बांग्लादेश से भारत वालों के लिए ई- टोकन की व्यवस्था की गई है. इसके बाद ही वीज़ा के लिए आवेदन किया जा सकता है.
आरोप है कि इस आनलाइन ई-टोकन को हासिल करने की पूरी प्रक्रिया ही बिचौलियों के हाथों में चली गई है और इस वजह से भारत का वीज़ा लेने के इच्छुक लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
बांग्लादेश के असीम बर्मन कई बार भारत जा चुके हैं लेकिन इस बार भारतीय वीज़ा पाने की कोशिश करते हुए जितनी परेशानी उन्हें हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई थी.
उनकी योजना अपने छह सदस्यीय परिवार के साथ भारत जाने की थी लेकिन प्रक्रिया की वजह से उन्हें बेहद परेशानी झेलनी पड़ी.
पैसा देकर ये टोकन लेने के बाद उन्हें बुलावा आया ताकि वे अपना आवेदन औपचारिक तौर पर जमा कर सकें. लेकिन उन्हें इसमें वीज़ा नहीं मिल सका.
बर्मन कहते हैं, "मैं ई टोकन देने वाले बिचौलियों से मिला. वह हर पासपोर्ट के 3,200 टका ले रहे हैं. मेरे परिवार के कुल छह पासपोर्ट हैं. खुद अपने घर के इंटरनेट से कोशिश कर रहा हूं मगर हो नहीं पा रहा. रात के 12-1 बजे तक कोशिश करता रहा. मगर कोई फायदा नहीं हुआ."
बर्मन कहते हैं कि यह नई व्यवस्था आम लोगों के उत्पीड़न को छोड़कर कुछ नहीं है.
असल में भारतीय वीज़ा के आवेदन के लिए देश भर में दलालों का एक रैकेट काम कर रहा है, जो ई टोकन देने की गारंटी देते हैं.
आम वीज़ा आवेदक कई घंटों की कोशिश के बावजूद ई टोकन हासिल नहीं कर पाते. मगर इस रैकेट के सदस्य सर्वर में घुसकर इस काम को बड़ी आसानी से कर देते हैं. हालांकि वो ये करते कैसे हैं, यह बड़ा सवाल है.
ढाका की धनमंडी मार्केट में ऐसे ही एक कारोबारी ई टोकन दिलाने का काम करते हैं, और ये काम साइड बिज़नेस की तरह करते हैं. वह बताते हैं कि ई टोकन के लिए कितना पैसा देना होगा ये आवेदकों की संख्या पर निर्भर है. उनका दावा है कि ई टोकन का कारोबार असल में करोड़ों रुपये का है.
वह कहते हैं, "रोज 5-7 लोग मेरे पास आते हैं. मैं 2,500 से लेकर 3,000 या 2,000 टका भी लेता हूं. जब ई टोकन मिलना मुश्किल होता है तो मैं 4,000 टका तक भी लेता हूं. यह निर्भर करता है उन पर जो हमें ई टोकन लाकर देते हैं. वही बताते हैं कि हम लोगों से कितना टका लें. इसमें गुलशन और ज़फर के लोग हैं. हम बस टका भेज देते हैं और वो ई टोकन हमारे मेल पर भेज देते हैं."
ई टोकन ‘कारोबार’ के कई स्तर हैं, मगर इसकी जड़ें कहां हैं, यह पता लगाना बेहद मुश्किल है. ढाका के पल्टन इलाक़े में एक व्यक्ति ने हमें बताया कि वह इस धंधे में तीसरे स्तर पर हैं. उनके मुताबिक़ उनसे ऊपर तीन और उनके नीचे दो स्तर हैं. मगर पैसा किसके पास पहुंच रहा है, इसका उन्हें कोई अंदाज़ा नहीं.
ढाका की धनमंडी और गुलशन बाज़ार दोनों जगह वीज़ा आवेदन केंद्र हैं. इनके बाहर खड़े हर शख्स ने हमें बताया कि पैसा दिए बगैर ई टोकन पाना नामुमकिन है.
एक और बिचौलिए ने हमें बताया, "इसमें एक जगह पर सब कुछ नहीं होता. हाथ बदलते रहते हैं. टका कोई लेता है, फिर वो किसी और को देता है. वो भी किसी और को देता है. ये चार पांच जगह हाथ बदलते हैं."
धन मंडी में मिज़ानुर रहमान नाम के एक व्यक्ति ने हमें कहा कि आप इस तथ्य की तसदीक किसी से भी कर सकते हैं.
वह कहते हैं, "समस्या ये है कि मैंने अपने, अपनी पत्नी और बच्चे के वीज़ा के लिए ई टोकन लेने की कोशिश की. मुझसे 3,000 टका के हिसाब से नौ हज़ार टका मांगे गए. किसी किसी से 3,500 टका लेते हैं तो किसी से 2,500. आप किसी से भी पूछ सकते हैं कि भारत का वीज़ा हासिल करने में कितनी परेशानी हो रही है. अमरीका का वीज़ा लेने में उतनी परेशानी नहीं होती जितनी भारत का वीज़ा लेने में हो रही है. मैं चीन भी गया हूं मगर इतनी परेशानी नहीं हुई."
ढाका महानगर पुलिस के पुलिस पीआरओ मारूफ़ हसन बीबीसी से कहा कि इसकी कोई शिकायत नहीं आई है, "हमारे पास अभी तक किसी ने भी कोई लिखित शिकायत नहीं की है. अगर कोई लिखित शिकायत करता है तो हम ज़रूर कानूनी कार्रवाई करेंगे."
इसी साल जनवरी में भारत सरकार के एक आंकड़े में कहा गया था कि नौ लाख 13 हज़ार विदेशी पर्यटक भारत आए थे, जिनमें सबसे ज़्यादा अमरीका और फिर बांग्लादेश से थे.
ई टोकन के मुद्दे को लेकर कई दिन से आरोप लग रहे हैं मगर भारतीय उच्चायोग इसे लेकर उदासीन है. जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने लिखित में बताया कि वीज़ा को लेकर उनका कोई एजेंट नहीं हैं.
उच्चायोग का यह भी कहना था कि ई टोकन दिलाने के नाम पर कोई एजेंट या कोई धोखेबाज़ अगर लोगों से पैसा मांगता है तो उन्हें पुलिस को ख़बर करनी चाहिए.
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