रामनाथ गोयनका की मौत सामयिक इतिहास के उस जीवंत अध्याय का पटाक्षेप है, जिससे शौर्य पराक्रम संघर्ष और पूरी व्यवस्था के खिलाफ अकेले खड़े हो जाने की अनेक घटनाएं दर्ज है. हम उस पीढ़ी में पले – बढ़े जब पौरूष के प्रतीक और धारा की खिलाफ चलनेवाले का आत्मबल अद्भूत रूप से आकर्षित करता था. इतिहास बनानेवाले में एक अद्भूत सम्मोहन होता है, रामनाथ गोयनका का देशज पौरूष हमारी पीढ़ी में चर्चा -बहस का विषय रहा.
जाने अनजाने बगैर उनसे मिले ही वह हमारी पीढ़ी के नायक बन गये. 1974-77 के उस दौर के युवाओं का सपना आकर्षक लक्ष्य आज जैसा दिशाहरा और पथच्युत नहीं था. इस कारण पहली बार रामनाथ जी को देखा तो पूरा परिवेश और उनका छलकता आत्मविश्वास देखकर मुग्ध रह गया. 7 नवंबर 1976 को विद्यार्थी की हैसियत से पटना स्थित जेपी के निवास कदम कुंआ पर मैं गया था.
उस दौर में जेपी के घर पहुंचना किसी दुश्मन देश की सीमा पार करने जैसा था. वहां दो लोग पहले से मौजूद थे रामनाथ गोयनका और स्टेट्समैन के सीआर इरानी. दूसरी बार 1978 में अखबारनवीश के रूप में एक्सप्रेस टावर की 26वीं मंजिल पर जेपी की कुरसी के नीचे फर्श पर बैठे सत्ता पलटने का सुख से दमकता उनका चेहरा देखा. जेपी की नाजुक स्थिति ( जब उनकी मृत्यु की सूचना प्रसारित हो गयी थी) में जसलोक अस्पताल परिसर में बेचैन घंटों घूमते देखा.
हर बार लड़ाई में उनकी विनम्र सुभाष बाबू से सामीप्य, अखबार निकालने के दौरान संघर्ष कांग्रेस के नेताओं से प्रगाढ़ता के प्रसंग तो जगजाहिर हैं पर कम लोगों को मालूम है कि कांग्रेस के नेताओं से प्रगाढ़ता के प्रसंग तो जगजाहिर है पर कम लोगों को मालूम है कि कांग्रेस के वरिष्ठ,दिग्गज नेताओं और अंगेरजों की आंख की किरकिरी बने. फिरोज गांधी उनके यहां काम करते थे जेपी से उनकी निकटता चर्चा का विषय थी, पर वह अपने व्यक्तित्व के इन पहलुओं के कारण स्मरण नहीं किये जायेंगे.
दरअसल रवींद्र नाथ टैगोर के उस सपने एकला चलो रे… को चरितार्थ किया था रामनाथ गोयनका ने आपातकाल में जब श्रीमती गांधी ने प्रेस को पंगु और नंपुसक बना दिया. तब सिर्फ एक संस्थान ही तन कर ,खड़ा रहा. पर रूग्ण विस्तर से रामनाथ जी ने वह साहस दिया जिसे सुन कर तब हमारी पीढ़ी के युवाओं में नया उमंग-उत्साह पैदा हुआ. उन्हीं दिन हमने अफवाह की शक्ल में सुना कि रामनाथ जी ने कहा कि वह कलकत्ता से मद्रास लोटा लेकर गये थे, वह इस पूरी अर्जित साम्राज्य को दांव पर लगाकर भी नहीं झुकेंगे.
रामनाथ जी ने न सिर्फ उन्हें मदद की बल्कि इंडियन एक्सप्रेस में रखा. 1977 में सूचना मंत्री की हैसियत से आडवाणी जी कहा था कि उन्हें पत्रकारों ने झुकने के लिए कहा तो उस दौर का पूरा इतिहास कितना श्रीहीन ,नीरस और शर्म का विवरण होता. 1980-85 में प्रेस मालिक के रूप में तो रामनाथ जी ने स्पष्ट कर दिया कि मुनाफे या निजी लाभ के लिए वह अखबार नहीं चला रहें उनके अखबार संचालन के पीछे एक मुकम्मल दृष्टि थी. सत्ता के आगे भय से समर्पण की आहट नहीं थी वह संकल्प वह जीवट लगातार पत्रकारिता के माध्यम से व्यवस्था को मांजने -तराशने का काम करता रहा.
उन्हें उनके परिवार को मीसा में गिरफ्तार करने की धमकी दी गयी. उन्हें ओछी हरकतों से विदेश जाने से रोका गया. एक्सप्रेस समूह पर छापे मारे गये राजीव राह्ला में आयकर से लेकर दूसरे आरोपों के तहत लगभग 300 मामले दर्ज किये गये. उनके अखबार में ह़डताल करायी गयी. बंबई के कुख्यात ट्रेड यूनियन नेता दत्ता समाज ने उनसे विफल जोर आजमाइश की पर इस पर संघर्ष से निखर कर ही रामनाथ गोयनका के नेतृत्व में एक्सप्रेस समूल उभरा जब सारी लोक तांत्रिक संस्थाएं अपनी भूमिका में ल़डख़डाने लगी तो फ्रैक मोरेस एस मुलगावकर, नरसिंह कुलदीप मेयर अजीत भट्टाचार्य, अरूण शौरी प्रभाष जोशी जैसे दिग्गज उस संस्थान से जुड़े रहे या जुड़े हैं . आज जब चौतरफा घटाटोप अंधकार अैर अस्थायी का दौर है जब रामनाथ जी जैसे व्यक्ति का न रहना भयावह है.