक कार्यकर्ता शबनम ख़ान बेग साहेब से सहमत नज़र नहीं आती हैं.

वो कहती हैं, "हम और आप दूसरे पर ही सारी चीज़ें लादना चाहते हैं. क्या आप और हमने एकजुट होकर ये आवाज़ उठाई?"

इस पर बेग साहब बोले, "मैंने तो लिखित रूप में अमित शाह जी, राजनाथ सिंह और पार्टी के कई बड़े नेताओं को और प्रधानमंत्री जी को कई लेटर भेजे. हमें उनसे कुछ नहीं चाहिए, लेकिन वो हमसे मिल तो सकते थे. हमें सम्मान तो दे सकते थे?"

बेग आगे कहते हैं, "अगर ये कहना है कि मोदी जी बड़ा अच्छा काम कर रहे हैं तो मैं इसके लिए तैयार नहीं."

इस पर शबनम ख़ान का कहना था कि उनका उद्देश्य ये नहीं होना चाहिए कि पार्टी ने उनके लिए क्या किया.

वो कहती हैं, "हमारा उद्देश्य है कि मुस्लिम पढ़ेगा कैसे, आगे बढ़ेगा कैसे? मुस्लिम समाज की मुख्य धारा से जुड़ेगा कैसे? हमारी मोदी जी से सिर्फ इतनी मांग है मुस्लिम समुदाय को आप क्या देंगे?"

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तो क्या मुसलमानों को पिछड़ेपन से निकालने के लिए आरक्षण की ज़रूरत है?

इस पर मुस्लिम मोर्चे से जुड़े मोहम्मद बिलाल कहते हैं, "बात आरक्षण की क्यों की जाए, बात की जाए बराबरी की."

बिलाल, जो भाजपा के संस्थापक सदस्य आरिफ़ बेग के नज़दीकी हैं, कहते हैं कि नरेंद्र मोदी के सत्ता पर आने के बाद मुसलमानो में जो खौफ़ था वो चला गया है.

मोहम्मद बिलाल कहते हैं मुस्लिम लड़कियों के लिए ”नई रोशनी” जैसी योजना लाकर मोदी सरकार ने एक बड़ा क़दम उठाया है.

वो कहते हैं, "लड़के को पढ़ाया तो सिर्फ़ एक इंसान को पढ़ाया और लड़की को पढ़ाया तो पूरे खानदान को पढ़ाया."

मोहम्मद बिलाल के अनुसार सकारात्मक सोच रखने वालों को बदलाव नज़र आ रहा है. मोर्चे के एक और सदस्य डॉक्टर मोहम्मद इक़बाल के अनुसार दंगे कांग्रेस के ज़माने में अधिक होते थे. मुसलमानो में भय उस समय अधिक था. अब नहीं है."

डॉक्टर इक़बाल आगे कहते हैं, "जिन मुसलमानों को डर लग रहा है उन मुसलमानों को एक महीने के लिए पाकिस्तान भेज दो. और एक महीने के बाद जब उन्हें आप बुलाओगे तो इंशा अल्लाह वो हिंदुस्तान की धरती चूमते हुए नज़र आएंगे."

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चौधरी अब्बास अली 34 सालों तक दिल्ली में शिक्षक रहे. अब भी वो मुस्लिम समाज में शिक्षा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

वो कहते हैं, "मोदी जी ने बड़ी अच्छी बात कही कि वो मुसलमान बच्चों के एक हाथ में क़ुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर देखना चाहते हैं. इससे मुस्लिम बच्चों का प्रोत्साहन मिलेगा."

मोहम्मद बिलाल भी कहते हैं कि मोदी सरकार मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई को तरजीह दे रही है, जिससे मुस्लिम समाज आगे बढ़ेगा. वो पूर्वी राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की मिसाल देते हैं.

वो कहते हैं, "हमारे सामने मिसाल है कि एक मछुआरे का बेटा मिसाइल मैन, भारत रत्न एपीजे कलाम अगर बड़ा व्यक्ति बना तो शिक्षा के आधार पर ही बना."

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