उत्तराखंड के जंगलों में एक महीने में आग लगने की एक हज़ार से ज़्यादा घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें अब तक 1900 हेक्टेयर से ज़्यादा वनक्षेत्र तबाह हो चुका है.
इस साल लगी आग जंगलों में अब तक की सबसे भीषण आग है. उत्तराखंड के जंगलों में 1992, 1997, 2004 और 2012 में भी बड़ी आग लगी थी.
इस साल की आग ने इतना विकराल रूप ले लिया है कि पहली बार आग बुझाने के लिए वायु सेना, थल सेना और एनडीआरएफ़ तक को लगाना पड़ा है.
जंगल में सबसे पहले आग ज़मीन पर गिरे पत्तों में लगती है.
इस बार शीतकालीन बारिश नहीं होने की वजह से उत्तराखंड के जंगलों में ज़मीन में नमी नहीं बची थी.
वहीं मार्च-अप्रैल में ही तापमान बहुत ज़्यादा बढ़ गया. इसकी वजह से पत्ते भी ज़्यादा गिरे और नमी न होने की वजह से जो आग लगी, उसने विकराल रूप धारण कर लिया.
हमारे देश का वन प्रबंधन भी बहुत बुरा है. चीड़ जैसे पेड़ों की प्रजातियां मध्य हिमालय में होती हैं, यह निचले इलाक़ों में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये तेज़ी से आग पकड़ती हैं.
गर्मी ज़्यादा पड़ने से आग पकड़ती है और हवा चलने से यह आग फैलती है.
इस साल शीतकालीन बरसात की कमी और गर्मी की वजह से, पहले से ही आशंका जंगलों में भीषण आग लगने की आशंका थी. लेकिन इससे बचने की कोई तैयारी नहीं की गई थी.
इस तरह की आग का मुक़ाबला करने के लिए 4-5 महीने पहले से तैयारियां की जानी चाहिए.
वन विभाग अपने हालात के मुताबिक़ हर 80 हेक्टेयर पर एक फ़ायर गार्ड रखता है. उन्हें जंगल की आग बुझाने के लिए तीन महीने का रोज़गार दिया जाता है.
लेकिन इस तरह की भीषण आग को बुझाने के लिए जैसी तैयारी होनी चाहिए, हम वैसी तैयारी नहीं करते हैं.
पिछले कई साल से इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. इसका बड़ा कारण यह भी है कि स्थानीय लोग वनों को अपना नहीं समझते हैं.
आज से 30-40 साल पहले लोग भी आग बुझाने के लिए नकल पड़ते थे, लेकिन वनों से उस तरह का अपनापन ख़त्म हो गया है.
दूसरी तरफ वन विभाग के पास भी कोई साफ़ मास्टर प्लान नहीं होता है.
हम बड़े-बड़े शहरों के लिए मास्टर प्लान तो बनाते हैं. लेकिन हमारे पास ऐसा कोई मास्टर प्लान नहीं होता है, जो जंगलों की आग को बुझाने के लिए बनाया गया हो.
यह केवल उत्तराखंड से जुड़ा मामला नहीं है. इस तरह की आग को पूरे देश के बड़े नुक़सान में गिना जाता है.
इन्हीं जंगलों से देश की कई नदियां बनती हैं, मिट्टी बनती है…उस पर जंगल बनते हैं, इसलिए यह पूरे देश का बड़ा नुक़सान है.
हमें पहले से पता है कि जंगल में सबसे पहले आग वहां ज़मीन पर पड़ी पत्तियों में लगती है, इसलिए इन पत्तियों को हटाकर, उससे खाद बनाने का एक रोज़गार तैयार कर सकते हैं.
इन पत्तियों से ऊर्जा हासिल कर सकते हैं. इसलिए देश में जो संस्थान हैं, उन्हें इस पर रिसर्च करना चाहिए कि पत्तियों से रोज़गार किस तरह से तैयार कर सकते हैं.
जब रोज़गार की कमी है, तो हम आग बुझाने के काम को भी एक रोज़गार बना सकते हैं.
इस बार उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग का नुक़सान करोड़ों-अरबों में जाएगा. जब दुनिया का पर्यावरण ख़राब हो रहा है, तो ऐसे में इस तरह की आग पर नियंत्रण के लिए एक मास्टर प्लान ज़रूरी है.
(बीबीसी संवाददाता मोहनलाल शर्मा से हुई बातचीत पर आधारित)
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